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मिथिला अपने खास संस्कृति के लिए काफी फेमस है. सावन के महीने में यहां नवविवाहित स्त्रियों द्वारा लगातार अपने सुहाग को बचाए रखने के लिए पूजा की जाती है. इस पूजा की खास बात यह है कि इसमें उपयोग होने वाली सभी चीजें…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- मधुश्रावणी पंचमी मिथिला का ख़ास पर्व है
- ससुराल का सामान उपयोग करती है नवविवाहिता स्त्री
- 15 दिनों तक मायके में रहकर करती हैं पूजा
दुल्हन को ससुराल वालों से मिलता है सबकुछ
सावन मास के 15 दिनों तक स्त्रियां मधुश्रावणी पंचमी की पूजा करती हैं. बता दें कि इस पूजा में उपयोग होने वाला हर समान ससुराल पक्ष से आता है. इस पूजा के लिए व्रती जो भी कपड़ा, भोजन, 15 दिनों तक फल हो या फिर घर में पूजा करने के लिए हो और सोने के लिए बिस्तर या फिर गहने जेवरात हो. वह सब कुछ ससुराल पक्ष से आता है. बहरहाल 15 दिनों तक खाने से लेकर पहनने तक ससुराल वालों ने जो दिया है उसका इस्तेमाल करती हैं, लेकिन वह रहती मायके में है और यहीं पूजा करती है.
मायके में रहने की ये है वजह
15 दिनों तक मायके में रहकर नवविवाहिता मधुश्रावणी पूजा करती है. इस सिलसिले में लोकल 18 की टीम ने कुछ व्रतियों से बातचीत करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि यह परंपरागत तौर पर होते आया है. हमारे पूर्वजों ने यह नियम बनाया है क्योंकि इस 15 दिनों में बहुत से ऐसे काम हैं जो स्त्री नहीं करती है, जैसे झाड़ू नहीं छूती है, कपड़े धोना, खाना नहीं बनाती, साथ ही साथ घर में झूठा छूना यह बहुत ऐसी चीज है जो काम नहीं करना होता है. इसके लिए पूजा करना और नियम निष्ठा के साथ रहना होता है, लेकिन अगर 15 दिनों तक ससुराल में रहते हुए अपने हिस्से का काम करेगी तो नियम के तहत पूजा हो नहीं पाएगी इसलिए स्त्रियां ससुराल में नहीं रहती है. लंबे समय से इसे परंपरागत बना दिया गया है ताकि मायके में रहकर पूजा करें.
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