जहरीली हवा और कार के धुएं से बढ़ रहा ब्रेन की इस बीमारी का खतरा, नई स्टडी में हुआ खुलासा

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Air Pollution and Dementia Risk: एक नई स्टडी के मुताबिक जहरीली हवा और कार के धुएं से निकलने वाले सूक्ष्म कण डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकते हैं. दुनियाभर में अगले 25 सालों में डिमेंशिया के मरीज करीब 3 गुना बढ़ सकते…और पढ़ें

कारों से निकलने वाला धुआं डिमेंशिया का रिस्क बढ़ा देता है.

हाइलाइट्स

  • वायु प्रदूषण से डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है.
  • कार के धुएं से डिमेंशिया का जोखिम 13% बढ़ता है.
  • 2050 तक डिमेंशिया के मरीज 15.28 करोड़ हो सकते हैं.
New Study on Dementia: डिमेंशिया एक मेंटल डिसऑर्डर है, जिसमें लोगों की याददाश्त, सोचने-समझने और फैसले लेने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. यह बीमारी प्रोग्रेसिव होती है और लगातार बढ़ती रहती है. इसकी वजह से लोगों की मेमोरी इतनी कमजोर हो जाती है कि वे रोजमर्रा के काम भी नहीं कर पाते हैं और कई बार घर का पता तक भूल जाते हैं. आमतौर पर यह बीमारी ज्यादा उम्र के लोगों को होती है. हालांकि सिर की चोट, स्ट्रोक, जेनेटिक फैक्टर और लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं डिमेंशिया के प्रमुख माने जाते हैं. हालांकि एक हालिया रिसर्च में पता चला है कि एयर पॉल्यूशन और कारों से निकलता धुआं भी डिमेंशिया का खतरा बढ़ा रहा है. शहरों में रहने वाले लोगों पर इसका खतरा ज्यादा है.

द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में पब्लिश नई स्टडी में पता चला है कि वायु प्रदूषण और खासकर कार के धुएं से होने वाला प्रदूषण डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकता है. हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 के हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से डिमेंशिया का जोखिम 17 प्रतिशत बढ़ जाता है. वहीं पीएम 2.5 में मौजूद कालिख के प्रत्येक 1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से डिमेंशिया का जोखिम 13 प्रतिशत बढ़ जाता है. यह कालिख कार के धुएं और लकड़ी जलाने से निकलती है. कुल मिलाकर कार का धुआं भी डिमेंशिया का जोखिम काफी बढ़ा रहा है, जो बड़े शहरों में चिंता का विषय बन गया है.

इस स्टडी के मुताबिक दुनियाभर में इस वक्त करीब 5.74 करोड़ लोग डिमेंशिया के सबसे कॉमन टाइप अल्जाइमर से पीड़ित हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. एक्सपर्ट्स ने आशंका जताई है कि साल 2050 तक विश्व में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या बढ़कर 15.28 करोड़ तक पहुंच सकती है. शोधकर्ताओं की मानें तो वायु प्रदूषण ब्रेन में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का कारण बनता है, जो डिमेंशिया की शुरुआत या इस समस्या को बढ़ाने में सहायक होता है. स्टडी में यह भी सामने आया कि इन प्रदूषकों का प्रभाव वैस्कुलर डिमेंशिया पर ज्यादा गंभीर है, जो मस्तिष्क में ब्लड फ्लो कम होने के कारण होता है. यह अध्ययन वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की तत्काल जरूरत को उजागर करता है.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के डॉ. क्रिश्चियन ब्रेडेल ने कहा कि यह अध्ययन दिखाता है कि डिमेंशिया की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ शहरी नियोजन, परिवहन नीति और पर्यावरण नियमों की भी जरूरत है. वायु प्रदूषण को कम करने से स्वास्थ्य, सामाजिक, जलवायु और आर्थिक लाभ मिल सकते हैं. यह मरीजों, उनके परिवारों और देखभाल करने वालों के बोझ को कम करेगा और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव को भी हल्का करेगा. इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 51 वैज्ञानिक अध्ययनों का विश्लेषण किया, जिसमें 2.9 करोड़ से अधिक लोगों का डेटा शामिल था. ये अध्ययन मुख्य रूप से उत्तर अमेरिका, यूरोप, एशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च आय वाले देशों से थे. 34 अध्ययनों के मेटा-विश्लेषण में पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कालिख का डिमेंशिया से संबंध पाया गया.

अमित उपाध्याय

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. …और पढ़ें

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. … और पढ़ें

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जहरीली हवा और कार के धुएं से बढ़ रहा ब्रेन की इस बीमारी का बढ़ रहा खतरा: स्टडी

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