श्रीमद्भागवत पुराण और कई धार्मिव व पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि, द्वापर युग में कान्हा को बचपन में माखन-मिश्री बहुत प्रिय था. वे माखन चुराने के लिए गोकुल में पड़ोसियों के घर सखाओं के साथ जाते और मटकी तोड़कर सखाओं संग खाया करते थे.

कृष्ण की शरारतों से गोकुल की गोपियां परेशान हो चुकी थीं, जिसके बाद उन्होंने मटकी को ऊंचाई पर लटका कर रखना शुरू किया. तब कृष्ण सखाओं संग संगठन बनाकर मानव पिरामिड की तरह मटकी तोड़कर माखन खाते थे.

दही हांडी का पर्व श्रीकृष्ण की इसी नटखट और प्रेममयी बाललीला का जीवंत उत्सव है, जो हर किसी के हृदय को भक्ति और आनंद की भावना से भर देता है.

कृष्ण की कई बाल लीलाओं में मटकी तोड़कर माखन खाने की लीला को आज दही हांडी उत्सव के रूप में जाना जाता है. इस उत्सव और बड़े ही उत्साह, उल्लास और आनंद के साथ मनाया जाता है.

कई शहरों में इस उत्सव का आयोजन प्रतियोगिता में रूप में भी किया जाता है. प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतिभागी को गोपाला कहा जाता है. गोपाला और गोविंदा की टोली मिलकर एक टीम बनाती है और दही हांडी के दिन मानव पिरामिड तैयार कर मटकी तोड़ती है.

मटकी टूटते ही हांडी में भरा माखन नीचे गिर जाता है और चारों ओर ‘गोविंदा आला रे आला,,’ गूंजने लगता है. दही हांडी धार्मिक उत्सव होने के साथ ही टीमवर्क, मेहनत, उत्साह और धैर्य का भी प्रतीक है.

धार्मिक मान्यता है कि, दही हांडी से गिरा माखन सुख, समृद्धि और शुभता का प्रतीक होता है, जिसे गोविंदा की टोली प्रसाद की तरह ग्रहण करती है.
Published at : 16 Aug 2025 02:15 PM (IST)
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