हालांकि बच्चों का बिस्तर पर सूसू करना बहुत ही आम बात है और कुछ बच्चों में यह आदत करीब 5-7 साल की उम्र तक भी रहती है. ऐसा बच्चे जानबूझकर नहीं करते, बल्कि अक्सर ऐसा होता है कि बच्चों का टॉयलेट अपने आप निकल जाता है. यहां तक कि गीला होने के बाद भी उन्हें इस चीज का पता नहीं चल पाता है. डॉक्टरों की मानें तो 7 साल की उम्र तक बच्चे का नींद में पेशाब करना कोई बड़ी समस्या नहीं है.
डॉ. कहती हैं कि मेडिकल भाषा में इसे एनुरेसिस कहा जाता है. जो दो प्रकार का होता है. पहले वाले में बिस्तर में पेशाब करने की बच्चे की शुरू से आदत होती है जो 5-6 साल की उम्र में भी चलती रहती है. ये देखा जाता है कि बच्चा किसी भी पीरियड ड्राई नहीं रहता. जबकि दूसरी कंडीशन में अगर बच्चे को बेड गीला करने की आदत नहीं है लेकिन फिर अचानक ये परेशानी होने लगती है. अधिकतर मामलों में एनुरेसिस की समस्या अपने आप ठीक हो जाती है और इलाज की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ मामलों में अन्य फैक्टर्स का इलाज जरूरी हो जाता है.
डॉ. आरूषि कहती हैं कि अगर आमतौर पर बच्चा बेड गीला नहीं करता है और फिर अचानक कभी ऐसा करता है और लगातार कुछ दिन करता है तो उसे डायबिटीज, यूटीआई, किडनी इन्फेक्शन या अन्य कोई परेशानी हो सकती है. ऐसी कंडीशन में बच्चे की जांचें जरूरी होती हैं, ताकि इस वजह का पता लगाया जा सके.
नींद में पेशाब करने के ये हैं कारण
. बच्चे के मूत्राशय का ठीक से विकसित न होना.
. मूत्राशय को कंट्रोल करने वाली नसों का पूरी तरह मैच्योर न होना.
. पर्याप्त मूत्र रोधी हार्मोन न बनना.
. यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन होना
. स्लीप एप्निया
. डायबिटीज, कब्ज या नर्वस सिस्टम में दिक्कत होना .
. किडनी का संक्रमण होना
डॉ. कहती हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है. कुछ बच्चों में यह आदत जल्दी सही हो जाती है और कुछ बच्चों में देर तक चलती है. लेकिन यह कोई बीमारी नहीं है, इसलिए इसका कोई विशेष इलाज नहीं है, बल्कि पेरेंट्स को ये समझाया जाता है कि बच्चे को किस तरह की आदतें डालने में मदद की जाए ताकि बिस्तर गीला करने की आदत छूट जाए.
हां लेकिन अगर बच्चा किसी अन्य शारीरिक समस्या या तनाव की वजह से नींद में सूसू कर रहा है तो फिर उस पार्टिकुलर बीमारी की जांच और उसका इलाज किया जाता है. तब यह आदत खुद कंट्रोल हो जाती है.
बच्चे को सजा देना कितना सही?
डॉ. आरुषि कहती हैं कि बच्चे की बिस्तर गीला करने की आदत के लिए सजा देना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है. बच्चे को मारना-पीटना या चिल्लाना गलत है. यह सामान्य बात है. बच्चों में अक्सर देखने को मिलती है. इसके लिए सिर्फ बच्चे के रूटीन पर ध्यान दें, अगर उसे कोई परेशानी है तो उसको डॉक्टर को दिखाएं. अगर वह डरा हुआ है तो उसे प्यार करें, प्यार से समझाएं. उसे बार-बार सूसू कराते रहें. बच्चे के साथ मेहनत करें, न कि उसे प्रताड़ित करें.