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Artificial cornea vs donor cornea: आर्टिफिशियल कॉर्निया को बायोसिंथेटिक कॉर्निया भी कहा जाता है. एम्स नई दिल्ली के आरपी सेंटर में 70 लोगों को यह कॉर्निया लगाया गया है. आरपी सेंटर की प्रोफेसर नम्रता शर्मा से …और पढ़ें
हाइलाइट्स
- एम्स में 70 मरीजों को आर्टिफिशियल कॉर्निया लगाया गया.
- आर्टिफिशियल कॉर्निया का रिजेक्शन रेट बहुत कम है.
- स्वीडन की कंपनी के साथ मिलकर आर्टिफिशियल कॉर्निया बन रहा है.
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली का आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज भारत का पहला इंस्टीट्यूट है जहां मरीजों को आर्टिफिशियल कॉर्निया लगाया गया है. यहां 70 मरीजों को ह्यूमन कॉर्निया की जगह ट्रायल के तौर पर आर्टिफिशियल कॉर्निया लगाया गया और 7 साल से चल रहे मरीजों के फॉलोअप में देखा गया कि यह पूरी तरह सफल है.
आर्टिफिशियल कार्निया को कैरेटोप्रोस्थेसिस या बायो सिंथेटिक कॉर्निया भी कहा जाता है, जिसे कोलजेन टाइप वन से लैबोरेटरी में तैयार किया जाता है. इसे सिंथेटिक मैटेरियल्स जैसे क्लियर प्लास्टिक से बनाया जाता है. अगर मरीज में चोट या इंन्फेक्शन की वजह से कॉर्निया खराब हो जाता है तो विजन को बचाने के लिए दोबारा कॉर्निया लगाया जाता है. ऐसे में ह्यूमन डोनेटेड या सिंथेटिक कॉर्निया लगाया जा सकता है.
70 लोगों में लगाया आर्टिफिशियल कार्निया
इंडियन सोसाइटी ऑफ कार्निया एंड केरोटोरेफ्ररेक्टिव सर्जन की सदस्य और आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा ने News18hindi से बातचीत में बताया कि एम्स आरपी सेंटर स्वीडन के साथ मिलकर आर्टिफिशियल कार्निया बना रहा है. 7 साल पहले ट्रायल के लिए आरपी सेंटर में 70 ऐसे मरीजों को चुना गया जिनकी आंखों में इंफेक्शन या आंख में किसी तरह की चोट की वजह से विजन पर प्रभाव पड़ा था. उन मरीजों को निशुल्क रूप से ह्यूमन कार्निया के बजाय बायो सिंथेटिक कार्निया लगाया गया. अब इतने सालों के फॉलोअप के बाद देखा गया है कि उन मरीजों का विजन पूरी तरह ठीक है, उन्हें कोई परेशानी नहीं है.
डॉ. नम्रता कहती हैं कि ह्यूमन या डोनर कॉर्निया कई बार मरीज को सूट नहीं करता और रिजेक्ट कर देता है और सफल नहीं हो पाता लेकिन आर्टिफिशियल कार्निया का रिजेक्शन रेट बहुत कम है. साथ ही इसके रख रखाव के लिए बहुत सारे इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसके खराब होने का भी खतरा नहीं होता, जबकि ह्यूमन कॉर्निया के डोनेशन से लेकर उसका रखरखाव इससे जटिल है. हालांकि नेत्रदान से जो कॉर्निया मिलता है, उसमें कई लेयर्स होती हैं और करीब दो आंखों से 6 लोगों की आंखों की रोशनी लौटाई जा सकती है. अभी बायोसिंथेटिक कॉर्निया में उतनी लेयर्स नहीं मिल पा रहीं, लेकिन उन लेयर्स को बनाने पर भी काम चल रहा है.
डॉ. नम्रता बताती हैं कि शोध में मिली सफलता के बाद आर्टिफिशियल कार्निया बनाने का काम स्वीडन की कंपनी के साथ चल रहा है, हालांकि अभी इसकी गाइडलाइंस और कीमतें तय की जानी हैं. एक बार तय हो जाने के बाद इसे नॉर्मल सिस्टम में शामिल करना संभव होगा. तब तक ह्यूमन कॉर्निया ही लोगों को लगाया जा रहा है.
क्या नेत्रदान की जरूरत हो जाएगी खत्म?
डॉ. कहती हैं कि ऐसा नहीं है क्योंकि अभी यह शुरुआती स्टेज में है, साथ ही इसकी कीमत तय होने के बाद ही यह मरीजों तक पहुंचेगा. अभी नेत्रदान से मिला ह्यूमन कॉर्निया ही मरीजों को लगाया जा रहा है. साथ ही देश और दुनिया में कॉर्निया की समस्याओं से जूझ रहे मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा है कि कॉर्निया ट्रांसप्लाट के लिए नेत्रदान की जरूरत अभी पड़ेगी.
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ और रियल एस…और पढ़ें
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