क्या है यारसागुंबा?
यारसागुंबा एक प्रकार का जैविक फफूंद है जो हिमालयी इलाकों में एक विशेष कीड़े की प्रजाति के शरीर में परजीवी (Parasite) रूप में विकसित होता है. यह जीव गर्मियों में जमीन के भीतर मर जाता है और उसके शरीर पर फफूंद उग जाती है, जो ऊपर से एक पौधे की तरह दिखाई देती है. ये मेल इसे आधा कीड़ा और आधा फफूंद बनाता है. यह मुख्य रूप से उत्तराखंड के चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर और उत्तरकाशी जिलों में 3200 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है. मई-जून के महीनों में जब बर्फ पिघलती है, तब यह जमीन से बाहर निकलती है.
आयुर्वेद हर्बल सेंटर के मोहम्मद इन्तखाबुल्हक ने बताया कि यारसागुंबा (कीड़ा जड़ी) को आयुर्वेद में बेहद शक्तिशाली माना गया है. यह शरीर को प्राकृतिक रूप से ऊर्जा प्रदान करता है और लंबे समय तक थकान से बचाए रखता है. इसके प्रमुख फायदे हैं:
किन बीमारियों में होता है लाभकारी?
यारसागुंबा (कीड़ा जड़ी) का इस्तेमाल विशेष रूप से यौन दुर्बलता, शारीरिक थकावट, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, मधुमेह, किडनी संबंधी रोगों में किया जाता है. इसकी खासियत यह है कि (Yarsagumba benefits) यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को नेचुरल तरीके से बढ़ाता है, जिससे कई रोगों से खुद को लड़ने में ताकत बढ़ जाती है.
बढ़ती मांग, अंधाधुंध दोहन और सीमित उत्पादन के कारण यारसागुंबा अब लुप्तप्राय औषधीय प्रजातियों की सूची में आ चुका है. सरकार ने इसके संग्रह के लिए नियम बनाए हैं, ताकि इसका दोहन नियंत्रित रूप से हो सके और पारिस्थितिकी संतुलन बना रहे. यारसागुंबा उत्तराखंड के प्राकृतिक खजाने का एक अनमोल रत्न है. यह सिर्फ एक औषधि नहीं, बल्कि एक विरासत है, जिसे संरक्षण की जरूरत है. अगर इसका समझदारी से दोहन किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को संबल दे सकता है, बल्कि मेडिकल क्षेत्र में भी नई संभावनाएं खोल सकता है
यह भी पढ़ें: इस पौधे के बीज से घर पर बनाएं टूथपेस्ट! एक बार कर लिया इस्तेमाल, तो बुढ़ापे में नहीं लगाने पड़ेंगे नकली दांत