आपके पेट के अंदर छिपी है अदृश्य शक्ति ! खुशी और गम को करती है प्रभावित, वैज्ञानिक बोले- यह सिक्स्थ सेंस

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New Study on Gut Health: हमारे पेट में एक अनोखा प्रोटीन होता है, जो ब्रेन को सिग्नल भेजकर भूख को कंट्रोल करता है. इसकी वजह से वजन और मूड भी प्रभावित होता है. वैज्ञानिकों ने इसे पेट का सिक्स्थ सेंस बताया है.

हमारा पेट सिग्नल्स के जरिए सीधे ब्रेन से कम्युनिकेट करता है.

हाइलाइट्स

  • पेट का सिक्स्थ सेंस ब्रेन को सिग्नल भेजता है.
  • फ्लैजेलिन प्रोटीन भूख और मूड को प्रभावित करता है.
  • न्यूरोपॉड्स पेट भरने का सिग्नल ब्रेन को भेजते हैं.
Scientists Discover Sixth Sense in Gut: हम सभी को लगता है कि पेट का काम सिर्फ खाना पचाना होता है, लेकिन एक नई स्टडी में पता चला है कि पेट हमारे दिमाग को यह भी बताता है कि कब खाना बंद करना है. यह पेट और दिमाग के बीच एक तरह की बातचीत है, जो सीधे न्यूरल सिग्नल्स के जरिए होती है. यही कारण है कि वैज्ञानिक इसे हमारे शरीर का सिक्स्थ सेंस (Sixth Sense) कह रहे हैं. यूएस की ड्यूक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह रिसर्च की है. इसमें कई बड़ी बातें सामने आई हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह स्टडी फ्लैजेलिन (Flagellin) नामक एक प्रोटीन पर केंद्रित है. यह प्रोटीन बैक्टीरिया की पूंछ जैसे हिस्से (Flagella) में पाया जाता है. वैज्ञानिकों ने पाया कि हमारी आंतों में कुछ खास तरह की कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें न्यूरोपॉड्स (Neuropods) कहते हैं. ये कोशिकाएं फ्लैजेलिन को पहचान सकती हैं और ये तुरंत दिमाग तक सिग्नल भेजती हैं. ये सिग्नल बताते हैं कि पेट भर गया है. इससे हमें समझ आ जाता है कि अब खाना बंद कर देना चाहिए. जब ब्रेन को यह सिग्नल मिलता है, तो लोग समझ जाते हैं कि पेट भर गया है. इसी को वैज्ञानिक पेट का सिक्स्थ सेंस मान रहे हैं.
न्यूरोपॉड्स में एक खास रिसेप्टर होता है, जिसे TLR5 (Toll-Like Receptor 5) कहते हैं. स्टडी के दौरान जब शोधकर्ताओं ने चूहों को फ्लैजेलिन प्रोटीन दिया, तो उनके TLR5 रिसेप्टर्स एक्टिव हो गए और दिमाग को संदेश मिला कि अब और खाना नहीं चाहिए. इस कारण चूहों ने कम खाना खाया. हालांकि जिन चूहों में यह रिसेप्टर नहीं था, उन्होंने ज्यादा खाया और जल्दी मोटे हो गए. इससे यह साबित हुआ कि हमारे शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया हमारे खाने की आदतों को प्रभावित कर सकते हैं.

नई रिसर्च सिर्फ भूख और मोटापे तक ही सीमित नहीं है. वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर हमारी आंतों में मौजूद बैक्टीरिया दिमाग को सिग्नल भेज सकते हैं, तो इसका असर हमारे मूड, एंजायटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थितियों पर भी हो सकता है. आसान भाषा में कहें तो हमारा पेट हमारे दिमाग को खुश या उदास कर सकता है. यह सब माइक्रोबियल प्रोटीन के जरिए हो सकता है. हमें लगता है कि शरीर में बैक्टीरिया नुकसानदेह होते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि हमारे शरीर में लगभग 100 ट्रिलियन माइक्रोबियल कोशिकाएं होती हैं, जो मानव कोशिकाओं से भी ज्यादा हैं. ये छोटे-छोटे जीवाणु हमारे शरीर के हर हिस्से में पाए जाते हैं. अब पता चल रहा है कि वे हमारे व्यवहार और फैसलों को भी प्रभावित कर सकते हैं.

वैज्ञानिक अब इस बात की जांच कर रहे हैं कि अलग-अलग तरह के फूड हमारे माइक्रोबायोम यानी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया को कैसे प्रभावित करते हैं और यह माइक्रोबायोम हमारे दिमाग और भावनाओं पर क्या असर डालता है. यह रिसर्च मोटापे, तनाव और मानसिक बीमारियों के इलाज की नई दिशा खोल सकती है. अगली बार जब आपको कोई गट फीलिंग आए, तो उसे हल्के में न लें. शायद आपकी छठी इंद्रिय ही आपको कुछ बता रही हो.

अमित उपाध्याय

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. …और पढ़ें

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. … और पढ़ें

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