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India Developing New Medicine: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा कि हम नई-नई दवाइयां बनाएंगे और विश्व की फार्मेसी बनेंगे ताकि हमारी सस्ती दवाइयां दुनिया भर को मिल सके.

दुनिया भर की एंटीबायोटिक दवा फेल हो रही है क्योंकि यह रेजिस्टेंस होने लगी है. मतलब दवा बैक्टीरिया को मारने में अक्षम हो रही है. पिछले 30-40 साल में दुनिया में नई एंटीबायोटिक दवा नहीं बनी है. जो पुरानी एंटीबायोटिक दवा है वह बैक्टीरिया पर बेअसर होने लगी है. इस कारण पूरी दुनिया को ऐसी एंटीबायोटिक दवा की जरूरत थी जो हर तरह के बैक्टीरिया को मार दें. इस परेशानी से निपटने के लिए भारत ने पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन को लॉन्च कर दिया है. पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक इसे फार्मा कंपनी वोलकार्ड द्वारा मिकनाफ नाम से बाजार में उतारा गया है. यह देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक है, जिसका उद्देश्य बैक्टीरिया रेजिसटेंस यानी एएमआर से निपटना है. निमोनिया की बीमारी में इसकी तीन खुराक दी जाती है जो पहले की दवाइयों की तुलना में 10 गुना ज्यादा असरकारी है. इसका कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है. इस वर्ग में कोई नया एंटीबायोटिक तीन दशकों से अधिक समय से दुनिया भर में विकसित नहीं किया गया है. यह दवा एजिथ्रोमाइसिन की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है. लेकिन इस दवा के विकास में भारत के लंबे पुरुषार्थ का परिणाम है. इसमें 14 साल लग गए और 500 करोड़ का निवेश किया गया.
भारत ने पेशाब से संबंधित इंफेक्शन को खत्म करने के लिए जो एंटीबायोटिक विकसित की है उसे अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी मंजूरी दे दी है. इस दवा को चेन्नई स्थित ऑर्किड फार्मा ने विकसित किया है. इसका नाम एनमेटाज़ोबैक्टम Enmetazobactam है. भारत में ईजाद किया गया पहला एंटीमाइक्रोबियल है जिसे अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) से मंजूरी मिली है. यह इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली दवा यूटीआई, निमोनिया और ब्लड फ्लो में इंफेक्शन जैसी गंभीर स्थितियों का इलाज करती है. यह दवा बैक्टीरिया को सीधे निशाना बनाने के बजाय उनके बचाव तंत्र पर प्रहार करके काम करती है. बैक्टीरिया अक्सर बीटा-लैक्टामेज़ जैसे एंजाइम बनाते हैं, जो एंटीबायोटिक को नष्ट कर देते हैं. यही कारण है कि यूटीआई में पुराने एंटीबायोटिक अक्सर काम नहीं करती. लेकिन एनमेटाज़ोबैक्टम इन एंजाइमों से मज़बूती से जुड़कर उन्हें निष्क्रिय कर देता है जिससे एंटीबायोटिक बैक्टीरिया को प्रभावी रूप से मार पाती है.
डीआरडीओ ने कोरोना की नई दवा बनाई
जब कोरोना को लेकर पूरी दुनिया में तबाही मची थी. कोई दवा नहीं थी तब भारत से अमेरिका ने टेट्रासाइक्लिन दवा मंगाई. ये दवा तो कोरोना की नहीं थी लेकिन माना जाता था कि इससे कोरोना होने का खतरा कम हो जाता है. इसके बाद भारत ने तेजी से स्वदेसी वैक्सीन बनाई और इसके कुछ साल बाद डीआरडीओ और डॉ. रेड्डी लेबोरेटरी ने मिलकर तेजी से खाने वाली गोली बनाई जो कोरोना मरीजों को तेजी से रिकवर करती है और ऑक्सीजन की जरूरत को कम करती है.
जायडस कैडिला ने डायबिटीज के लिए कई सालों की रिसर्च के बाद सरोग्लिटाजार Saroglitazar दवा बनाई है. इसे लिपाग्लिन ब्रांड नाम से बाज़ार में उतारा गया ताकि टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीजों में डायबिटिक डिसलिपिडेमिया का इलाज किया जा सके. यह अपनी तरह की पहली दवा थी जिसे भारत में मंजूरी मिली, खासकर उन मरीजों के लिए जिनका डिसलिपिडेमिया केवल स्टैटिन से पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं हो पाता. लिपाग्लिन को दुनिया के कई देशों से मंजूरी मिल चुकी है.
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑप इंटीग्रेटिव मेडिसीन CSIR-IIIM मिलकर देश में स्वदेशी तकनीक पर आधारित कई नई दवाओं के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रही है. इसने कई दवाओं को विकसित कर भी चुका है जिसमें ओरल सेंटक्रोमाइन प्रमुख है जो नॉन-स्टेरॉयड गर्भनिरोधक गोलियां है. इसी तरह कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवा बनाने की दिशा में बहुत आगे बढ़ चुकी है. यह आयुर्वेद पर आधारित गोगुल पेड़ से बनाया जा रहा है. अर्थराइटिस, अलजाइमर, कैंसर जैसी कई असाध्य बीमारियों की दवा के विकास पर भी भारत तेजी से काम कर रहा है.
भारत का फार्मा इडस्ट्री दे रही टक्कर
1990 में भारत का फार्मा इंडस्ट्री महज एक अरब डॉलर का था. लेकिन आज यह बढ़कर 65 अरब तक पहुंच चुका है. भारत का फार्मा सेक्टर 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. भारत की फर्मास्युटिकल इंडस्ट्री वर्तमान में 65 अरब डॉलर का है लेकिन प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद इस क्षेत्र में तेज निवेश हो रहा है. इसलिए 2030 तक यह 130 अब डॉलर से ज्यादा पहुंचने का अनुमान है. भारत 200 से ज्यादा देशों में अपनी दवाइयां भेजता है. भारत अकेले 27.9 अरब डॉलर का दवा प्रोडक्ट अमेरिका जैसे देशों को भेजता है.
Excelled with colors in media industry, enriched more than 18 years of professional experience. L. Narayan contributed to all genres viz print, television and digital media. He professed his contribution in the…और पढ़ें
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