जोंक थेरेपी से हो रहा है चमत्कार, उज्जैन में बढ़ती जा रही है मरीजों की कतार, जानें इस बीमारियों के लिए रामबाण

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What is leech therapy: मध्यप्रदेश के उज्जैन में शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सालय में जोंक थेरेपी का अभिनव प्रयोग किया जा रहा है. यह प्राकृतिक इलाज शरीर से अशुद्ध खून चूसकर खून को शुद्ध करता है.

उज्जैन. मध्यप्रदेश के उज्जैन मे जोंक थेरेपी से इलाज कराने अब भीड़ बढ़ती हुईं नज़र आ रही है. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि खून चूसने वाली जोंक आपका मर्ज भी ठीक कर सकती हैं, जिसका जीता-जागता उदाहरण उज्जैन के शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सालय मे देखने को मिल रहा है. यह अभिनव प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में हो रहा है.

आरएमओ डॉ. अनिल कुमार पाण्डे जो की इस यूनिट के प्रभारी है. उन्होंने बताया कि जोंक को प्रभावित अंगों के ऊपर छोड़ दिया जाता है. वह मरीज के अंग पर वाय आकार बनाकर चिपकती है और शरीर से गंदे खून को चूस लेती है. इससे किसी प्रकार के निशान भी नहीं रहते. जोंक अशुद्ध रक्त चूसकर शरीर में हिरुदिन नाम का पेप्टाइड डाल देती है. यह हिरुदिन खून में थक्के जमने से रोकता है और पहले से बने खून के थक्कों को घोल देता है. इसके कारण खून शुद्ध हो जाता है और खून का संचार तेजी से होने लगता है.

इससे शरीर में अधिक ऑक्सीजन वाला खून बहने लगता है और शरीर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगता है. एक बार में जोंक शरीर से 5 मिलीलीटर खून चूस लेती है. धन्वंतरि चिकित्सालय में जोंक थेरेपी से चर्म रोग जैसे दाद, घाव (नासूर), नसों का फूलना, कील-मुंहासे, सिर पर से किसी एक जगह से बाल कम हो जाना जैसी कई बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक किया जा रहा है.

सबसे पहले जानते हैं जोंक पद्धति
लोकल 18 से बातचीत में डॉ. निपरेन्द्र मिश्रा नें बताया कि जोंक पद्धति को हम लीच थेरेपी के नाम से जानते है. आयुर्वेद की भाषा में जलोका बचारण कहते हैं. लीच एक प्रकार का जीव-जंतु है. जिसको आम जनता जोंक के नाम से जानती है. इसका प्रयोग ग्रंथों में कई सालो से हो रहा है. विशेष रूप से प्रयोग जहां पर नशों की रुकावट होती है. उस प्रकार की बीमारियों में इसका प्रयोग कर सकते है. ​जैसे हार्ट के ब्लॉकेज में, माइग्रेन में, एग्जिमा आदि में किया जाता है.

उपचार के बाद क्या जीवित रहती है जोंक
डॉ. अनिल कुमार पाण्डे बताते हैं कि जिस जोंक का उपयोग एक बार हो चुका होता है. उसको 7 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया जाता है. उनके लिए एक अलग जार बनाई जाती है. इस प्रकार के जोंक को प्रयोग में लाने से पहले उसको हल्दी डालकर शुद्ध किया जाता है. हल्दी डालते ही जोंक रक्त सारा बाहर निकाल देती है जो उनके शरीर में अशुद्ध खून होता है. उसके बाद दुबारा उसी रोगी को यह जोंक लगाई जाती है. जिससे कोई इन्फेक्शन ना हो. 6 से 7 बर जोक लगाने मे गंभीर रोग भी ठीक हो जाता है.

कहा से आती है जोंक 
थेरेपी में उपयोग किए जाने वाले जोंक को केरल, कर्नाटक, वाराणसी, लखनऊ, नागपुर मे सबसे ज्यादा देखने को मिलती है. यहां इनके कुछ ब्रीडिंग ग्राउंड बनाए गये है. जहां से विशेष प्रक्रिया द्वारा चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली लीच को पकड़ा जाता है. उज्जैन मे जोंक को नागपुर से मंगाया जाता है. यह अब तक हज़ारो मरीजों को ठीक कर चुकी है. उज्जैन मे रोजाना धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सालय मे 15 से 20 रोगी पहुंच रहे है. और उन्हें इस उपचार से काफ़ी लाभ हो रहा है.

आपरेशन की पड़ी जरूरत आयुर्वेद बना सहारा 
ऐसे तो जोंक पद्धति से कई रोगियों को लाभ हुआ है. लेकिन जब लोकल 18 नें एक रोगी अनूप कुमार से पूछा तो उन्होंने बताया यह उपचार बहुत ही अच्छा है. बस चींटी काटे ऐसा मामूली दर्द होता है. मुझे एविएन है मुझे आपरेशन की सलाह दी गईं थी. जिसमे ढाई लाख का खर्चा था. काफ़ी दर्द था मेरे पैर मे, लेकिन धन्वंतरि आयुर्वेद मे जलोका से उपचार हो रहा है. उससे मुझे काफ़ी आराम मिला है. मुझे अभी तक 4 से 5 बार यह जोंक लग चुकी है, जिससे काफ़ी आराम है.

Anuj Singh

Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digital), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked a…और पढ़ें

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जोंक थेरेपी से हो रहा है चमत्कार, उज्जैन में बढ़ती जा रही है मरीजों की कतार

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