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- Tripurari Purnima On 5th November, Significance Of Kartik Purnima In Hindi, Lord Shiv And Tripurasur Story In Hindi
4 घंटे पहले
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कल (5 नवंबर) कार्तिक मास की पूर्णिमा है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहते हैं। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव ने असुर तारकासुर के तीन पुत्रों- तरकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का वध किया था। इन तीनों असुरों को ही त्रिपुरासुर कहा जाता है। त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा पर हुआ था, इस कारण यह तिथि त्रिपुरारी पूर्णिमा कहलाती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, पौराणिक प्रसंग है कि कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध कर दिया था। इसके बाद तारकासुर के तीनों पुत्र अपने पिता की मृत्यु का बदला देवताओं से लेना चाहते थे। इसके लिए तीनों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और तीनों से वरदान मांगने के लिए कहा।
तीनों असुरों ने अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने ये वरदान देने से मना कर दिया, ब्रह्मा जी ने कहा कि जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी, ऐसा वरदान देना सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है।
इसके बाद तीनों असुरों ने सोच-विचार करके दूसरा वरदान मांगा। उन्होंने कहा कि आप हमारे लिए तीन पुरियां (नगर) बनाएं, एक स्वर्ग में, एक आकाश में और एक पृथ्वी पर। जब युगों में एक बार ये तीनों पुरियां एक सीधी रेखा में आ जाएं, तब कोई एक ही बाण से इन तीनों पुरियों को नष्ट करे, तब ही हमारी मृत्यु हो।
ब्रह्मा जी ने उनको मनचाहा वरदान दे दिया। इस वरदान के बाद इन तीनों असुरों को त्रिपुरासुर नाम मिला। वरदान के प्रभाव से तीनों असुर अजय हो गए, कोई भी देवता इन्हें पराजित नहीं कर पा रहा था।
उन्होंने तीनों लोकों स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल पर अधिकार कर लिया। देवता, ऋषि और साधु-संत त्रिपुरासुर से परेशान थे। तब सभी देवता और ऋषि भगवान शिव से मदद मांगने पहुंचे। तब भगवान शिव सृष्टि की रक्षा के त्रिपुरासुर से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।
जब त्रिपुरासुर की तीनों पुरियां एक सीध में आ गईं, तब भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों पुरियों को खत्म कर दिया। तीनों पुरियों के खत्म होते ही तारकासुर के तीनों पुत्र यानी त्रिपुरासुर का भी अंत हो गया। इसके बाद भगवान शिव के स्वागत के लिए सभी देवताओं ने दीपक जलाए थे। इस कथा के कारण ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है। मान्यता है कि जिस दिन ये घटना हुई, उस दिन कार्तिक पूर्णिमा तिथि ही थी।
कार्तिक पूर्णिमा पर करें ये शुभ काम
- कार्तिक मास का नाम भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय स्वामी के नाम पर रखा गया है। इसलिए इस पूर्णिमा को कार्तिकेय स्वामी की विशेष पूजा जरूर करें।
- पूजा की शुरुआत में प्रथम पूज्य भगवान गणेश का पूजन करें, इसके बाद कार्तिकेय स्वामी का जल, दूध और पंचामृत से अभिषेक करें। मौसमी फल और मिठाई का भोग लगाएं। दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें और ऊँ श्री स्कंदाय नमः मंत्र का जप करें। स्कंद, कार्तिकेय स्वामी का ही एक नाम है।
- पूर्णिमा पर भगवान शिव की भी विशेष पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध और पंचामृत अर्पित करें। बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल, चंदन और हार-फूल से शिवलिंग का श्रृंगार करें। मीठा भोग चढ़ाएं। भगवान शिव की आरती करें और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें।
- पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। पूजा में शंख, कमल और तुलसी जरूर रखें। तुलसी के पत्तों के साथ खीर का भोग लगाएं।
- इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा भी पढ़नी-सुननी चाहिए। सत्यनारायण भी श्रीहरि का ही एक स्वरूप है। ये स्वरूप जीवन में सत्य को अपनाने का संदेश देता है।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, शिप्रा या किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद नदी किनारे दान करें।
- सूर्यास्त के बाद नदी किनारे दीपदान करें। नदी किनारे नहीं जा सकते तो घर के आंगन में ही दीपक जलाएं।
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