रावण ने रचा था शिव तांडव स्तोत्र: शक्ति के अहंकार में रावण कैलाश पर्वत उठाने लगा, तभी पर्वत के नीचे दब गया था उसका हाथ

27 मिनट पहले

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अभी सावन महीना चल रहा है, इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा करने की परंपरा है। शिव पूजा में मंत्र जप के साथ ही शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है। शिव जी को प्रिय शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने की थी। रावण ने क्यों रचा शिव तांडव स्तोत्र, जानिए पूरी कथा…

रावण को अपनी शक्ति का अहंकार था। इसी अहंकार की वजह से वह सभी को कमजोर समझता था। अपनी शक्ति के अहंकार में एक दिन रावण कैलाश पर्वत पहुंच गया। उस समय शिव जी ध्यान में लीन थे। रावण ने शिव जी को कैलाश पर्वत सहित उठाकर अपने साथ लंका ले जाना चाहता था। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा, तभी शिव जी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत का भार बढ़ा दिया। पर्वत का भार बढ़ने से रावण कैलाश को उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया।

पर्वत के नीचे दबे हाथ को निकालने की रावण ने बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। तब रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। शिव जी रावण द्वारा रचे गए शिव तांडव स्तोत्र को सुनकर प्रसन्न हो गए और कैलाश पर्वत का भार कम कर दिया, इसके बाद रावण ने पर्वत के नीचे से हाथ निकाल लिया।

प्रसंग की सीख

  • अहंकार का त्याग करें – अहंकार के कारण ही रावण कैलाश पर्वत उठाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया। जब रावण ने अहंकार छोड़कर शिव जी की भक्ति की, तब उसे शिव कृपा मिली। जब हम अहंकार छोड़कर विनम्रता की ओर बढ़ते हैं, तब ही भगवान की कृपा मिलती है।
  • मुश्किल समय में भी भक्ति न छोड़ें – जब रावण का हाथ पर्वत के नीचे दबा, तब उसने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए भक्ति की। शिव तांडव स्तोत्र रचा। इसके फलस्वरूप उसे शिव कृपा मिल गई और उसका दुख दूर हो गया। हमें भी मुश्किल समय में भगवान की भक्ति नहीं छोड़नी चाहिए।

शिव तांडव स्तोत्र की खास बातें

  • ये स्तोत्र संस्कृत में है, इसकी लयात्मकता इसे बहुत खास बनाती है। इसमें भगवान शिव के रौद्र रूप, तांडव नृत्य और संपूर्ण ब्रह्मांडीय शक्ति का वर्णन किया है। रावण ने इसमें 17 श्लोकों के माध्यम से शिव की महिमा का गान किया है।
  • शिव तांडव स्तोत्र के नियमित पाठ से वाणी सिद्धि, धन-समृद्धि, और आत्मबल की प्राप्ति होती है।
  • रोज सूर्योदय से ठीक पहरे ब्रह्ममुहूर्त में या शाम को प्रदोष काल में इसका पाठ करना श्रेष्ठ माना जाता है।
  • शिवलिंग के पास दीप जलाएं और फिर इस स्तोत्र का पाठ करें।

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