18 मिनट पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल
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सवाल: मैं नई दिल्ली से हूं। मेरा बेटा 15 साल का है। वह नौवीं क्लास में पढ़ता है। वह बचपन से ही पढ़ने में काफी अच्छा और शांत व सरल स्वभाव का है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसका बर्ताव बहुत बदल गया है। वह चिड़चिड़ा हो गया है, बिना बात झुंझलाता है और पहले जैसा खुशमिजाज नहीं रहता है।
कुछ दिन पहले मुझे उसके स्कूल बैग से सिगरेट का एक पैकेट मिला। पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ। लेकिन बाद में उसकी कुछ बातों और फ्रेंड सर्कल को लेकर शक गहराता गया।
जब मैंने सीधे पूछा तो पहले तो उसने मना किया। लेकिन फिर मान गया कि वह अपने कुछ दोस्तों के साथ मजे के लिए सिगरेट पीने लगा है। उसने यह भी कहा कि अब उसे इसकी आदत सी हो गई है और बिना पिए बेचैनी होती है।
ये बात सुनकर मैं हैरान रह गई। मुझे समझ नहीं आ रहा कि उसे डांटूं, सख्ती करूं या दोस्त बनकर बात करूं। मैं चाहती हूं कि वह डर या गिल्ट नहीं, बल्कि समझदारी से इससे बाहर निकले। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर
जवाब: मैं आपकी चिंता समझ सकती हूं। किसी भी पेरेंट्स के लिए यह जानना बेहद परेशान करने वाला है कि उसका नाबालिग बेटा किसी नशे की गिरफ्त में आ गया है।
हालांकि आपका यह सोचना कि उसे डर या सजा से नहीं, बल्कि समझदारी और सहयोग से इस स्थिति से बाहर निकालना है, आपकी पेरेंटिंग की बेहतर समझ को दर्शाता है। लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि बच्चे को सिगरेट की लत आखिर कैसे लगी?
दरअसल 15 साल की उम्र में बच्चे अपनी पहचान की तलाश कर रहे होते हैं। ऐसे में वे ‘बड़े’ और ’कूल’ दिखने की कोशिश में कई बार ऐसे फैसले ले लेते हैं, जो उनके लिए नुकसानदायक होते हैं। इस उम्र में दोस्तों का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है।
ऐसे में कई बार बुरी संगत की वजह से भी वे नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसके अलावा टीन एज बच्चों में नशे की लत लगने के और भी कई कारण हो सकते हैं।

टीन एजर्स को नशे की गिरफ्त से कैसे बचाएं
आपने यह नहीं बताया कि पेरेंट्स में से कोई एक या दोनों सिगरेट तो नहीं पीते हैं। अगर ऐसा है तो सबसे पहला और जरूरी कदम यह है कि आप खुद अपनी आदत पर लगाम लगाएं क्योंकि बच्चे जो देखते हैं, वही दोहराते हैं। खासतौर पर बच्चे के सामने कभी भी सिगरेट न पिएं।
जैसा कि आपने बताया कि वह सिगरेट न मिलने पर बेचैन हो जाता है। यह इस बात का संकेत है कि उसे इसकी लत लग चुकी है। ऐसे में इससे निपटने के लिए समझदारी, धैर्य और सही रणनीति की जरूरत है।
आपका बेटा इस समय एक आंतरिक लड़ाई लड़ रहा है, जहां वह खुद भी नहीं चाहता कि वह इस लत में रहे। लेकिन उसका शरीर उसे बार-बार उस ओर खींच रहा है। ऐसे समय में उसे डांटने की बजाय उसका ‘सेफ जोन’ बनें ताकि वह खुलकर बात कर सके और कुछ भी छिपाए नहीं।
एक बात याद रखें कि कोई भी नशा छुड़ाना एक दिन का काम नहीं है। लेकिन अगर सही दिशा में हर दिन सिर्फ एक कदम बढ़ाया जाए तो ये असंभव भी नहीं है। इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें।

