जिस भूसे को गाय न खाए, वह बनी कोयले की नई जान! सतना की इस बेटी ने खेतों के कूड़े से बनाया करोड़ों का काला सोना

सतना. मध्य प्रदेश के सतना जिले में पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने वाली एक सराहनीय पहल सामने आई है. जिले की एकमात्र इकाई सोना-मोना इंडस्ट्री खेतों के वेस्ट और खराब भूसे से बायोमास ब्रिकेट्स (गट्टे) तैयार कर रही है. ये ब्रिकेट्स पारंपरिक कोयले का विकल्प बनते हुए होटल, भट्ठों और औद्योगिक इकाइयों में उपयोग में लाए जा रहे हैं. इससे न केवल जैविक फ्यूल को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि किसानों के फसल अवशेष भी अब आमदनी का स्रोत बन चुके हैं.

बेटी की सोच से शुरू हुआ कारोबार
लोकल 18 से बातचीत में इंडस्ट्री मालिक भीष्म कुमार सेवानी ने बताया कि यह यूनिट करीब सात आठ साल पहले उनकी बेटी सोनल सेवानी की सोच से शुरू हुई. सोनल ने केमिकल इंजीनियरिंग में बीई किया है, उनके मन में यह विचार आया कि खेतों में बचने वाली पराली और भूसे का कोई सार्थक उपयोग किया जाए. सर्वे और रिसर्च के बाद उन्होंने ब्रिकेट्स बनाने का फैसला किया. यूनिट को बेटी के नाम से शुरू किया गया और कंपनी का नाम रखा गया सोना मोना इंडस्ट्रीज.

खेत की पराली से बना ऊर्जा स्रोत
यह यूनिट खेतों से निकलने वाले वेस्ट जैसे पराली, खराब भूसा और अन्य एग्रीकल्चर वेस्ट को किसानों से खरीदती है. फिर इन कच्चे माल को मशीनों के जरिए प्रोसेस कर ब्रिकेट्स में बदला जाता है. यह ब्रिकेट्स कोयले का एक पर्यावरण अनुकूल विकल्प साबित हो रहे हैं. इस ब्रिकेट का उपयोग पावर प्लांट्स, सीमेंट फैक्ट्रियों, बायलर यूनिट्स और होटल इंडस्ट्री में हो रहा है.

सरकारी सहायता और मुनाफे की गणना
सेवानी जी बताते हैं कि इस यूनिट को खड़ा करने में जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से सरकार से 25% की सब्सिडी प्राप्त हुई थी. पहले चरण में 50 लाख रुपये निवेश किया गया और फिर व्यापार को विस्तार देने के लिए और 50 लाख का पूंजी निवेश हुआ. उन्होंने बताया की पहले राइस मिल का स्कोप अच्छा था, उसमे बचने वाली भूसी 8 आने से 1 रुपये किलो बिकती थी , तब लगता था की एक रुपये में क्या ही होता है ,क्यों ना इसी को कुछ यूटिलाइज किया जाए.

सालाना टर्नओवर 5 करोड़ के पार
वर्तमान में कंपनी का सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपये से अधिक है. ब्रिकेट्स 5500 से 6000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बिकते हैं जबकि कच्चा माल किसानो से 3000 से 3500 रुपये प्रति टन में खरीदा जाता है. प्रोसेसिंग, ट्रांसपोर्टेशन और मजदूरी को मिलाकर कंपनी को प्रति टन करीब 500 से 1000 रुपये तक का लाभ होता है.

पर्यावरण और किसानों दोनों को लाभ
यह यूनिट न केवल पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रही है बल्कि किसानों के लिए पराली जलाने की समस्या का समाधान भी बन चुकी है. अब पराली को जलाने की बजाय किसान उसे बेचकर कमाई कर रहे हैं. कंपनी का उद्देश्य है कि सरकार की नीति के अनुरूप एग्री वेस्ट का पूर्ण रूप से सदुपयोग हो और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले.

सोना मोना इंडस्ट्री सतना जिले के लिए एक प्रेरणादायी मिसाल बन चुकी है जहां बेटी की दूरदर्शिता और परिवार की मेहनत ने कृषि वेस्ट को एक ऊर्जा संसाधन में बदल दिया. यह नवाचार न केवल पर्यावरण हितैषी है बल्कि स्थानीय रोजगार, किसानों की आय और औद्योगिक विकास को भी नई दिशा दे रहा है.

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