प्राइवेट में 50 हजार रुपये की जांच! मुफ्त करेगा दिल्ली का ये सरकारी अस्पताल

Genetic disorders in Newborn tests: आजकल पैदा होते ही बच्चों में ऐसी-ऐसी जेनेटिक बीमारियां आ रही हैं,जिनका इलाज तो दूर अगर सिर्फ जांच ही कराई जाए तो एक-एक टेस्ट हजारों रुपये में होता है. प्राइवेट अस्पतालों में इन बीमारियों का इलाज और डायग्नोसिस इतना महंगा है कि सामान्य नौकरी करने वाले की महीने भर की तनख्वाह सिर्फ जांच कराने में ही निकल जाए. जबकि अधिकांश सरकारी अस्पताल ऐसे हैं, जिनमें इन बीमारियों का पता लगाने के लिए न मशीनें और न ही विशेषज्ञ डॉक्टर्स. हालांकि ऐसे बच्चों और उनके माता-पिता के लिए राहत की खबर है.

दिल्ली का डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में जल्द ही ऐसी जेनेटिक बीमारियों का न केवल मशीनों से डायग्नोसिस हो सकेगा बल्कि एक्सपर्ट डॉक्टर्स बच्चों का इलाज भी करेंगे. आरएमएल अस्पताल में नवजात बच्चों में ऐसे ही करीब आधा दर्जन जेनेटिक डिसऑर्डर्स की जांच के लिए मशीनों को लाया जा रहा है. इन डिसऑर्डर्स में से एक कन्जेनिटल एडर्नल हाइपरप्लासिया की जांच तो इतनी महंगी है कि प्राइवेट में इस टेस्ट को कराने के लिए 20 से लेकर 50 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. जबकि कई अन्य डिसऑर्डर्स की जांच के लिए भी 1 से 5 हजार रुपये तक का खर्च आता है. हालांकि अच्छी बात ये है कि इन बीमारियों की जांच आरएमएल अस्पताल मुफ्त में करेगा.

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इस बारे में आरएमएल की बायोकैमिस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डॉ. पारुल गोयल बताती हैं कि इन मशीनों के लिए अस्पताल में सेटअप तैयार हो रहा है और मशीनें भी आने लगी हैं. हालांकि सभी मशीनों को आने में कुछ महीने लगेंगे. ऐसे में आने वाले साल में इन जेनेटिक डिसऑर्डर्स की जांच संभव हो सकेगी. आज बहुत सारे बच्चे पैदा होते ही इन बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. इनकी स्‍क्रीनिंग बेहद जरूरी है. स्‍क्रीनिंग न होने के चलते बहुत सारे बच्चों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है. हालांकि आरएमएल अस्पताल में इन जांचों के होने से बहुत सारे मरीजों को फायदा मिलेगा.

कौन से हैं जेनेटिक डिसऑर्डर्स, जिनकी होगी जांच

कन्जेनिटल हाइपोथायरायडिज्म
ऐसी कंडीशन है जिसमें बच्चा एक अंडर एक्टिव थायरॉइड ग्लेंड के साथ पैदा होता है.यानि यह ग्लैंड पर्याप्त थाइरॉइड का उत्पादन नहीं कर पाती. अगर इस चीज को जल्दी ठीक नहीं किया जाता तो यह बच्चे के धीमे विकास के साथ ही कई हेल्थ इश्यूज पैदा कर देती है. इतना ही नहीं यह बौद्धिक अपंगता का सबसे कॉमन कारण है, जिसे रोका जा सकता है. इस बीमारी की जांच के लिए प्राइवेट में करीब 474 से 1000 रुपये तक देने पड़ते हैं.

कन्जेनिटल एडर्नल हाइपरप्लासिया
कन्जेनिटल एडर्नल हाइपरप्लासिया जेनेटिक समस्याओं का एक समूह है, ये तब पैदा होती हैं जब किडनी के ऊपर स्थित एडर्नल ग्लेंड पर्याप मात्रा में कई प्रकार के हार्मोन्स का उत्पादन नहीं कर पाती है. ये परेशानी तब होती है जब कार्टिसोल और एल्डोस्टेरोन जैसे होर्मोन्स को बनाने वाले एंजाइम्स की कमी हो जाती है. इसके अलग अलग मरीजों में लक्षण अलग हो सकते हैं लेकिन ज्यादातर में नमक और पानी का बेलेंस, जल्दी प्यूबर्टी और कई मामलों में एडर्नल क्राइसिस हो जाता है. जिसका इलाज हार्मोन रिप्लेसमेट थेरेपी से किया जाता है. इस डिसऑर्डर की अलग-अलग जांच के लिए 8 हजार रुपये से 50 हजार रुपये तक भी खर्च करने पड़ते हैं.

गैलेक्टोसीमिया
गैलेक्टोसीमिया एक बहुत ही रेयर जेनेटिक मेटाबोलिक डिसऑर्डर है जो शरीर को दूध या दूध के पदार्थों से मिलने वाले शुगर गैलेक्टोज को प्रोसेस करने से रोक देता है. इसकी वजह से नवजातों के शरीर में कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं, जैसे दूध पीने में दिक्कत, लिवर डैमेज होना, पीलिया, उल्टी या अन्य. इस बीमारी के अलग-अलग लेवल की जांच के लिए 700 रुपये से लेकर 5 हजार रुपये तक खर्च करने होते हैं.

बायोटिनिडेस की कमी
यह भी एक तरह का जेनेटिक डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर विटामिन बायोटिन को रीसायकिल नहीं कर पाता है. इसकी वजह से स्किन पर चकत्ते, बालों का गिरना और कई न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो जाती हैं. इस बीमारी का पता न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग या एंजाइम एनालिसिस के बाद ही चलता है. जबकि इसके इलाज के रूप में जिंदगी भर बायोटिन सप्लीमेंट लेना होता है. इसकी जांच के लिए 1900 से 3800 रुपये तक खर्च होते हैं.

G6PD डेफिसिएंसी
ग्लूकोज-6 फॉस्फेट डीहाइड्रोजेनेस डेफिसिएंसी भी एक जेनेटिक कंडीशन है जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में G6PD एंजाइम का उत्पादन नहीं करता, जो लाल रक्त कणिकाओं के फंक्शन के लिए बेहद जरूरी होता है. इसकी वजह से रेड ब्लड सेल्स तेजी से टूटने लगती हैं और इस स्थिति को हीमोलाइटिक एनीमिया कहते हैं. यहां तक कि कुछ बच्चों में इस बीमारी का कोई लक्षण भी दिखाई नहीं देता है जबकि कुछ में एनीमिया के लक्षण दिखते हैं. इसकी जांच 500 से 1500 रुपये तक में होती है.

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