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Success Story: जरा सोचिए, एक छोटी सी बोतल जो घाव पर लगाते ही इंफेक्शन को भगा दे, नहाने पर ताजगी दे और और कोरोना जैसे महामारी में घर की ढाल बन जाए. ये बोतल कोई जादू की चीज नहीं, बल्कि वो साथी जो हर भारतीय घर में पहली एड बॉक्स से लेकर किचन शेल्फ तक राज करता है. लेकिन क्या पता था कि इस बोतल के पीछे छुपी है एक ऐसी कहानी जो 1840 से शुरू होकर लाखों जिंदगियां बचा चुकी है? इसकी शुरुआत एक गरीब आटा चक्की वाले की मेहनत से हुई थी.
जब घर में किसी बच्चे को चोट लग जाती है या फिर किचन में काम करते-करते आपका हाथ कट जाए तो आप सबसे पहले एक ऐसी दवाई ढूंढ़ते हैं जिससे घाव से खून न निकले और आपको राहत भी मिले. जी हां हम बात कर रहे हैं हर घर में इस्तेमाल होने वाली Dettol की.

हर घर में Dettol की बोतल आपने देखी ही होगी. ये सिर्फ एंटीसेप्टिक नहीं, बल्कि भरोसे की कहानी है. 100 साल से ज्यादा पुरानी इस कंपनी की शुरुआत 1840 में इंग्लैंड के छोटे शहर से हुई थी. आइजैक रैकेट आटे की चक्की चलाते थे. इसमें उनका मुनाफा कम था और मुश्किलें ज्यादा थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. देखा कि लोग सफाई पर ध्यान नहीं देते.

उन्होंने सोचा कुछ ऐसा बनाएं जो सफाई आसान करे. इसके बाद उन्होंने रैकेट एंड संस कंपनी बनाई. वह स्टार्च, नील, क्लीनर्स बेचने लगे. इनकी क्वालिटी कमाल की थी. 1880 तक हर घर में नाम पहुंच गया. लोग इसे घर की सेहत का हिस्सा मानने लगे.

1929 में डॉक्टर विलियम रेनाल्ड्स ज्वाइन हुए. उस समय बीमारियां इंटरनल मानते थे. लेकिन रेनाल्ड्स बोले बाहरी इंफेक्शन से खासकर बच्चा जन्म के बाद महिलाओं को प्यूरेपेरल सेप्सिस हो रहा है जिससे लाखों मौतें हुई है. मार्केट में कीटाणुनाशक (Disinfectant) थे लेकिन इनकी स्मेल तेज थी, स्किन जलन और कैंसर रिस्क का डर था. रेनाल्ड्स ने मिशन लिया – पावरफुल और सेफ एंटीसेप्टिक बनाने का. महीनों रिसर्च की और सैकड़ों टेस्ट के बाद आखिर डेटोल तैयार किया.

1933 में लंदन के क्वीन चार्लोट हॉस्पिटल में ट्रायल हुआ. 2 साल में सेप्सिस 50 फीसदी कम हो गया. पहले फार्मेसी में प्रिस्क्रिप्शन पर और फिर आम लोगों के लिए इसे बनाया गया. 1930-40 में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका, कनाडा तक इसकी पहुंच गई. 1936 में ये भारत में आया. यहां नीम हल्दी पर भरोसा था. डेटोल को अंग्रेजी दवा कहते थे. गांव में डॉक्टर कम यूज करते थे लेकिन कंपनी ने कैंपेन चलाए डॉक्टर्स को सैंपल दिए.

1939 वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान सैनिक इंफेक्शन से मरते थे और तब डेटोल फ्रंटलाइन हीरो बना. ब्रिटिश गवर्नमेंट ने एसेंशियल सप्लाई में इसे भी रखा. वॉर खत्म होते यूरोप में इसे हाउसहोल्ड नेम दिया. भारतीय लोगों का भी इस कंपनी ने विश्वास जीता. 1945 में पहली फैक्ट्री फिर 1980 तक 6.5 करोड़ लोगों ने इसका यूज किया.

1999 में रैकेट का बेंकाइजर से मर्जर हुआ. 90 में डेटोल सोप, हैंडवाश, क्लीनर भी शुरू किया गया. कोविड में तो डिमांड आसमान पर पहुंच गई. सैल्यूट्स कैंपेन. डिलीवरी बॉय से लेकर नर्स के सामान तक में इसका इस्तेमाल किया गया. एड्स में मां बच्चों का इमोशनल बॉन्ड दिखाकर डेटोल ने साफ सफाई को डेली लाइफ का हिस्सा बना दिया. 2024 के पूरे साल के लिए रेकिट बेंकाइजर ग्रुप पीएलसी ने कुल नेट रेवेन्यू 14,169 मिलियन पाउंड (लगभग 18.2 बिलियन डॉलर) बताया है.

आज भी Dettol का इस्तेमाल हर भारतीय घर में होता है. कंपनी का सबसे बड़ा कदम पीएम मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से पार्टनरशिप कर रूरल इंडिया में हाइजीन अवेयरनेस को भी प्रमोट किया गया है.
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