Explainer: पुतिन क्यों चाहते हैं डोनबास पर कब्जा करके रूस में मिलाना, इसके अलावा क्या उनकी शर्तें

अलास्का में अमेरिकी प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मिलने के बाद यूक्रेन में युद्ध का सीन भी बदल रहा है. ये लग रहा है कि इस युद्ध को बंद करने के लिए पुतिन जो चाहते हैं वो करा ही लेंगे. ट्रंप भी अब पुतिन के ही सुर में सुर मिलाने लगे हैं. तो कहना चाहिए कि इस युद्ध के बाद यूक्रेन को नुकसान ही नुकसान हुआ है. वहीं इस युद्ध को लंबा छेड़ते हुए पुतिन मनमाफिक पोजिशन में हैं. वो साफ कह चुके हैं कि यूक्रेन में बचे हुए दोनबास क्षेत्र को भी वह रूस में मिलाना चाहते हैं क्योंकि ये मूल रूप से रूस से ही ताल्लुक रखता है.

ट्रंप ने यूरोपीय नेताओं को बताया है कि अन्य मांगों के साथ-साथ पुतिन ने प्रस्ताव रखा कि यूक्रेन डोनबास क्षेत्र का शेष भाग मास्को को सौंप दे. बदले में रूस लड़ाई बंद कर देगा. ट्रंप भी चाहते हैं कि यूक्रेन को अगर युद्ध से निकलना है तो ऐसा ही करना चाहिए. आखिर ये दोनबास वाला इलाका है क्या, जिसको पुतिन हर हाल में रूस में मिलाना चाहते हैं. हालांकि ज़ेलेंस्की ने इस क्षेत्र को पूरी तरह से छोड़ने के विचार को ठुकरा दिया है.

डोनबास के बारे में सबसे बड़ी बात यही है कि वो रूसी भाषी क्षेत्र है. यही बात रूसी राष्ट्रपति द्वारा इसको पाने का मूल कारण है. इस पर कब्ज़ा करना उनकी क्षेत्रीय और राजनीतिक मांगों की सूची में सबसे ऊपर है. ये इलाका औद्योगिक क्षेत्र है, जो अगले कुछ समय निश्चित तौर पर चर्चा में रहने वाला है.

सवाल – पुतिन कब से डोनबास को कब्जा करना चाह रहे हैं?

– पुतिन 2014 से ही डोनबास को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं. पहले उन्होंने ये काम अलगाववादी आपरेशन के जरिए की. फिर 2022 में इस क्षेत्र पर आक्रमण करके और उसे अपने में मिला कर. आप कह सकते हैं कि डोनबास बहुत बड़े इलाके पर रूसी फौजों का नियंत्रण हो चुका है. इस इलाके में दोनों देशों के बीच सबसे भयंकर लड़ाई भी हुई है.

यूक्रेनी समूह डीपस्टेट के आंकड़ों के अनुसार , क्रेमलिन की सेना और उसके अलगाववादी सहयोगियों ने 2014 से डोनबास के लगभग 87 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है. रूसी सेना अब यूक्रेनी कब्जे वाले 2,600 वर्ग मील क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाते हुए उससे छीन रही है. सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि अगर युद्धविराम नहीं होता तो ये लड़ाई रूस की तरफ से तब तक चलती रहेगी, जब तक कि उसका सारे डोनबास पर कब्जा नहीं हो जाता. ऐसी स्थिति में युद्ध फिर अगले साल तक खींच सकता है. हालांकि कहना चाहिए कि डोनबास विवाद बहुत पुराना है.

वैसे ज़ेलेंस्की ने पिछले हफ्ते पत्रकारों से कहा, “हम डोनबास नहीं छोड़ेंगे. हम ऐसा नहीं कर सकते.” डोनबास का जितना इलाका अब भी यूक्रेन का कब्जा है, उसमें करीब दो साल नागरिक रहते हैं..

