- Hindi News
- Lifestyle
- Social Media Addiction Vs Child Health; Kids Brain Development | Parenting Issues
12 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल
- कॉपी लिंक
सवाल- मैं मेरठ का रहने वाला हूं। हाल ही में मैंने एक खबर पढ़ी कि 16 साल के एक बच्चे ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर लाइक और कमेंट न मिलने पर आत्महत्या कर ली। इस खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया है। मेरा भी एक 15 साल का बेटा है। वह पढ़ाई में अच्छा है, लेकिन उसका असली जुनून क्रिएटिव कंटेंट बनाने में है। वह यूट्यूब पर अपने बनाए शॉर्ट वीडियोज, ड्रॉइंग्स और म्यूजिक क्लिप्स डालता है।
शुरू में हम खुश थे कि उसका रुझान क्रिएटिविटी में है। लेकिन पिछले कुछ समय से मैं देख रहा हूं कि उसकी खुशी, उसका मूड, सब कुछ इस बात पर टिका होता है कि कितने लोग उसे नोटिस कर रहे हैं। जब किसी पोस्ट पर अच्छे लाइक और कमेंट्स आते हैं तो वो बहुत खुश रहता है, खूब बातें करता है।
वहीं जब किसी वीडियो पर कम रिस्पॉन्स आता है, वह एकदम चुप हो जाता है, खुद में सिमट जाता है। वह कुछ कहता नहीं है, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब-सी मायूसी होती है। मुझे डर लगने लगा है कि वह अपनी पहचान डिजिटल रिएक्शंस से जोड़ने लगा है। मैं उसे यह कैसे समझाऊं कि लाइक, व्यूज और कमेंट से उसकी पहचान नहीं है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर
जवाब- आपकी चिंता एक संवेदनशील और जागरूक पिता होने का संकेत है। यकीन मानिए, आज बहुत से पेरेंट्स इसी चुनौती से गुजर रहे हैं। सोशल मीडिया टीन एजर्स को ऐसा झूठा आईना दिखाता है, जिसमें वे खुद को दूसरों के लाइक्स और कमेंट्स के पैमाने पर आंकने लगते हैं। यह उनकी मेंटल हेल्थ के लिए बेहद नुकसानदायक है। लेकिन इसका हल डराने या डांटने में नहीं, बल्कि बातचीत, समझदारी और इमोशनल सपोर्ट में छिपा है।
आपने बहुत ईमानदारी से बताया कि शुरुआत में आप उसके क्रिएटिव शौक से खुश थे। बिल्कुल, बच्चे का क्रिएटिव होना एक खूबसूरत बात है। लेकिन अब जब वह डिजिटल रिएक्शन से अपनी वैल्यू तय करने लगा है तो यह समय थोड़ा रुककर गहराई से सोचने का है।
दरअसल टीन एज एक बेहद संवेदनशील दौर होता है, जब बच्चों का दिमाग तेजी से बदल रहा होता है और वे अपनी पहचान गढ़ने की कोशिश में होते हैं। इस उम्र में वे दूसरों की राय को अपनी असल पहचान मानने लगते हैं। सोशल मीडिया का एल्गोरिदम भी उन्हें यही सिखाता है कि जितने ज्यादा लाइक्स, उतनी ज्यादा अहमियत।
ऐसे में आपका डर बिल्कुल वाजिब है क्योंकि सोशल मीडिया टीन एजर्स की सोच, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान पर गहरा असर डालता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बच्चे बिना किसी डिजिटल गाइडेंस के स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने लगते हैं। इससे वे सोशल मीडिया की दुनिया में अपना संतुलन खो बैठते हैं।

