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अगर दिल में हौसला और जुनून हो तो कोई भी व्यक्ति किसी भी काम को आसानी से कर सकता है. इसी का उदाहरण पेश किया है सुल्तानपुर की कुछ महिलाओं ने, जिन्होंने रसोई से निकलकर खुद को आर्थिक और सामाजिक रूप से इतना मजबूत किया कि आज वे समाज में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ही नहीं, बल्कि कई मामलों में उनसे आगे निकलकर भी एक नई पहचान बना रही हैं. आइए जानते है इनकी कहानी….
सुल्तानपुर के नरेंदापुर गांव की रहने वाली किसान हीरावती वर्मा ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर जिले में अपना नाम रोशन किया है. हीरावती ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं हैं, लेकिन अपने हौसलों के दम पर उन्होंने अच्छी कमाई वाली फसल तैयार की और उसे बाजार में भेजा, जिससे उन्हें अच्छी कमाई भी होती है. उन्होंने स्ट्रॉबेरी का पौधा पुणे से मंगवाया था, जिसे अपने खेतों में लगाकर वह अच्छा मुनाफा कमा रही हैं. उन्होंने 25 हजार से अधिक स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए हैं. इस खेती में डेढ़ लाख रुपए लागत आई है.

अगर दिल में हौसला और जुनून हो तो कोई भी व्यक्ति किसी भी काम को आसानी से कर सकता है. कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश किया है सुल्तानपुर की रहने वाली सविता श्रीवास्तव ने, जिन्होंने अचार बनाने के कार्य को पहले छोटे स्तर पर शुरू किया. उसके बाद इस व्यापार को आगे बढ़ाया और आज लाखों रुपए का व्यापार कर रही हैं.

आजादी के 75 साल बाद भी भारतीय समाज में महिलाएं लगातार आगे बढ़ रही हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हैं सुल्तानपुर की रहने वाली डॉक्टर पल्लवी कौशल, जिन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए उन्होंने एक ढाबा खोला है, जहां काम करने वाली सभी महिलाएं हैं. कड़ी मेहनत और संघर्षों के बाद उनका यह ढाबा बहुत अच्छे तरीके से चल रहा है. डॉक्टर पल्लवी कौशल स्वयं आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार मुहैया करा रही हैं.

प्रियंका मौर्या ने महिला समूह से जुड़कर प्रदेश में बीसी सखी का पद प्राप्त किया और अब बैंकिंग ट्रांजैक्शन का काम कर रही हैं. प्रियंका हर महीने 3 करोड़ रुपए से अधिक का लेनदेन कर रही हैं. बैंकिंग ट्रांजैक्शन के मामले में प्रियंका मौर्या ने उत्तर प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया है. उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूह के सहयोग से बीसी सखी एजेंट का कार्य शुरू किया और आज बुलंदियों को छू रही हैं.

ललिता मौर्या ने साबित कर दिया है कि अगर मन में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है. उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है और आज दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं. ललिता ने अपने घर पर ही बनने वाले अचार, सेतुआ, कोहड़ौरी जैसे पारंपरिक खानों को अपना व्यवसाय बनाया है. वह अपने बनाए हुए सामान को बाजार में बेचती हैं.

सोमवती का किताबों और पढ़ाई-लिखाई से कोई खास नाता नहीं रहा, लेकिन गुजरात में पली-बढ़ी इस महिला ने अपने परिवार से पारंपरिक कला सीखी. इस कला ने उनके दिमाग और हाथों को ऐसा हुनर दिया कि आज वह अपने पैरों पर खड़ी हैं. सुल्तानपुर जिले के उत्तरदाहा गांव में रहने वाली सोमवती ऊन से दरवाजों, बेडरूम, पूजा स्थल और प्रवेश द्वार की सजावट के लिए झालर बनाती हैं.

सुल्तानपुर शहर के गभडिया की सुनीता ने मिट्टी के उत्पाद बनाने की कला को इस तरह अपनाया है कि यह पारंपरिक व्यवसाय जीवित रह सके. उनका मानना है कि दीपावली जैसे त्योहारों, शादी और अन्य शुभ अवसरों पर इलेक्ट्रिक झालरों और मोमबत्तियों के साथ-साथ गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों से सजावट को आकर्षक बनाया जाए. इसी सोच के साथ वह अपने उत्पादों को तैयार करती हैं, ताकि पारंपरिक कला को संरक्षित किया जा सके.

सुल्तानपुर की रहने वाली गीता देवी घर पर रहकर नीम, करौंदा आदि की टहनी और पत्तियों से साबुन बनाकर बाजार में बेच रही हैं. इससे उन्हें साबुन बनाने की कला में निपुणता भी हासिल हो रही है और अच्छी कमाई भी हो रही है. कक्षा आठवीं तक पढ़ी गीता देवी “जय मां काली स्वयं सहायता समूह” से जुड़कर साबुन बनाने का काम कर रही हैं. साबुन बनाने की कला में दक्षता हासिल करने के बाद वह अपने उत्पाद को बाजार में अच्छे दामों में बेच रही हैं.
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