ओवरथिंकिंग से हमारे विचार ही बन जाते हैं शत्रु: गीता की सीख: जो व्यक्ति संदेह करता है, उसका नाश निश्चित है, इसलिए किसी भी काम में संदेह न रखें

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2 घंटे पहले

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क्या आपने कभी खुद को एक ही विचार में उलझा पाया है? निर्णय लेने में असमर्थ, “क्या हो अगर…” और “क्या मुझे ऐसा करना चाहिए?” जैसे सवालों में आप कभी उलझे हैं? इस मानसिक स्थिति को हम ओवरथिंकिंग यानी अत्यधिक चिंतन कहते हैं। ये स्थिति एक अदृश्य युद्ध की तरह होती है, जो हमारे मन के भीतर विचारों के बीच चलता रहता है।

ऐसी ही स्थिति महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन की भी थी। कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव-पांडव की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं, उस समय अर्जुन ने जब कौरव पक्ष में अपने कुटुंब के लोग देखे तो वे शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक युद्ध से जूझने लगे। अर्जुन को उलझा हुआ देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया और सभी संदेह दूर कर दिए।

श्रीकृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन को दिया, वही ज्ञान हमारे लिए लाभदायक है। श्रीकृष्ण की सीख को अपने जीवन में उतार लेने से हम भी ओवरथिंकिंग से बच सकते हैं…

ओवरथिंकिंग से छोटी समस्या भी बड़ी बन जाती है

ओवरथिंकिंग थकाने वाला काम है। एक छोटी-सी समस्या भी पहाड़ जैसी लगने लगती है। मन में खुद के लिए संदेह आ जाता है और शांति दूर हो जाती है। अर्जुन कुरुक्षेत्र में सोच रहे थे कि क्या अपने ही परिवार के खिलाफ युद्ध करना सही है?, मेरा धर्म क्या कहता है? ऐसे ही सवाल हमारे मन में भी चलते रहते हैं, जैसे- मुझे क्या करना चाहिए?, अगर मैं असफल हो गया तो? इन विचारों को छोड़कर हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

भ्रम से बचें और विचारों में स्पष्टता रखें

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एक दृष्टि दी, एक स्पष्ट सोच, जो हर स्थिति में मार्ग दिखा सके। भगवान ने कहा था कि अपने धर्म यानी कर्तव्य पर ध्यान दो, परिणाम की चिंता मत करो। भय, मोह या संदेह से नहीं, बुद्धि से निर्णय लो। मन तुम्हारे लिए सिर्फ एक उपकरण की तरह है, मन तुम्हारा स्वामी नहीं है। मन पर नियंत्रण रखें, व्यर्थ विचारों में उलझने से बचें, विचारों में स्पष्टता लाएंगे तो चीजें बहुत आसान हो जाएंगी।

हमारा सिर्फ कर्म पर नियंत्रण है, उसके फल पर नहीं

गीता कहती है – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं है। इसका अर्थ ये है कि निर्णय लो, कर्म करो, परिणाम की चिंता छोड़ दो। अगर हमारी नीयत अच्छी है तो कर्म करने में देरी न करें। अच्छी नीयत से किए गए काम में असफलता भी मिलती है तो उससे निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उस असफलता से सीख लेकर नई शुरुआत करनी चाहिए, देर से ही सही, लेकिन सफलता जरूर मिलेगी।

ओवरथिंकिंग से बचने के लिए ध्यान रखें ये बातें

  • स्वीकार करें कि किसी काम के लिए चिंता और संदेह होना स्वाभाविक हैं, लेकिन ये हमें रोक नहीं सकते। सकारात्मक सोच के साथ कर्म करें।
  • कर्म करने से ही स्पष्टता आती है, पहले नहीं, इसलिए कर्म करने में देरी न करें।
  • ध्यान से मन को शांत करें। गीता कहती है ध्यान ही साधन है आत्म-नियंत्रण का। रोज कम से कम 10 मिनट का ध्यान, आपकी सोच को संतुलित कर सकता है।
  • अपने कर्तव्य को समझें। हर परिस्थिति में खुद से पूछे कि मेरा कर्तव्य क्या है और अपने कर्तव्य को पूरा करने की जरूरत है।
  • संशयों से बचें। गीता कहती है कि संशयात्मा विनश्यति, जो व्यक्ति संदेह करता है, उसका नाश निश्चित है। इसलिए किसी भी काम में संदेह न रखें। सारी बातें स्पष्ट रहेंगी तो काम पूरे मन से कर पाएंगे।

कर्म करने में देरी न करें

अर्जुन ने तब तक युद्ध नहीं किया, जब तक उनकी सोच स्पष्ट नहीं हुई, लेकिन जब श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मज्ञान दिया तो उन्होंने धनुष उठाया और युद्ध किया। ठीक इसी तरह जब हम अपने विचारों के भ्रम को छोड़कर विवेक, कर्तव्य और शांति से जुड़ते हैं तो हम भी अपने जीवन में विजयी हो सकते हैं। गीता हमें सिखाती है कि मन को साधें, कर्म करें और शांति को अपनाएं।

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