Swami Kailashananda Giri: कहते हैं भोलेनाथ बड़े भोले हैं इनकी पूजा में अनेक सामग्री की जरुरत नहीं होती. सिर्फ एक लौटा जल और बेलपत्र मात्र से महादेव प्रसन्न हो जाते हैं. शिव पुराण के अनुसार जल और बेलपत्र के बिना शिव जी की पूजा अधूरी मानी जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव को बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है. स्वामी कैलाशानंद गिरी ने इसके पीछे की असली कहानी बताई है आइए जानते हैं.
स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें शिव को क्यों प्रिय है बेलपत्र
स्वामी कैलाशानंद गिरी के अनुसार शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने 84000 हजार साल तक कठिन तपस्या की थी. इस दौरान देवी पार्वती सिर्फ सूखे बेलपत्र ग्रहण करती थी, इससे उनका शरीर काला पड़ गया था.
जब शिव जी माता पार्वती के समक्ष गए और पूछा कि देवी आपका शरीर श्याम वर्ण हो चुका है, आपसे विवाह कौन करेगा ? तब माता ने कहा कि आप मेरा वरण कीजिए. मैं आपको मन ही मन अपना पति स्वीकार कर चुकी हूं.
शिव जी जानते थे कि मां पार्वती उनके अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी. महादेव ने माता गंगा का आव्हान किया और माता पार्वती गंगा स्नान के बाद पुन: गौर वर्ण की हो गईं. माता की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा कि जो भी उन्हें बेलपत्र अर्पित करेगा, वह उसकी सारी इच्छा पूरी करेंगे.
शिव पुराण के अनुसार – काशीवास निवासी च कालभैरव पूजनम् ,कोटि कन्या महादानं विल्वपत्रं शिवार्पणम् । अर्थात काशी वासी भगवान विश्वनाथ या कोई भी प्रतिष्ठित शिवलिंग पर जो भी बेलपत्र अर्पित करता है वह एक करोड़ कन्यादान का फल प्राप्त करता है.
“बिल्वपत्रस्य दर्शनं, स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥”
इस श्लोक का अर्थ है कि बिल्वपत्र का दर्शन, स्पर्श और अर्पण करने से भीषण पापों का नाश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो बेल वृक्ष के नीचे शिव लिंग की पूजा करता है, वो मोक्ष को प्राप्त करता है
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
.