टीचर ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु: इंदौर की चंद्रकांता को लाइलाज बीमारी; बोलीं- अब दर्द असहनीय, ऑटो में बांधकर ले जाते हैं स्कूल – Indore News

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ये कहते हुए इंदौर की प्राइमरी टीचर चंद्रकांता जेठवानी दोहराती है- अब मुझे इच्छामृत्यु मिल जाए तो बेहतर है। दरअसल, चंद्रकांता एक दुर्लभ बीमारी ओस्टियोजेनेसिस इंपरफेक्टा से पीड़ित हैं, जिसमें हड्डियां अपने आप टूटने लगती हैं। इसे अस्थि भंगुर रोग भी कहा जाता है।

बचपन से ही इस बीमारी से जूझ रही चंद्रकांता के लिए अब ये बीमारी असहनीय हो चुकी है। वो न तो चल सकती है और न ही कोई काम कर सकती है। वह हर दिन बच्चों को पढ़ाने के लिए व्हीलचेयर पर स्कूल आती हैं। एक ऑटोवाला व्हीलचेयर को बांधकर उन्हें स्कूल तक पहुंचाता है।

इन सभी वजहों से चंद्रकांता ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इच्छामृत्यु की मांग की है। चंद्रकांता इंदौर के जबरन कॉलोनी स्थित जिस प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती है वहां जाकर भास्कर ने उनसे मुलाकात की। उन्होंने बताया कि वह अपनी संपत्ति छात्रों और उस ऑटो ड्राइवर को देने वाली है जो मुसीबत में उनके साथ हमेशा खड़े रहे। पढ़िए रिपोर्ट…

बचपन से शरीर कमजोर, ऑपरेशन से बिगड़े हालात चंद्रकांता कहती हैं कि बचपन से ही उन्हें चलने में तकलीफ होती थी। उनकी हाइट भी सामान्य बच्चों की तुलना में कम ही थी। साल 2000 में डॉक्टरों की सलाह पर वह महाराष्ट्र के अकोला गई, जहां उनके एक पैर की चार बार सर्जरी की गई। दुर्भाग्यवश चारों ऑपरेशन असफल रहे और स्थिति पहले से भी ज्यादा बिगड़ गई। इसके बाद वह वॉकर के सहारे चलने लगी।

चंद्रकांता ने एमएससी बायोकेमिस्ट्री से अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 2001 में वह माध्यमिक शिक्षक के तौर पर स्कूल में पढ़ाने लगी। चंद्रकांता कहती है कि उस समय मैं स्कूटी से स्कूल जाया करती थीं। मुझे बच्चों को पढ़ाने का जुनून इस कदर था कि मैंने अपनी तकलीफों को हर समय इग्नोर किया, लेकिन वक्त के साथ हालत बिगड़ती चली गई।

2020 में सर्जरी के बाद बिगड़ी सेहत, अब बैठा भी नहीं जाता चंद्रकांता बताती हैं कि 2020 में उनकी तबीयत ज्यादा खराब हुई। शरीर में कंपकंपी छूटती थी। इसके इलाज के लिए उन्होंने इंदौर के ही एक हड्डी रोग विशेषज्ञ से चेकअप कराया। डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं इसका गंभीर रिएक्शन हुआ। इसके बाद तो वह चलने फिरने की भी मोहताज हो गई।

पिछले पांच साल से वह न तो खुद से बैठ सकती हैं, न करवट बदल सकती हैं। उनके हाथ अकड़ जाते हैं, हड्डियां तिरछी हो चुकी हैं और दर्द इतना असहनीय होता है कि सामान्य स्थिति में आने में घंटों लगते हैं।

दर्द में भी स्कूल जाती हैं, व्हीलचेयर को 2 लोग संभालते हैं इतनी गंभीर हालत में भी चंद्रकांता ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा। वह व्हीलचेयर पर स्कूल जाती हैं, लेकिन वह व्हीलचेयर भी खुद नहीं चला सकतीं। दो लोग उन्हें घर से उठाकर स्कूल लाते हैं और फिर वापस ले जाते हैं। यह सब सिर्फ इसलिए कि वह बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं। उन्होंने कहा-

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मैं जीने के लिए नहीं, पढ़ाने के लिए जिंदा थी। पर अब मैं थक चुकी हूं और लोगों पर बोझ बन गई हूं।

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परिवार में कोई नहीं, देखभाल के लिए बस एक सहायक चंद्रकांता के माता-पिता, भाई-बहन की पहले ही मृत्यु हो चुकी है और परिवार के बाकी लोगों ने उनसे कभी कोई रिश्ता नहीं रखा। परिवार में कोई ऐसा नहीं है जो उनकी पूरी देखभाल कर सके। एक केयरटेकर है, जो दिन में सिर्फ दो बार आती है। बाकी समय उन्हें अकेले ही रहना पड़ता है। स्कूल जाने के लिए भी लोगों की मदद लेनी पड़ती है।

