चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच इकोनामी कॉरिडोर का क्या होगा रूट

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China-Pakistan-Afghanistan economic corridor- हाल ही में काबुल में हुई एक बैठक में चीन पाकिस्‍तान इकोनॉमी कॉरिडोर को अफगानिस्‍तान विस्‍तार करने पर सहमति बनी है. इसका क्‍या होगा संभावित रूट, जानें

चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच इकोनामी कॉरिडोर का क्या होगा रूटतीनों देशों के बीच हाल ही में बनी है सहमति.

नई दिल्‍ली. चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमी कॉरिडोर को अफगानिस्‍तार तक ले जाने पर कवायद शुरू हो गयी है. हाल ही में काबुल में चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की बैठक में कॉरिडोर पर सहमति बन चुकी है, जिससे तीनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग, व्यापार, और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ेगा. सवाल उठता है कि अगर यह कॉरिडोर बना तो इसका रूट क्‍या होगा और इससे भारत को क्‍या नफा या नुकसान होगा? आइए जानते हैं-

अफगानिस्‍तान में हुई बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के बीच सहमति बनी. चीन-पाकिस्‍तान के बीच बन रहे इकोनॉमी कॉरिडोर को अफगानिस्‍तान तक विस्‍तार किया जाएगा. यह हाईवे प्राचीन सिल्क रोड को दोबारा से शुरू करेगा और चीन को अफगानिस्तान के रास्ते ईरान से जोड़ेगा.

मौजूदा कॉरिडोर की लंबाई

मौजूदा समय बन रहे कॉरिडोर की लंबाई करीब 2500 किमी. है, जो चीन के शिनजियांग प्रांत (काशगर) से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाएगा. अगर अफगानिस्‍तार तक बनेगा तो करीब 350 किमी. और लंबा होने का अनुमान है. अगर इसे अफगानिस्‍तान के अन्‍य शहरों तक बढ़ाया गया तो इसकी लंबाई 3000 किमी. से अधिक जाएगी. जिसमें ग्वादर से काशगर और काशगर से काबुल तक के शहर शामिल हैं.

यहां से हो सकता है शुरू

कॉरिडोर के पूर्वी छोर पर वाखजीर पास (4,923 मीटर ऊंचाई) है, जो अफगानिस्तान और चीन के बीच एकमात्र संभावित सड़क संपर्क है. इस रूट की शुरुआत चीन के काशगर से हो सकती है, जो कराकोरम हाईवे के माध्यम से पाकिस्तान से जुड़ा है. अफगानिस्तान में यह रोड बोजाई गोंबद से शुरू होकर वाखजीर पास तक जा सकती है. इसके बाद यह अफगानिस्तान के सड़क नेटवर्क को काबुल और अन्य शहरों से जोड़ेगी, और आगे ईरान की सीमा तक विस्तारित हो सकती है.

यह भी वैकल्पिक मार्ग हो सकता है

एक वैकल्पिक मार्ग वाखान गलियारे के माध्यम से हो सकता है, जो अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्वी हिस्से में है और चीन के शिनजियांग से सीधे जुड़ता है. यह गलियारा केवल 350 किमी लंबा और 13-65 किमी चौड़ा है, लेकिन यह दुनिया के सबसे कम उपयोग किए जाने वाले मार्गों में से एक है, क्योंकि यह ऊंचे पहाड़ों और दुर्गम इलाकों से गुजरता है. वाखान कॉरिडोर का पहाड़ी इलाका और सुरक्षा चुनौतियां हैं. इसलिए वैकल्पिक रूप में चीन कराकोरम हाईवे (पाकिस्तान से काशगर तक) को अफगानिस्तान के पेशावर-काबुल सड़क नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है. इस पर भी विचार किया जा सकता है.

पीओके से गुजरेगा

ग्वादर से काबुल तक का कॉरिडोर ग्वादर से शुरू होकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान और पेशावर होते हुए काबुल तक जा सकता है. इसमें संभावित शहर ग्वादर,क्‍वेटा,पेशाव, गिलगित, जलालाबाद,हेलमंद, निमरोज, काबुल, कंधार, चीन के काशगर, शिनजियांग प्रांत तक जाएगा.

भारत को नफा या नुकसान

यह कॉरिडोर भारत को सीधे और परोक्ष रूप से कुछ फायदे हो सकते हैं. कॉरिडोर से मध्य एशिया और अफगानिस्तान के बाजारों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. भारत का चाबहार पोर्ट (ईरान) अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया तक माल पहुंचाने का एक वैकल्पिक रास्ता है. अगर अफगानिस्तान में स्थिरता बढ़ती है, तो भारत अपने निर्यात को बढ़ा सकता है.

इ‍सलिए है चिंता

इकोनॉमिक कॉरिडोर का अफगानिस्तान तक विस्तार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है. भारत ने इसका विरोध किया है, क्योंकि यह क्षेत्रीय सुरक्षा और भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है.

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