हत्या की आरोपी पत्नी को निजी मुचलके पर छोड़ा: जबलपुर हाईकोर्ट से जमानत के बाद भी नहीं मिले जमानतदार, पांच साल जेल में काटने पड़े – Jabalpur News

जमानत मिलने के बाद भी इसी जेल में पांच साल तक बंद थी विद्या बाई।

घरेलू विवाद के चलते पति की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही जबलपुर की 71 वर्षीय विद्या बाई को आखिर 29 जुलाई 2025 को जेल से रिहाई मिल गई। हालांकि यह रिहाई उन्हें जमानत मिलने के पांच साल बाद मिली। 8 जनवरी 2020 को हाईकोर्ट ने उनकी सजा को निलंबि

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घटना 27 मार्च 2013 की है, जब तिलवारा क्षेत्र निवासी विद्या बाई ने पति सुरेंद्र उपाध्याय के साथ हुए विवाद के दौरान उसकी हत्या कर दी थी। पुलिस ने उन्हें धारा 302 और 201 के तहत गिरफ्तार कर जबलपुर जिला न्यायालय में पेश किया था। 29 जून 2013 को अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास और 70 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। विद्या बाई ने इस फैसले को चुनौती देते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अपील दायर की।

10 हजार के निजी मुचलके पर रिहा किया

विद्या बाई की ओर से सरकारी वकील ने स्वास्थ्य स्थिति का हवाला देते हुए राहत की मांग की थी। जबलपुर जेल अधीक्षक द्वारा मामले में आवेदन देने के बाद आखिरकार हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए विद्या बाई को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया। जुर्माने की राशि विधिक सहायता के माध्यम से जमा की गई। विद्या बाई 29 जुलाई को अपने भाई के साथ घर (तिलवारा) चली गईं।

पति की हत्या में 2013 से जेल में बंद थीं विद्या बाई।

जेल में बिगड़ी तबीयत, इलाज कराया

उम्र के साथ विद्या बाई चिड़चिड़ी होती गईं। साथ में रहने वाली महिलाओं, जेल अधिकारियों को गाली देने लगीं। धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति भी खराब होने लगी। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में कई माह इलाज चला पर ठीक नहीं हुईं। जेल प्रबंधन उन्हें ग्वालियर भी ले गया, पर आराम नहीं मिल रहा था।

जेल के वरिष्ठ अधीक्षक ने हाईकोर्ट को लिखा पत्र

जबलपुर केंद्रीय जेल के वरिष्ठ अधीक्षक अखिलेश तोमर ने हाईकोर्ट को पत्र लिखकर विद्या बाई की स्थिति से अवगत कराया। सरकारी वकील ने महिला की ओर से हाईकोर्ट में आवेदन प्रस्तुत किया। जिसमें बताया कि वह अत्यंत गरीब हैं और जमानत बांड भरने की स्थिति में नहीं हैं। जुर्माने की राशि विधिक सहायता के माध्यम से भर दी गई है। ऐसे में उन्हें निजी मुचलके पर रिहा करने का अनुरोध किया गया।

10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने आवेदन का निराकरण किया।

10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने आवेदन का निराकरण किया।

डिवीजन बेंच ने इसे दुर्लभ केस माना

जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस एके सिंह की डिवीजन बेंच ने मामले को दुर्लभ से दुर्लभ करार देते हुए गंभीरता से लिया और महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उसे राहत दी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला दुर्लभ से दुर्लभ की श्रेणी में आता है, क्योंकि सजा के निलंबन के बावजूद अपीलकर्ता महिला पांच वर्षों से जेल में निरुद्ध रही। अंततः अदालत ने महिला को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश देते हुए आवेदन का निराकरण कर दिया।

वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया कि विद्या अब अपने भाई के साथ रह रही है।

वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने बताया कि विद्या अब अपने भाई के साथ रह रही है।

जमानतदार नहीं मिल रहा था

वरिष्ठ जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर ने दैनिक भास्कर को बताया कि ऐसा होता है कि कोर्ट बंदी को जमानत तो दे देता है, पर उसकी जमानत लेने वाला और बांड भरने वाला नहीं मिलता है, जिसके चलते उसे जेल में ही रहना पड़ता है। महिला बंदी विद्या बाई के साथ भी यही हुआ था। 2020 में हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी, पर जुर्माने की राशि ना भर पाने के कारण उसे 5 साल जेल में रहने पड़ा है।

उन्होंने बताया कि महिला उम्रदराज के साथ-साथ बीमार भी रहती थी। विद्या बाई के आवेदन को कोर्ट के संज्ञान में लाया और बताया कि इसका कोई नहीं है, जिसके बाद हाईकोर्ट ने महिला को रिहा करने के आदेश दिए। वह 29 जुलाई को अपने भाई के साथ उनके घर चली गई।

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