दूसरी बीमारियों ने भी घेरना शुरू कर दिया चंद्रकांता ने बताया कि अब उन्हें डायबिटीज, स्किन रिएक्शन, और अन्य कई फिजिकल समस्याएं हो चुकी हैं। उनका मानना है कि ये सभी परेशानियां आगे चलकर और बढ़ेंगी, और वह अब इस सब के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अब वह न मानसिक रूप से इस दर्द को सहने में सक्षम हैं और न ही शारीरिक रूप से।

उन्होंने सरकार से साफ तौर पर कहा है कि उन्हें अब और नहीं जीना है। उनका अंतिम निवेदन यही है कि उन्हें कानूनन इच्छामृत्यु की इजाजत दी जाए। चंद्रकांता अपनी पूरी बॉडी इंदौर मेडिकल कॉलेज को दान करने की घोषणा पहले ही कर चुकी हैं। वह कहती हैं कि दर्द इतना ज्यादा है कि अगर मेरी जगह कोई और होता, तो अब तक आत्महत्या कर चुका होता।

छात्रों और ऑटो वाले को संपत्ति देने की इच्छा चंद्रकांता ने यह भी बताया कि उन्होंने अपनी वसीयत बनवाई थी। जिसमें अपनी संपत्ति पढ़ाए हुए 6 छात्रों के नाम की थी। अब उनमें से कई छात्रों की नौकरी लग गई है, इसलिए अब वे नई वसीयत बनाएंगी। इसमें वह कुछ नए बच्चों के नाम जोड़ना चाहती है।

वहीं पिछले 6 सालों से जो ऑटो ड्राइवर उन्हें स्कूल से लाने और ले जाने का काम कर रहा है उसे भी वसीयत में शामिल करेंगी। वो कहती हैं-

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ऑटोवाले ने मेरे जीवन के सबसे कठिन समय में मेरा साथ दिया है। वो मेरी संपत्ति से कुछ न कुछ पाने का हकदार है।

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2017 में भी चिट्ठी लिखकर मांगी थी इच्छामृत्यु यह पहली बार नहीं है जब चंद्रकांता ने इच्छामृत्यु की मांग की हो। 2017 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने अपनी हालत का जिक्र करते हुए मरने की इजाजत मांगी थी, तब उन्हें सरकार की तरफ से जवाब मिला कि भारत में इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं है। अब जब उनका दर्द और बढ़ चुका है, तो उन्होंने सीधे राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि उन्हें सम्मानपूर्वक मरने की अनुमति दी जाए।

प्रशासन ने केयरटेकर देने का भरोसा दिया कुछ दिन पहले चंद्रकांता के प्राथमिक स्कूल की बिल्डिंग गिर गई थी। जब यहां मीडिया कवरेज के लिए पहुंचा तो चंद्रकांता ने मीडिया के सामने राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की मांग की थी। चंद्रकांता की अपील दिल्ली पहुंची, तो सामाजिक न्याय विभाग की टीम ने उनसे मुलाकात कर काउंसलिंग की, लेकिन चंद्रकांता ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘मैं अपने फैसले से पीछे नहीं हटूंगी।’

उन्होंने एक अनुरोध और किया कि उन्हें फुल टाइम केयरटेकर मिल जाए, ताकि उनकी देखभाल बेहतर हो सके। सामाजिक न्याय विभाग के अफसरों ने चंद्रकांता के इस अनुरोध को पूरा करने का भरोसा दिया है। सामाजिक न्याय विभाग के जॉइंट डायरेक्टर पवन चव्हाण ने बताया कि हमने चंद्रकांता जी के पास क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट भेजा था।

हमें फीडबैक मिला कि वह एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित है, जिससे उन्हें काफी तकलीफ है। काउंसलर ने अपने स्तर पर काउंसलिंग की है। इसके बाद भी चंद्रकांता जी अपने इच्छामृत्यु के निर्णय से पीछे नहीं हटी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सक्रिय नहीं निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति दी है भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु यानी किसी को जानबूझकर मौत देना ये पूरी तरह से गैर कानूनी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ वैध माना है। साल 2011 में अरुणा शानबाग मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति दी थी।

अरुणा शानबाग 1973 से कोमा जैसी हालत में थीं। पत्रकार पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में अरुणा की इच्छामृत्यु की याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ मान्यता दी थी।। इसके बाद साल 2018 में कॉमन कॉज नाम के एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

एनजीओ ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी को गरिमा से मरने के अधिकार और लिविंग विल की मांग की थी। उस समय केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया था, लेकिन अदालत ने याचिका को स्वीकार किया।

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