Alt Mobility के को-फाउंडर और सीईओ देव अरोड़ा बताते हैं कि हमारा मकसद ई-वाहन को अफॉर्डेबल बनाने के साथ ऐसे लोगों की आमदनी का जरिया बनना है, जिनके पास कोई काम नहीं है. उनकी कंपनी ऐसे लोगों को लीज पर कॉमर्शियल वाहन देती है, जिनकी कोई फाइनेंशियल हिस्ट्री नहीं होती और बैंक इन्हें लोन देने से कतराते हैं. इसमें थ्री व्हीलर, फोर व्हीलर और टू व्हीलर ई-वाहन शामिल हैं. हमारी कंपनी इन वाहनों को लीज पर देने से लेकर उनके रखरखाव और इंश्योरेंस तक का काम देखती है. इसका मकसद यही है कि डीलर के पास से निकलने के बाद गाड़ी चलती रहे.
कैसे बिजनेस करती है कंपनी
देव का कहना है कि हम लोन देने के बजाय गाड़ी को लीज पर देते हैं. लीज पर लेने वाले से गाड़ी की कुल कीमत का एक मामूली हिस्सा डाउन पेमेंट के लिए लिया जाता है. हमारा बिजनेस मॉडल लीज टू ओन पर चलता है. इसका मतलब है कि जब लीज का पैसा पूरा नहीं हो जाता, तब तक गाड़ी की ऑनरशिप कंपनी के पास रहती है. इसके लिए 3 साल की किस्त होती है और एक बार किस्त पूरी होने के बाद गाड़ी की ऑनरशिप इसे खरीदने वाले के नाम ट्रांसफर कर दी जाती है. जब तक गाड़ी की लीज चलती है, तब तक इसके रखरखाव से लेकर बीमा तक का जिम्मा हमारी कंपनी का रहता है.
देव अरोड़ा के अनुसार, इलेक्ट्रिक 3 व्हीलर जिसकी बाजार कीमत 4.7 लाख रुपये है. इसे महज 21 हजार रुपये की डाउन पेमेंट पर उपलब्ध कराया जाता है. लीज रेंटल के तौर पर हर सप्ताह इस पर 4,500 रुपये की ईएमआई वसूली जाती है. लीज का टेन्योर 3 साल का होता है और इस दौरान मेंटेनेंस, सर्विस, इंश्योरेंस और फिटनेस की जिम्मेदारी कंपनी की होती है. इस तरह, 3 साल की लीज के दौरान कुल 7.02 लाख रुपये देना पड़ता है. इसका मतलब हुआ कि वाहन की बाजार कीमत से 2.30 लाख रुपये ज्यादा लगता है, लेकिन इसमें गाड़ी के इंश्योरेंस से लेकर मेंटनेंस और सर्विस तक का खर्चा शामिल होता है. लिहाजा यह ज्यादा महंगा नहीं पड़ता.
कैसे देती है पैसे कमाने की गारंटी
देव अरोड़ा ने बताया कि हम न सिर्फ लीज पर आसान तरीके से ई-वाहन देते हैं, बल्कि यह भी तय करते हैं कि इसे लेने वाले की कमाई भी होती रहे और लोन डिफॉल्ट न हो. इसके लिए हम ई-कॉमर्स कंपनियों से लेकर पोर्टर जैसी माल ढुलाई करने वाली कंपनियों तक से करार करते हैं. हमारा कॉमर्शियल वाहन लीज पर लेने वाले को हम अमेजन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट और पोर्टर जैसी कंपनियों से काम दिलाते हैं. मान लीजिए, किसी ने सामान ढोने वाली गाड़ी लीज पर उठाई तो उन्हें हर महीने 40 हजार रुपये तक गारंटी वाली कमाई का काम हमारी कंपनी दिलाती है. इसके ऊपर की कमाई ड्राइवर खुद से भी कर सकते हैं.
देव अरोड़ा ने बताया कि हमारी पॉलिसी के तहत गाड़ी की ऑनरशिप 3 साल तक हमारे पास रहती है तो इसके रखरखाव से लेकर बीमा तक की जिम्मेदारी भी हमारी होती है. लिहाजा लीज पर गाड़ी निकालते समय ही हम उसमें एक ट्रैकिंग डिवाइस लगाते हैं, जो वाहनों की पूरी स्कैनिंग करके हमारे पास डाटा भेजता है. इसकी ट्रैकिंग के लिए हमारी ऑफिस में ही सिस्टम है, जो हर गाड़ी पर नजर रखता है. गाड़ी में कोई खराबी जैसे बैटरी का रिचार्ज कम होने या उसमें कोई अन्य मैकेनिकल दिक्कत होने पर डाटा भेजती है. इसकी जानकारी हम ड्राइवर को देते हैं और समय रहते उसकी खराबी दूर कर ली जाती है.
कैसे आया बिजनेस का आइडिया
देव अरोड़ा ने बताया कि इससे पहले हम सोलर रूफ टॉप का बिजनेस करते थे. हम कॉमर्शियल बिल्डिंग और स्कूलों पर फ्री में सोलर यूनिट लगाते थे. इसे लगाने का कोई खर्चा नहीं लेते थे और इसकी बिजली यूज करने पर 6 रुपये यूनिट चार्ज करते थे. इसी कॉन्सेप्ट को हमने ईवी में अप्लाई किया और बेहद मामूली डाउन पेमेंट पर कॉमर्शियल ई-वाहन उपलब्ध करा रहे हैं. इसके लिए शुरुआत में हमने मार्केट का अध्ययन किया और ई-कॉमर्स कंपनियों से बातचीत करके उनका फीडबैक लिया. जैसे-जैसे ई-कॉमर्स में डिलीवरी के लिए ई-वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, हमारे बिजनेस को भी ग्रोथ मिल रही है.
देव की मानें तो ऑल्ट मोबिलिटी ने साल 2022 से बिजनेस शुरू किया और तब से अब तक देश के 30 शहरों में 14 हजार से ज्यादा वाहनों को लीज पर दिया जा चुका है. इसमें दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत सहित यूपी के भी शहर शामिल हैं. उन्होंने बताया कि कंपनी ने अभी तक करीब 500 करोड़ रुपये की लीजिंग इस कॉन्सेप्ट के तहत की है. हमारी योजना अब खुद की डीलरशिप खोलने की है. इसके लिए हमने लखनऊ को चुना है और इसी शहर में अपना पहला डीलर खोलेंगे.
डिफॉल्ट कर पर क्या करती है कंपनी
अरोड़ा ने बताया कि हमने डिफॉल्ट से बचने के लिए ही लोन के बजाय लीजिंग का कॉन्सेप्ट चुना है. लोन में यह शर्त है कि 3 महीने तक डिफॉल्ट होने पर ही कार्रवाई की जा सकती है, जबकि लीजिंग मॉडल में ऐसा नहीं होता. ऐसे में हमें 6 सप्ताह में ही यह पता हो जाता है कि ड्राइवर डिफॉल्ट करने वाला है और उससे गाड़ी वापस ले लेते हैं. डिफॉल्ट करने वालों से गाड़ी लेने के साथ उन पर पेनाल्टी लगाई जाती है और उनका सिबिल भी खराब हो जाता है. इस गाड़ी को दोबारा मेनटेन करके दूसरे ड्राइवर को दे दिया जाता है. हालांकि, डिफॉल्ट के केस काफी कम आते हैं. मार्च, 2025 तक कंपनी का मार्केट कैप करीब 461 करोड़ रुपये के आसपास रहा है.
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