Nuclear Plant: यूरोप के सबसे बड़े परमाणु पावर स्टेशनों में से एक, ग्रावेलिन्स न्यूक्लियर पावर स्टेशन (उत्तरी फ्रांस) को इस हफ्ते अचानक आंशिक रूप से बंद करना पड़ा. वजह कोई तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि जेलिफ़िश का विशाल झुंड था. द न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट की मुताबिक EDF कंपनी, जो इस प्लांट का संचालन करती है, ने बताया रविवार आधी रात से पहले छह में से तीन रिएक्टर बंद कर दिए गए. सोमवार सुबह चौथा रिएक्टर भी बंद करना पड़ा.
सुरक्षा पर कोई असर नहीं
कंपनी के मुताबिक, जेलिफ़िश प्लांट के पंपिंग स्टेशनों के फिल्टर ड्रम में फंस गईं. ये हिस्से प्लांट के गैर-न्यूक्लियर हिस्से में आते हैं. EDF ने स्पष्ट किया कि इसका सुरक्षा, कर्मचारियों या पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. रिएक्टरों को बंद करना सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा था और अब विशेषज्ञ उन्हें सुरक्षित रूप से दोबारा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं.
आखिर क्यों होती है यह समस्या?
परमाणु संयंत्रों को रिएक्टर ठंडा रखने के लिए बड़ी मात्रा में समुद्री पानी की आवश्यकता होती है. आमतौर पर पाइपों में लगे स्क्रीन मलबा और समुद्री जीवों को अंदर जाने से रोकते हैं. लेकिन जब जेलिफ़िश का विशाल झुंड एक साथ पहुंच जाता है तो ये स्क्रीन खुद ही ब्लॉक हो जाती हैं. यही नहीं, मर चुकी जेलिफ़िश शरीर के 95% पानी होने के कारण जेल जैसी तरल अवस्था में बदलकर सिस्टम के भीतर पहुंच जाती हैं और अंदर भी दिक्कतें पैदा कर सकती हैं.
बढ़ती गर्मी और जेलिफ़िश की बढ़ती संख्या
ग्रावेलिन्स पावर स्टेशन उत्तरी सागर के किनारे स्थित है. यहां से निकलने वाला गर्म पानी एक व्यावसायिक फिश फार्म में मछलियों को पालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र के बढ़ते तापमान के साथ जेलिफ़िश की संख्या में भी लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है.
वैश्विक चुनौती बन चुकी है जेलिफ़िश
समुद्री शोध संस्थानों के मुताबिक, जेलिफ़िश के झुंड अब पहले से अधिक बार और बड़े पैमाने पर दिखाई दे रहे हैं. इसके पीछे ओवरफिशिंग, जलवायु परिवर्तन और तटीय विकास जैसी वजहें जिम्मेदार मानी जाती हैं. दुनिया भर के कई न्यूक्लियर प्लांट पहले भी जेलिफ़िश की वजह से प्रभावित हो चुके हैं. 2011 में इज़राइल, जापान और स्कॉटलैंड के परमाणु संयंत्रों को बंद करना पड़ा. 2013 में स्वीडन के एक रिएक्टर को जेलिफ़िश ने पूरी तरह पंगु बना दिया.
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