दरअसल डोनबास बड़ा इलाका है और दोनेत्स्क और लुगांस्क को मिलकर बनता है., वैसे इस इलाके को चार हिस्सों में बांटा जाता है, ये हिस्से लुहान्स्क, डोनेत्स्क, ज़ापोरिज्जिया और खेरसॉन हैं. जिसमें से एक लुहांस्क पर रूस का पूर्ण नियंत्रण है. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, सोवियत संघ के पतन के समय तक, दोनबास के करीब दो-तिहाई निवासी रूसी भाषा को अपनी पहली भाषा मानते थे. यूक्रेनी स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती दशकों में रूसी सांस्कृतिक पहचान और भाषा का मामला और भी ज्यादा मुखर हो गया.

सवाल – दिल से डोनबास के लोग रूस के साथ हैं या यूक्रेन के?

– यूक्रेन के 2010 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनबास के करीब 90 प्रतिशत मतदाताओं ने रूस समर्थक उम्मीदवार विक्टर एफ. यानुकोविच के पक्ष में मतदान किया था. चार साल बाद कीव में प्रदर्शनकारियों द्वारा तत्कालीन राष्ट्रपति श्री यानुकोविच को अपदस्थ किए जाने के बाद पुतिन ने यूक्रेन से क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया और डोनबास में विद्रोह भड़का दिया. लेकिन हमले से पहले करीब दो साल पहले हुए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल एक-चौथाई रूसी ही डोनेट्स्क और लुगांस्क को रूसी संघ में शामिल करने के पक्ष में थे.

सवाल – क्या पुतिन यूक्रेन में अपनी पसंदीदा सरकार चाहते हैं?

– हां ये बात कही जा सकती है. ये भी कहा जा रहा है कि रूस तब तक लड़ता रहेगा जब तक कि ज़ेलेंस्की की सरकार को गिराकर एक अधिक लचीली सरकार स्थापित नहीं कर ली जाती. हालांकि लोगों को ये भी लग रहा है कि रूस भी बहुत लंबा युद्ध नहीं लड़ सकता. युद्ध का असर बुरी तरह रूसी लोगों पर भी पड़ रहा है.

सवाल – क्या यूक्रेन के लिए रूस को डोनबास सौंप देना आसान होगा?

– बिल्कुल नहीं. यूक्रेन का संविधान राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह के अलावा किसी भी अन्य तरीके से क्षेत्र को सौंपने पर रोक लगाता है. कीव अंतर्राष्ट्रीय समाजशास्त्र संस्थान द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 78 प्रतिशत यूक्रेनवासी यूक्रेन के नियंत्रण वाले क्षेत्र को रूस को सौंपने के खिलाफ थे. तो ये यूक्रेन के लिए मुश्किल बात होगी.

सवाल – इसके अलावा रूस की शर्तें युद्ध बंद करने के लिए क्या हैं?

– रूस की कई शर्तें हैं, डोनबास तो उसकी सबसे बड़ी शर्त है. बाकि बातें इस तरह है
– रूस की मांग है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बनेगा.
– यूक्रेन को अपनी सेना और हथियारों में कटौती करनी होगी. पूर्वी यूक्रेन की सीमाओं पर रूस से लगे क्षेत्र में अपने सैनिक नहीं तैनात करने होंगे.
– रूस चाहता है कि यूक्रेन में रूसी भाषा को बराबरी का अधिकार दिया जाए.
– रूस पर लगे आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध हटाए जाएं.
– काला सागर में व्यापारिक मार्गों पर रूस का नियंत्रण हो ताकि यूक्रेन की अर्थव्यवस्था दबाव में रहे.
– रूस यूक्रेन के अंदर रह रहे रूसी समुदायों के अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी भी चाहता है।
– साथ ही यूक्रेन को परमाणु हथियार विकसित न करने की गारंटी देनी होगी।
हालांकि ये कहना चाहिए कि युद्ध रोकने के लिए रूस की मांगें कड़ी और यूक्रेन के लिए स्वीकार करना कठिन है.

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