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National Parents Day 2025: हर साल जुलाई के चौथे रविवार को यानी आज ‘नेशनल पैरंट्स डे’ मनाया जाता है. इस दिन हम अपने माता-पिता को विश करते हैं, सोशल मीडिया पर उनके साथ पुरानी तस्वीरें शेयर करते हैं, उन्हें कोई गिफ्ट भेज देते हैं… और सोचते हैं कि हमने अपनी जिम्मेदारी निभा दी. लेकिन क्या वास्तव में मां-बाप को हमारी इन चीज़ों की ज़रूरत होती है?
70 साल की अर्चना देवी कहती हैं, “बच्चे अच्छे हैं, पर व्यस्त हैं. कभी-कभी लगता है कि मैं भी किसी ऑफिस की पुरानी फाइल बन गई हूं, जो ज़रूरत नहीं होने पर अलमारी में रख दी जाती है.” ये सिर्फ अर्चना जी की कहानी नहीं, बल्कि भारत के लाखों बुजुर्ग माता-पिता की सच्चाई है.

बच्चों से शिकायत नहीं होती उन्हें, पर ‘भावनात्मक दूरी’ उन्हें तोड़ देती है. वो आवाज़, जो कभी हमें लोरी गा-गा कर सुलाती थी, अब खुद किसी की बातों को तरसती है. वो हाथ, जो कभी हमें खाना खिलाते थे, अब खुद किसी के साथ बैठकर खाने के लिए तड़पते हैं.

एक सर्वे के अनुसार, भारत में 60 वर्ष से ऊपर के 65% माता-पिता मानसिक तनाव और अकेलेपन की शिकायत करते हैं. उनमें से ज्यादातर का कहना होता है कि “बच्चे बहुत अच्छे हैं, लेकिन उनके पास समय नहीं है.” ऐसे में हमारा थोड़ा-सा समय, ध्यान और अपनापन न सिर्फ उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है, बल्कि उन्हें फिर से जीने की वजह भी दे सकता है.

दरअसल, आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हमारे माता-पिता भी एक समय पर हमारे जैसे ही इंसान थे, सपने देखने वाले, हंसने वाले, कभी-कभी रोने वाले. लेकिन उम्र के इस मोड़ पर वे एकांत और उपेक्षा की दीवारों में कैद हो जाते हैं. बच्चों के कामकाज में व्यस्त हो जाने, अलग शहरों या देशों में बस जाने, और डिजिटल दुनिया में उलझ जाने के कारण पैरंट्स का जीवन अचानक खामोश और खाली हो जाता है.

आपको बता दें कि बुज़ुर्ग माता-पिता को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है ध्यान और बातचीत की. आप चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, दिन में सिर्फ 10-15 मिनट उनके साथ बैठें. इस दौरान मोबाइल साइड में रख दें और उनसे उनके दिन के बारे में बात करें. उनकी बातें ध्यान से सुनें, उनकी छोटी-बड़ी बातों को गंभीरता से लें. यह उन्हें यह एहसास कराएगा कि वे अब भी आपकी दुनिया का अहम हिस्सा हैं और उनकी बातों की आज भी अहमियत है.

आप उनके अकेलेपन को दूर करने के लिए कई काम कर सकते हैं और छोटे-छोटे घरेलू कामों में उन्हें शामिल कर सकते हैं. जैसे – सब्ज़ी काटना, बागवानी करना, मंदिर सजाना या पास के पार्क में टहलना. ऐसे कामों में भागीदारी से उन्हें यह महसूस होगा कि वे अब भी सक्रिय हैं और परिवार की दिनचर्या का हिस्सा हैं. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और वे आपके साथ अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे.

हम अक्सर सोचते हैं कि हमारे माता-पिता सब कुछ समझते हैं, लेकिन भावनाएं जताना भी ज़रूरी होता है. उनसे कभी-कभी सलाह लें, चाहे वो छोटी बात ही क्यों न हो. यह उन्हें महत्त्वपूर्ण महसूस कराता है. साथ ही, “आपसे बात करके अच्छा लगा” या “आपके बिना सब अधूरा लगता है” जैसी बातें उनके दिल को छू जाती हैं. कभी उन्हें गले लगाइए, कभी उनका हाथ थामिए– ये छोटे-छोटे इशारे उनके अकेलेपन को बड़ी राहत में बदल सकते हैं. उनका अकेलापन दूर करने के लिए किसी बड़ी तैयारी की ज़रूरत नहीं, बस आप ‘वहां’ रहें, ‘सुनें’ और उन्हें ‘महसूस’ कराएं कि वे आज भी हमारे जीवन के सबसे अहम लोग हैं.
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