बागेश्वर: उत्तराखंड की पहाड़ियों में उगने वाला एक अनमोल औषधीय पौधा “पत्थर चट्टा” आज भी आयुर्वेदिक उपचारों में प्रयोग किया जाता है. गांव-गांव में प्राचीन काल से ही इसका इस्तेमाल हो रहा है. यह पौधा अब लोगों को आधुनिक चिकित्सा विकल्पों से इतर आयुर्वेदिक इलाज की ओर आकर्षित कर रहा है. खासकर किडनी स्टोन, पेशाब की समस्याएं और शरीर में सूजन जैसी तकलीफों को कम करने में मददगार है.
क्या है पत्थर चट्टा?
यह पौधा मोटे और रसीले पत्तों वाला होता है. जो बिना ज्यादा देखभाल के भी पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से उग जाता है. इसकी खासियत यह है कि इसके पत्तों पर छोटे-छोटे नए पौधे उगते हैं. जिससे इसे जीवन्त पौधों की श्रेणी में भी रखा जाता है.
किडनी स्टोन में चमत्कारी लाभ
बागेश्वर की आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी डॉ. संगीता ने लोकल 18 को बताया कि पत्थर चट्टा किडनी स्टोन के लिए रामबाण उपाय है. इसका उपयोग खासतौर पर सुबह खाली पेट किया जाता है. इसकी 2-3 ताजा पत्तियों को चबाने या काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र मार्ग की सफाई होती है और पथरी छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर बाहर निकलने लगती है. कई ग्रामीणों ने इसे आजमाकर राहत मिलने की पुष्टि की है.
सूजन और यूरिन समस्याओं में भी असरदार
इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि पत्थर चट्टा का रस या काढ़ा शरीर की भीतरी सूजन को कम करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. पेशाब में जलन, यूरिन इन्फेक्शन, बार-बार पेशाब आना जैसी समस्याओं में यह लाभकारी सिद्ध हुआ है. आयुर्वेदिक पद्धति में इसे वात-पित्त-कफ को संतुलित करने वाला औषधीय पौधा माना जाता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इसकी घरेलू उपयोग विधियों को लेकर कई वीडियो और पोस्ट वायरल हो चुके हैं. आयुर्वेद में रुचि रखने वाले यूट्यूब चैनल, फेसबुक पेज और इंस्टाग्राम हैंडल्स पर यह ट्रेंडिंग औषधीय पौधा बन चुका है.
चिकित्सक से परामर्श लेना है जरूरी
खास बात यह है कि युवा भी अब इसे अपने गमलों में उगाकर इसके फायदे ले रहे हैं. हालांकि, यह पौधा कई बीमारियों में उपयोगी है, लेकिन जानकार यह भी कहते हैं कि इसका उपयोग बिना विशेषज्ञ सलाह के नहीं किया जाना चाहिए. खासतौर पर यदि किसी को गंभीर स्वास्थ्य समस्या है या अन्य दवाएं ले रहे हैं, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श जरूर ले लें.
बागेश्वर और उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में सदियों से भरोसे के साथ इस्तेमाल किया जा रहा “पत्थर चट्टा” अब केवल एक जड़ी-बूटी नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद घरेलू उपचार बन चुका है. आधुनिक दौर में जब लोग फिर से प्राकृतिक चिकित्सा की ओर लौट रहे हैं. यह पौधा उत्तराखंड की पारंपरिक चिकित्सा का प्रतीक बनकर उभर रहा है. अगर सही सलाह और सीमित मात्रा में इसका सेवन किया जाए, तो यह बेहद ही गुणकारी औषधि है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.