पेरेंट्स न करें ये गलतियां
अक्सर जब माता-पिता को पहली बार यह पता चलता है कि उनका बच्चा किसी नशे की चपेट में है तो वे हैरान, आहत और नाराज हो जाते हैं। बहुत से पेरेंट्स गुस्से में आकर बच्चे को डांटते, शर्मिंदा करते और यहां तक कि मारते-पीटते भी हैं। लेकिन ऐसा करना समस्या को सुलझाने की बजाय बच्चे को और ज्यादा छिपने, डर और विद्रोह की ओर ले जाता है।
ध्यान रखें कि बच्चा डरेगा तो सच नहीं बोलेगा। अगर वह सच नहीं बोलेगा तो आप कभी उसकी लत की जड़ तक नहीं पहुंच पाएंगे। अगर आप उसे जज करेंगे या शर्मिंदा करेंगे तो वह आपको मददगार नहीं, खतरा समझने लगेगा। ये वही समय है, जब उसे सबसे ज्यादा आपकी समझदारी, संयम और साथ की जरूरत है। इसलिए इस दौरान कुछ गलतियां बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।

टीन एज बच्चों को नशे के नुकसान इस तरह समझाएं
15 साल की उम्र में बच्चे का शरीर और दिमाग तेजी से विकसित होता है। इस समय अगर वे सिगरेट या अन्य नशे की लत में पड़ते हैं तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सिगरेट फेफड़ों की ग्रोथ को धीमा कर देती है, जिससे एनर्जी, स्टैमिना और स्पोर्ट्स परफॉर्मेंस कमजोर हो जाते हैं।
निकोटिन दिमाग में मौजूद हैप्पी हॉर्मोन डोपामाइन को हाइजैक कर लेता है। नतीजा यह होता है कि बिना सिगरेट बच्चे को बेचैनी, गुस्सा और मूड स्विंग्स महसूस होने लगते हैं। धीरे-धीरे यह आदत डिप्रेशन और एंग्जाइटी को जन्म दे सकती है, जो किशोरावस्था में बेहद खतरनाक है।
ऐसे में पेरेंट्स को चाहिए कि वे वीडियो, डॉक्यूमेंट्री या किसी वास्तविक घटना का उदाहरण देकर बच्चे को नशे के नुकसान के बारे में बताएं। असली कहानियां बच्चों पर गहरा असर डालती हैं और उन्हें समझने में मदद करती हैं।

टीन एज बच्चों के खर्च और पैसों की आदतों पर ध्यान दें
अक्सर पेरेंट्स लाड़-प्यार में बच्चे को रोजाना पैसे देने लगते हैं। शुरुआत में यह सामान्य लगता है। लेकिन धीरे-धीरे यह आदत उन्हें अनावश्यक खर्च करने का आदी बना देती है। कई बार यही आदत आगे चलकर बच्चे को नशे की ओर ले जा सकती है।
जब पैसे की कमी से उनकी जरूरतें नहीं पूरी होती हैं तो वे डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं और चोरी जैसी गलत आदतों को अपनाने लगते हैं। इसलिए पेरेंट्स को बच्चों के खर्चों पर नजर रखनी चाहिए और उन्हें पैसों की सही अहमियत समझानी चाहिए।
अंत में यही कहूंगी कि नशे की गिरफ्त में आ चुके टीन एज बच्चे को यह एहसास दिलाना जरूरी है कि वह इस लड़ाई में अकेला नहीं है। उसे समझाएं कि आप उसके साथ हैं, उसके खिलाफ नहीं। उसके साथ बैठकर एक छोटा और आसान प्लान बनाएं। उसकी हर छोटी जीत की तारीफ करें, उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं। यकीन मानिए, जब बच्चा महसूस करता है कि उसके माता-पिता उसके साथ खड़े हैं तो वह खुद भी खुद से लड़ने की हिम्मत जुटा लेता है।
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