लालजीभाई ने समझ लिया कि खाने-पीने की चीजों में मिल रहे रसायनों की वजह से ही मां की तबीयत इतनी बिगड़ रही है. बस यहीं से उन्होंने तय किया कि अब खेती में कोई केमिकल नहीं डालेंगे.
लालजीभाई उस वक्त सिर्फ बारहवीं में थे, लेकिन सोच बहुत बड़ी थी. साल 2018 में उन्होंने आत्मा परियोजना और कुछ अच्छे शिक्षकों की मदद से जैविक यानी ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत कर दी. शुरुआत में लोगों ने मजाक उड़ाया, कहा- “खेती में केमिकल डाले बिना कुछ नहीं उगता”, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी.
मां की तबीयत सुधरी, दवा का खर्च हुआ जीरो
जैविक खेती का असर सबसे पहले उनकी मां पर नजर आया. घर में जो सब्ज़ियां और अनाज उगते थे, वही खाना शुरू किया. कुछ ही महीनों में मां की सेहत में जबरदस्त सुधार दिखा. अब न दवा की जरूरत रही, न डॉक्टर के चक्कर काटने की.
आज लालजीभाई अपनी 4 बीघा ज़मीन पर ऐसी-ऐसी फसलें उगाते हैं जो आसपास के गांवों में कोई नहीं उगाता.
जैसे – बैंगनी और पीली फूलगोभी, ब्रोकली, रोमनस्को ब्रोकली, बोक चॉय, नॉनखोल, तोरी जैसी विदेशी सब्जियां.
साथ ही हल्दी, सूरन, अदरक, रतालू जैसी देशी चीज़ें भी खूब उगाते हैं.
इसके अलावा गेहूं, बाजरा, मूंगफली जैसे अनाज भी बिना किसी केमिकल के उगाए जाते हैं.
WhatsApp से पहुंचाते हैं सब्जियां सीधे घर तक
लालजीभाई ने डिजिटल तरीका अपनाते हुए ‘सतलासना पंथक’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है. हर शुक्रवार को वो ग्रुप में ताज़ी सब्जियों की लिस्ट और उनके दाम डालते हैं. ग्राहक ऑर्डर करते हैं और फिर शनिवार को सब्जियां उनके घर पहुंचा दी जाती हैं. उनकी सब्जियां मेहसाणा से लेकर गांधीनगर तक पहुंचती हैं.
4 बीघा जमीन से लालजीभाई हर साल करीब 10 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं.
सरकार की योजनाओं से भी मिला सहारा
लालजीभाई को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और बागवानी विभाग की योजनाओं का फायदा मिला. आत्मा परियोजना ने उन्हें मॉडल फार्म तैयार करने में मदद की. कृषि विभाग से तिरपाल और पानी के पंप जैसी चीज़ें मिलीं. साथ ही बायक संस्था से मंडप भी मिला, जिससे फसल बेचने में आसानी हुई.
खेती से कमाई और समाज सेवा दोनों
लालजीभाई कहते हैं कि वो सिर्फ पैसे के लिए खेती नहीं कर रहे. वो चाहते हैं कि लोग ज़हरीले खाने से दूर रहें. उन्होंने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी और राज्य सरकार का धन्यवाद किया, जो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं.
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