जरूरत की खबर- मानसून में बढ़ता निमोनिया का रिस्क: इन 7 लक्षणों को न करें इग्नोर, डॉक्टर से जानें बचाव के 11 आसान टिप्स

28 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल

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बारिश के मौसम में वातावरण में नमी और चारों ओर फैली गंदगी के कारण वायरस और बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं। यही वजह है कि इस मौसम में कई तरह की संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इन्हीं में से एक है निमोनिया, जो फेफड़ों में होने वाला एक गंभीर संक्रमण है।

यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। लेकिन बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को इसका रिस्क ज्यादा होता है। समय पर इलाज न मिलने से ये बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है।

इंडियन जर्नल ऑफ चेस्ट डिजीज एंड एलाइड साइंसेज (IJCDAS) में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, मानसून के दौरान निमोनिया के मामले बढ़ जाते हैं। इसकी मुख्य वजह बारिश में भीगना और लंबे समय तक गीले कपड़ों में रहना है। हालांकि कुछ जरूरी सावधानियों को अपनाकर इस गंभीर बीमारी के खतरे से बचा जा सकता है।

तो चलिए, आज जरूरत की खबर में हम बात करेंगे कि मानसून में निमोनिया का खतरा क्यों बढ़ जाता है। साथ ही जानेंगे कि-

  • किन लोगों को इसका रिस्क ज्यादा होता है?
  • निमोनिया के खतरे से कैसे बचा जा सकता है?

एक्सपर्ट: डॉ. प्रीतपाल कौर, पल्मोनोलॉजिस्ट, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, दिल्ली

सवाल- मानसून में निमोनिया का खतरा क्यों बढ़ जाता है?

जवाब- इस दौरान वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस और फंगस हवा, दूषित पानी व गंदी सतहों के जरिए शरीर में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। इससे लंग्स इन्फेक्शन या निमोनिया का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में वायरल और बैक्टीरियल निमोनिया के मामले ज्यादा सामने आते हैं।

सवाल- निमोनिया के प्रमुख लक्षण क्या हैं?

जवाब- निमोनिया में फेफड़ों की हवा भरी थैलियों (alveoli) में पस (मवाद) या फ्लुइड भर जाता है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होती है और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। समय पर इलाज न होने पर यह संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। इसलिए लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है। नीचे दिए ग्राफिक से इसके लक्षणों को समझिए-

सवाल- निमोनिया कितनी तरह का होता है?

जवाब- निमोनिया मुख्य रूप से चार तरह का होता है, जो उसके कारण और संक्रमण के टाइप पर निर्भर करता है।

बैक्टीरियल निमोनिया

यह स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया (Streptococcus pneumoniae) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर होने से ये बैक्टीरिया आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं और इन्फेक्शन फैलाते हैं।

वायरल निमोनिया

जुकाम और फ्लू पैदा करने वाले वायरस भी निमोनिया का कारण बन सकते हैं। यह बैक्टीरियल निमोनिया की तुलना में आमतौर पर हल्का होता है, लेकिन फिर भी कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।

फंगल निमोनिया

यह रेयर होता है और आमतौर पर उन लोगों को प्रभावित करता है, जिनका इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है (जैसे HIV/AIDS या कीमोथेरेपी वाले मरीज)। यह वातावरण में मौजूद फंगस (मिट्टी, पक्षियों की बीट) से फैलता है।

एस्पिरेशन निमोनिया

यह तब होता है, जब भोजन, पानी, उल्टी या लार सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच जाती है। यह समस्या ज्यादातर उन लोगों में पाई जाती है, जिन्हें निगलने में परेशानी होती है।

ध्यान रखें कि सही इलाज के लिए यह जानना जरूरी है कि निमोनिया किस कारण से हुआ है।

सवाल- किन लोगों को निमोनिया रिस्क ज्यादा होता है?

जवाब- निमोनिया किसी को भी हो सकता है। लेकिन कुछ लोगों को इसका रिस्क ज्यादा होता है। जैसेकि-

2 साल से कम उम्र के बच्चे: इनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं हुआ रहता है, जिससे ये इन्फेक्शन के चपेट में जल्दी आ जाते हैं।

बुजुर्ग: उम्र के साथ इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे इन्हें भी जल्दी इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है।

क्रॉनिक बीमारी से पीड़ित लोग: अस्थमा, डायबिटीज, हार्ट डिजीज या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी बीमारियां फेफड़ों और इम्यूनिटी को कमजोर करती हैं।

कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग: HIV/AIDS, कीमोथेरेपी या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के मरीजों में संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

स्मोकिंग करने वाले लोग: स्मोकिंग से फेफड़ों का सुरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस आसानी से हमला कर सकते हैं।

अस्पताल में भर्ती मरीज (खासकर ICU में): वेंटिलेटर पर रहने वालों में हॉस्पिटल-अक्वायर्ड निमोनिया का खतरा ज्यादा होता है।

सवाल- मानसून में निमोनिया से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब- इसके लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

सवाल- निमोनिया का पता लगाने के लिए कौन सी जाचें कराई जाती हैं?

जवाब- निमोनिया की पुष्टि और कारण जानने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट कराते हैं। जैसेकि-

चेस्ट एक्स-रे या CT स्कैन: लंग्स की तस्वीर से उसकी कंडीशन पता लगाया जाता है।

ब्लड टेस्ट: इससे शरीर में संक्रमण की स्थिति पता चलता है।

बलगम जांच: बैक्टीरिया या वायरस की पहचान में मदद करता है।

पल्स ऑक्सीमीटर: यह चेक करता है कि शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रही है या नहीं।

आर्टीरियल ब्लड गैस टेस्ट: कलाई से खून लेकर ब्लड में ऑक्सीजन लेवल मापा जाता है।

ब्रॉन्कोस्कोपी: लंग्स में एक पतली ट्यूब डालकर टेस्ट किया जाता है। ये जांच गंभीर स्थिति में की जाती है।

सवाल- निमोनिया का इलाज कैसे किया जाता है?

जवाब- निमोनिया के इलाज का तरीका उसकी गंभीरता, उम्र और मरीज की हेल्थ कंडीशन पर निर्भर करता है। बैक्टीरियल निमोनिया में आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। वायरल निमोनिया के लिए खास एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं और लक्षणों का इलाज किया जाता है।

हल्के मामलों में घर पर आराम, दवा और हाइड्रेशन से राहत मिल सकती है। लेकिन गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती कर ऑक्सीजन थेरेपी या IV एंटीबायोटिक की जरूरत पड़ सकती है।

सवाल- क्या निमोनिया के लिए कोई वैक्सीन भी है?

जवाब- जी हां, निमोनिया से बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध है। यह वैक्सीन खासतौर पर छोटे बच्चों, बुजुर्गों या क्रॉनिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को दी जाती है क्योंकि इनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है।

PCV (Pneumococcal Conjugate Vaccine) वैक्सीन भारत के यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत बच्चों को दी जाने वाली अनिवार्य वैक्सीन है। ध्यान रखें कि वैक्सीन लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूरी है।

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