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Revolution in Cancer Treatment: कैंसर के इलाज में टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट ने बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की है. देश में पहली बार अल्ट्रा न्यूक्लियर थेरेपी के माध्यम से एक 17 साल के किशोर को लिवर कैंसर से पूरी तरह मुक्त कर दिया है.
भारतीय चिकित्सा जगत में क्रांतिकारी सफलता मिली है. देश में पहली बार कैंसर के इलाज में 100% सफलता मिली है. ऐसा केवल विकसित देशों में ही संभव मानी जाती थी. यह उपलब्धि न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में एक मिसाल बन सकती है. भारत ने कैंसर के इलाज में जो तकनीक अपनाई है, वह बिल्कुल आधुनिक और अत्याधुनिक है. इसके ज़रिए मरीजों को सर्जरी के बिना ही राहत मिल रही है और अब तक इलाज करवाने वाले सभी मरीज पूरी तरह ठीक हुए हैं. अब सवाल है आखिर कौन सा है यह अस्पताल?

हाल ही में मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के ACTREC विभाग में अल्ट्रा हाई रेडिएशन थेरेपी के माध्यम से 17 साल के एक लड़के की जान बचाई गई है. इस किशोर को घातक कैंसर था. पहली बार इसका 14 साल की उम्र में इलाज हुआ था लेकिन बीमारी दोबारा उभर गई. इसके बाद कई दौर की चर्चा के बाद बच्चे को अल्ट्रा न्यूक्लियर थेरेपी देने का फैसला लिया गया. इसके लिए अमेरिकी अस्पतालों के बड़े-बड़े डॉक्टरों से भी सलाह-मशविरा किया गया.

इस लड़के को दुर्लभ और आक्रामक कैंसर न्यूरोब्लास्टोमा था. उसे बचाने के लिए डॉक्टरों ने उसे 131-Iodine MIBG थेरेपी दी. यह थेरेपी 800 मिलीक्यूरी डोज़ की थी, जो अब तक भारत में किसी भी मरीज को दी गई सबसे अधिक रेडियोएक्टिव डोज़ है. यह डोज़ निर्धारित सीमा 300 mCi से काफी अधिक थी. इस बीमारी के पूरी तरह ठीक होने की गुंजाइश बहुत कम होती है. लेकिन पहली बार इस बीमारी को इस थेरेपी की मदद से पूरी तरह ठीक कर दया गया.

इस थेरेपी की योजना तीन महीने पहले से बनाई गई थी, जिसमें अमेरिका के मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टरों से भी सलाह ली गई थी. एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) से अनुमति लेने के बाद इस थेरेपी की तैयारी की गई. इसके लिए अस्पताल में एक विशेष रेडिएशन आइसोलेशन वार्ड बनाया गया था ताकि मरीज के इलाज के दौरान किसी अन्य मरीज को रेडिएशन का खतरा न हो.

इतनी तीव्र रेडियोथेरेपी का सबसे बड़ा खतरा होता है बोन मैरो सप्रेशन. बोन मैरो में खून बनता है. बोन मैरो सेपरेशन का मतलब है कि उस व्यक्ति की हड्डियों से बोन मैरो निकल जाएगा जिसके कारम शरीर में रक्त कोशिकाओं का बनना बंद हो जाता है. ऐसे में यह एक चुनौती थी कि बोन मैरो को कैसे बचाया जाए. इसके लिए डॉक्टरों ने एक जुगाड़ निकाला. मरीज से बोन मैरो को निकाल सुरक्षित रख लिया गया. इसके बाद थेरेपी दी गई और उसके तत्काल बाद शरीर में वापस डालते हैं. यह प्रक्रिया अत्यंत सावधानीपूर्वक की जाती है.

इलाज के दौरान रेडिएशन के प्रभाव की वजह से मरीज को पूरी तरह 5 दिनों के लिए अकेले एक कमरे में आइसोलेट किया गया. डॉक्टरों ने इस दौरान सुरक्षा को प्राथमिकता दी और किसी भी संपर्क को न्यूनतम रखते हुए इलाज पूरा किया. इलाज के बाद लड़के की हालत में जबरदस्त सुधार देखा गया और अब वह कैंसर मुक्त है. डॉक्टरों ने उसे पूरी तरह से स्वस्थ घोषित कर दिया है और वह अब घर लौट चुका है.

यह भारतीय चिकित्सा विज्ञान में एक ऐतिहासिक घटना है. टाटा मेमोरियल सेंटर के डॉक्टरों ने साबित कर दिया है कि सही योजना, विशेषज्ञता और सहयोग के माध्यम से जटिल रोगों का भी इलाज संभव है. यह घटना भविष्य में ऐसे कई कैंसर मरीजों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आएगी. इससे कैंसर के असाध्य बीमारियों को इस थेरेपी के माध्यम से इलाज किया जा सकता है.