आंख की इस बढ़ती बीमारी पर दिल्ली के जाने माने ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट डॉ. नम्रता शर्मा, डॉ. राजेश सिन्हा, डॉ. राजीव मुखर्जी, डॉ. ऋषि मोहन और डॉ. अजय दबे ने चिंता जताई है. इस दौरान एम्स, आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा ने कहा कि मायोपिया की वजह से बच्चे दूर की चीजें साफ नहीं देख पाते, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि बच्चों की स्क्रीनिंग न होने के चलते इस बीमारी का पता शुरुआत में नहीं लग पाता है. जब बच्चों को देखने में ज्यादा दिक्कत होती है, तब पेरेंट्स बच्चों की आंखों की जांच कराते हैं लेकिन तब तक बच्चों की आंखों का नंबर काफी बढ़ चुका होता है. यह बीमारी बढ़ते-बढ़ते लेजी आई का भी रूप ले सकती है जो आंख का गंभीर डिसऑर्डर है.
ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट डॉ. राजीव मुखर्जी ने कहा कि बच्चों की आंखों में मायोपिया होने की बड़ी वजह सिर्फ स्क्रीन टाइम का ज्यादा होना ही नहीं है, बल्कि बच्चों का घरों से बाहर न निकलना एक बड़ा फैक्टर है. जो बच्चे रोजाना घरों से बाहर नहीं निकलते, दूर तक नहीं देखते, उनकी आंखों का नंबर तेजी से बढ़ता चला जाता है और एक समय ऐसा आता है, जब वे पास की चीजें ही साफ देख पाते हैं और दूर की चीजें उन्हें धुंधली दिखाई देने लगती हैं. यह बीमारी बढ़ते-बढ़ते लेजी आई का रूप ले सकती है जो आंख का एक गंभीर डिसऑर्डर है. ऐसा होने पर बच्चा कभी साफ नहीं देख पाता.
दूर तक देखना क्यों जरूरी
रोक सकते हैं मायोपिया की ग्रोथ
एम्स नई दिल्ली, आरपी सेंटर के प्रोफेसर डॉ. राजेश सिन्हा का कहना है, ‘हम मायोपिया की ग्रोथ को रोक सकते हैं. बच्चों को चश्मा लगाकर आंखों के तेजी से बढ़ते नंबर को रोका जा सकता है. मायोपिया की शुरआती स्टेज में दवाएं भी दी जा सकती हैं, इससे भी आंख का नंबर कम हो सकता है लेकिन जो सबसे जरूरी है, वह यह है कि इसका जितना जल्दी हो सके पता चल जाए. इसके लिए बच्चों की स्क्रीनिंग कराना बेहद जरूरी है.
डॉ. राजीव कहते हैं कि बच्चों में मायोपिया को रोकने के लिए सबसे अहम है कि कम से कम हर 4 साल के बच्चे की बेसिक स्क्रीनिंग कराई जाए, ताकि पता चले कि बच्चे को कितना दिखाई दे रहा है. अगर उसको देखने में थोड़ी सी भी दिक्कत है तो उसे एक साधारण चश्मा देकर उसकी नजर को बचाने की कोशिश की जा सके और उसकी आंखों में लेजी आई की परेशानी होने से रोका जा सके.
स्कूलों में स्क्रीनिंग का है बड़ा फायदा
डॉ. ऋषि मोहन कहते हैं कि जब भी स्कूलों में स्क्रीनिंग करते हैं तो वहां बहुत सारे बच्चे मिलते हैं, जिनकी विजन पूरी नहीं होती. होता क्या है कि अगर बच्चे को क्लास में ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ दिखाई नहीं दे रहा तो वह आगे आकर बैठ जाता है और इस तरह उसका काम चलता रहता है लेकिन जांच के अभाव में उसको मायोपिया हो जाता है, जिसका पता नहीं चल पाता है. हालांकि जिन स्कूलों में रोटेशन के हिसाब से कक्षा में बैठाते हैं, तो वहां बच्चों में मायोपिया को पहचानना थोड़ा आसान है.
क्या करें पेरेंट्स
डॉ. नम्रता कहती है कि साल में एक बार बच्चों की आंखों की स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए. वहीं अगर बच्चे को मायोपिया है और उसके चश्मा लगा हुआ है तो सबसे जरूरी है कि उसका फॉलोअप जारी रखें, उसे नियमित रूप से डॉक्टर के पास ले जाएं और उसकी आंखों की जांच कराते रहें, ताकि उसकी आंखों पर पड़ रहे असर के बारे में पता चलता रहे. बच्चे को बाहर एक्सपोजर दें, घर से बाहर फिजिकल एक्टिविटी जरूर कराएं.