स्मार्टफोन यंग जनरेशन को बुरी तरह कर रहा प्रभावित
आजकल बच्चों को टीन एज में ही स्मार्टफोन मिल जाता है। जहां इसके कुछ बेनिफिट्स हैं, वहीं ढेर सारे नुकसान भी हैं। मशहूर अमेरिकी साइकोलॉजिस्ट जीन एम. ट्वेंग ने ‘आईजेन: व्हाई टुडे’ज सुपर-कनेक्टेड किड्स आर ग्रोइंग अप लेस रिबेलियस, मोर टॉलरेंट, लेस हैप्पी एंड कम्प्लीटली अन-प्रिपेयर्ड फॉर अडल्टहुड, एंड व्हाट दैट मीन्स फॉर द रेस्ट ऑफ अस’ नाम से एक किताब लिखी है। इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे स्मार्टफोन ने युवा पीढ़ी के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। जीन ने किताब में कई मुद्दों पर बात की है। जैसेकि-
- किताब के मुताबिक, पिछले जनरेशन की तुलना में आज के किशोर घर से बाहर कम निकलते हैं और दोस्तों के साथ पार्टियां वगैरह कम करते हैं।
- पहले की जनरेशन की तुलना में आज के किशोर सोशल मीडिया से जुड़े रहने के बावजूद ज्यादा अकेले और अलग-थलग महसूस करते हैं। 2013 से किशोरों में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ी है।
- वहीं 2011 से किशोरों में डिप्रेशन और आत्महत्या की दर भी तेजी से बढ़ी है।
- जो किशोर स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं, वे ज्यादा नाखुश होते हैं। वहीं जो लोगों से मिलते-जुलते हैं, वे ज्यादा खुश रहते हैं।
- अधिकांश किशोर रात में सात घंटे से भी कम सोते हैं, जबकि उन्हें नौ घंटे सोना चाहिए।
- फोन, लैपटॉप या सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने वाले किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण अधिक पाए गए हैं। वहीं जो बच्चे खेल-कूद, सामाजिक कार्यक्रमों या पढ़ाई में ज्यादा समय देते हैं, उनमें डिप्रेशन का खतरा कम होता है।
किताब में जीन एम. ट्वेंग ने सुझाव दिया है कि पेरेंट्स को बच्चों के फोन के इस्तेमाल को सीमित करना चाहिए क्योंकि यह उनकी मेंटल हेल्थ और नींद को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। उन्होंने बताया है कि स्टीव जॉब्स जैसे टेक्नोलॉजी के दिग्गजों ने भी अपने बच्चों के लिए डिवाइसेस के इस्तेमाल को सीमित किया था।
टीन एजर्स को सोशल मीडिया प्रेशर से बचाना जरूरी
चूंकि आपके बेटे का पैशन कंटेंट क्रिएशन ही है। इसलिए इस पर पूरी तरह रोक लगाने की बजाय बेहतर होगा कि आप उसे सोशल मीडिया से जुड़े प्रेशर को संभालना सिखाएं और इसके सुरक्षित व संतुलित इस्तेमाल के लिए सही जानकारी दें।
दरअसल सोशल मीडिया की चमकती दुनिया में टीन एजर्स कब प्रेशर में आ जाते हैं, यह पता ही नहीं चल पाता है। फॉलोअर्स की संख्या, लाइक्स की गिनती, ट्रेंड्स को पकड़ने की होड़ और परफेक्ट रील्स बनाने का जुनून धीरे-धीरे उनके सेल्फ-वैल्यू को बाहरी रिएक्शन से जोड़ देता है। यही दबाव धीरे-धीरे उन्हें अकेलेपन, डिप्रेशन और एंग्जाइटी की ओर ले जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि पेरेंट्स इस दबाव को समझें और बच्चे के साथ खुलकर बातचीत करें। इसके लिए कुछ और बातों का विशेष ध्यान रखें।

कैसे करें सोशल मीडिया का हेल्दी इस्तेमाल
आज के दौर में टीन एजर्स सोशल मीडिया का हिस्सा बन चुके हैं। रील्स बनाना, ट्रेंड फॉलो करना, लाइक्स और फॉलोअर्स की गिनती पर ध्यान देना उनकी रोजमर्रा का हिस्सा है। बच्चों की जिंदगी से सोशल मीडिया को पूरी तरह निकाला नहीं जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि–
- सोशल मीडिया के साथ एक हेल्दी बाउंड्री कैसे बनाई जाए?
- उसके शारीरिक और मानसिक नुकसान से कैसे बचा जाए?
- कुल मिलाकर सोशल मीडिया का स्वस्थ और प्रोडक्टिव इस्तेमाल कैसे किया जाए?
इसके लिए पेरेंट्स को बच्चों से बात करनी चाहिए और कुछ नियम तय करने चाहिए।

बच्चे को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें
आज के दौर में बच्चे सोशल मीडिया की गिरफ्त में इसलिए भी आ जाते हैं क्योंकि कई बार माता-पिता उन्हें घर से बाहर निकलने या दोस्तों के साथ खेलने की छूट नहीं देते। करियर और सुरक्षा की चिंता में हम जाने-अनजाने उन्हें चारदीवारी में सीमित कर देते हैं, जहां एकमात्र सहारा मोबाइल और गैजेट्स ही रह जाते हैं।
इसलिए जरूरी है कि हम बच्चों को प्रकृति के साथ जुड़ने और दोस्तों के साथ बाहर खेलने के लिए प्रेरित करें। खुले माहौल में खेलना न सिर्फ उन्हें सोशल मीडिया से दूर रखेगा, बल्कि उनके भीतर नई सोच, कल्पनाशक्ति और आत्मविश्वास भी विकसित करेगा। प्राकृतिक वातावरण में बिताया समय मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से संतुलन बनाना सिखाता है। साथ ही इससे सोशल मीडिया पर निर्भरता भी कम होती है।
अंत में यही कहूंगी कि इस दौर में माता-पिता और परिवार की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। जब बच्चे डिजिटल दुनिया में खो रहे हों तो उन्हें सिर्फ टोकने की बजाय हमें यह एहसास दिलाना होगा कि उनकी असली पहचान लाइक्स, कमेंट्स या फॉलोअर्स से नहीं, बल्कि उनकी पर्सनैलिटी, सोच और अनुभवों से बनती है।
आज के समय में टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल जरूरी है, लेकिन उसके दुष्प्रभावों से बच्चों को बचाकर ही हम उन्हें एक बेहतर, खुशहाल और आत्मनिर्भर भविष्य दे सकते हैं।
…………………
पेरेंटिंग की ये खबर भी पढ़िए
पेरेंटिंग- बेटा देर रात गर्लफ्रेंड से बातें करता है: पढ़ाई में मन नहीं लगता, 15 साल की उम्र में ये सब ठीक नहीं, उसे कैसे समझाएं

आप अगर चाहते हैं कि आपका बेटा अपनी गर्लफ्रेंड व दोस्त के बारे में आपको खुलकर बताए और उसके जीवन में क्या कुछ हो रहा है, उसका हिस्सा आप भी हों। इसके लिए सबसे जरूरी है कि बच्चे के अंदर ये डर न हो कि मम्मी-पापा डाटेंगे, जज करेंगे या उन्हें बुरा लगेगा। पूरी खबर पढ़िए…
.