शाकाहारियों का ‘मटन’ है यह सब्जी, साल में मिलता सिर्फ 3 महीने, कीमत 2000 रुपए

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मॉनसून की पहली बारिश के साथ ही यूपी में पीलीभीत और लखीमपुर के तराई जंगलों में कटरुआ नाम की सब्जी की पैदावार शुरू हो जाती है. इसकी शुरुआती कीमत आसमान छूती है. कटरुआ तराई जंगलों में साल और सागौन के पेड़ों की जड़…और पढ़ें

उत्तरप्रदेश का पीलीभीत जिला प्रमुख रूप से अपने जंगलों और बाघों के लिए जाना जाता है. मगर शहर छोड़ कर दूर जा बसे लोग एक सब्जी के लिए भी बरसात के समय पीलीभीत को याद करते हैं. यह जंगली सब्जी न केवल अपने आप में बेहद खास है बल्कि इसे शाकाहारियों के मटन की उपाधि भी दी जाती है.

दरअसल,मॉनसून की पहली बारिश के साथ ही यूपी में पीलीभीत और लखीमपुर के तराई जंगलों में कटरुआ नाम की सब्जी (Katrua Vegetable) की पैदावार शुरू हो जाती है. इसकी शुरुआती कीमत आसमान छूती है. कटरुआ के शौकीन इस सब्जी के लिए पूरे साल भर बारिश का इंतजार करते हैं. कटरुआ की सब्जी को शाकाहारियों का नॉन वेज भी कहा जाता है. इतना ही नहीं यह सब्जी प्रोटीन से भरपूर होती है. यही कारण है कि हर साल कटरुआ की कीमत पिछले साल से अधिक होती है.

कटरुआ की कीमत 2000 रुपए से भी अधिक
फिर भी लोग इसे शौक से खरीदकर और खाते भी हैं. आमतौर पर कटरुआ पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में पाया जाता है. कटरुआ तराई जंगलों में साल और सागौन के पेड़ों की जड़ों में पैदा होता है. इसके बाद इसे बीनने के लिए लोग जंगल जाते हैं. जमीन खोद कर कटरुआ निकाला जाता है. इसके बाद व्यापारी उसे खरीद कर पीलीभीत, लखीमपुर और बरेली की मंडियों में बिक्री के लिए ले जाते हैं. कटरुआ पर प्रतिबंध भी है. लेकिन विभागीय सांठ-गांठ से लगातार इसे जंगल से निकाला जाता है. हैरानी की बात ये है कि यह खुलेआम बिकता है. इसी के चलते इस सीजन कटरुआ की कीमत 2000 रुपए से भी अधिक से शुरू हुई है.

मॉनसून ने किया निराश 
वैसे तो पीलीभीत में कटरुआ बरसात की शुरुआत के साथ से ही बिक रहा है मगर इस बार बरसात न होने के चलते लोगों को स्थानीय कटरुआ का स्वाद नहीं मिल पा रहा है. गौरतलब है कि यह सब्ज़ी बरसात के बाद ही पैदा होती है, इधर बरसात न होने के चलते कटरुआ का सीजन अपने अंतिम चरण में चल रहा है.

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