गजब की है ये औषधि! कई बीमारियों में करता है कमाल, जानिए कौन सा है ये पौधा

गोंडा. आयुर्वेद में कई औषधीय पौधे हैं जो अनेक प्रकार की बीमारियों में लाभकारी माने जाते हैं. इन्हीं में से एक है कलिहारी का पौधा. इसे आयुर्वेद में बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है. इसे कई स्थानों पर अग्निशिखा, लाल नागिनी, या ग्लोरियोसा भी कहा जाता है.

लोकल 18 से बातचीत के दौरान वैद्य जमुना प्रसाद यादव बताते हैं कि यह पौधा विशेष रूप से पहाड़ी और जंगली इलाकों में पाया जाता है, लेकिन अब इसकी खेती भी औषधीय उपयोग के लिए की जाने लगी है. इसके फूल लाल, पीले और नारंगी रंग के होते हैं और इसकी बेल झाड़ियों या पेड़ों पर चढ़ती है. उन्होंने बताया कि कई प्रकार की बीमारियों में इसका काम आता है जैसे दांत का दर्द, जोड़ों का दर्द, बुखार, त्वचा रोग, सांप या बिच्छू के काटने पर इसका प्रयोग किया जाता है.

कई गंभीर बीमारियों में कारगर
दांत दर्द: इसकी जड़ से बनी दवा दांत के दर्द में राहत देती है. उन्होंने बताया कि यदि दाहिने दांत में दर्द हो रहा है तो बाएं अंगूठे में इसका लेप लगाया जाएगा और यदि बाएं दांत में दर्द हो रहा है तो दाहिने अंगूठे में इसके पत्ते का लेप लगाया जाएगा, जिससे दर्द में राहत मिलेगी. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि यह काफी विषैला होता है.
जोड़ों का दर्द: इसके अर्क से बना तेल मालिश करने पर जोड़ों के दर्द में आराम देता है.
त्वचा रोग: इसकी पत्तियों और फूलों का प्रयोग त्वचा संक्रमण व खुजली में किया जाता है.
बुखार: कलिहारी की जड़ का काढ़ा बुखार में लाभकारी होता है.
सांप या बिच्छू का जहर: पुराने वैद्यों के अनुसार, इसका उपयोग विष उतारने के लिए भी किया जाता रहा है. इसकी जड़ का लेप विषैले डंक के स्थान पर लगाया जाता है.

इन बातों का रखें खास ध्यान
वैद्य जमुना प्रसाद बताते हैं कि कलिहारी एक असरदार औषधि तो है, लेकिन इसे सही मात्रा और विधि से ही लेना चाहिए. क्योंकि इसकी अधिक मात्रा शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है. इसलिए बिना विशेषज्ञ की सलाह के इसका उपयोग नहीं करना चाहिए.

खेती की संभावना
जमुना प्रसाद यादव बताते हैं कि अब गोंडा और आसपास के क्षेत्रों में कुछ किसान इसकी औषधीय खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें आर्थिक लाभ भी मिल रहा है, साथ ही दुर्लभ हो रहे इस औषधीय पौधे को संरक्षित करने में भी मदद मिल रही है. जमुना प्रसाद यादव बताते हैं कि कलिहारी न केवल एक सुंदर बेल है, बल्कि यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अनमोल है. यदि इसे सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह कई बीमारियों में संजीवनी का काम कर सकता है. गोंडा जैसे क्षेत्रों में इसकी पहचान और खेती से न केवल ग्रामीणों को लाभ मिल सकता है, बल्कि पारंपरिक आयुर्वेद को भी मजबूती मिलती है.

.

Source link

Share me..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *