कितना ताकतवर 8.8 तीव्रता वाला भूकंप
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि रिक्टर स्केल पर 8.8 तीव्रता का भूकंप किस स्तर का होता है. यह कोई साधारण कंपन नहीं होता, बल्कि एक विनाशकारी झटका होता है जो धरती को चीर देता है, इमारतों को जमींदोज कर देता है, और भू-भाग को स्थायी रूप से बदल देता है. रूस में जो भूकंप आया, वह समुद्र की सतह के काफी नीचे था, जिससे वहां की सतह पर प्रभाव अपेक्षाकृत कम था. लेकिन भारत में अगर ऐसा कोई भूकंप सतह के पास या किसी घनी आबादी वाले इलाके में आता है, तो इसका परिणाम विभीषिका से कम नहीं होगा.
8.8 तीव्रता का क्या मतलब है?
यह ऊर्जा में हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम से करीब 30,000 गुना ज़्यादा होता है.
इसका प्रभाव सैकड़ों किलोमीटर दूर तक महसूस हो सकता है.
कल्पना कीजिए कि यह भूकंप उत्तर भारत के किसी पर्वतीय इलाके में, जैसे उत्तराखंड या हिमाचल में आता है. वहां की भौगोलिक बनावट, ढलवां ज़मीनें और खराब कनेक्टिविटी पहले से ही आपदा प्रबंधन को कठिन बना देती है. अगर भूकंप रात के समय आता है, जब अधिकतर लोग सो रहे होंगे, तो मृतकों की संख्या हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में हो सकती है. इमारतें भरभरा कर गिरेंगी, सड़कें फट जाएंगी, और संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी. पहाड़ी क्षेत्रों में तो भूस्खलन और ग्लेशियरों के खिसकने से और भी नुकसान हो सकता है. नदियों का बहाव बदल सकता है, जिससे निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आ सकती है.
शहर के शहर हो जाएंगे तबाह
इसका असर सिर्फ जानमाल तक सीमित नहीं रहेगा. देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका भीषण असर पड़ेगा. एक अनुमान के अनुसार, इतना बड़ा भूकंप भारत को 50–100 अरब डॉलर तक की आर्थिक क्षति पहुंचा सकता है. शेयर बाजार ध्वस्त हो सकता है, उत्पादन और सेवाएं महीनों तक बाधित हो सकती हैं. लाखों लोग बेघर हो जाएंगे, और सरकार को भारी खर्च करना पड़ेगा राहत और पुनर्वास पर. पर्यटन, उद्योग, शिक्षा हर क्षेत्र ठप पड़ जाएगा.
भारत के लिए खतरे की जगहें?
उत्तर भारत: जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर बिहार, सिक्किम
पूर्वोत्तर भारत: असम, अरुणाचल, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा
कुछ शहरी क्षेत्र: दिल्ली-NCR, गुवाहाटी, सिलीगुड़ी, श्रीनगर, शिमला, गंगटोक
नए खतरे: हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट्स की सक्रियता बढ़ रही है.
महीनों तक सताएगा दर्द
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आपदा प्रबंधन की दिशा में कई सकारात्मक कदम उठाए हैं, जैसे राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की तैनाती, NDMA की योजनाएं, और कुछ मेट्रो शहरों में भूकंप-संवेदनशील निर्माण के निर्देश. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अधिकतर राज्य इन योजनाओं को लागू करने में असफल रहे हैं.
8.8 तीव्रता के भूकंप की संभावना भले ही कम हो, लेकिन असंभव नहीं है. भारत के नीचे इंडो-यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स की टकराहट लगातार बढ़ रही है, जिससे हिमालयी क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील हो गया है. वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी है कि एक ‘बड़ा भूकंप’ इस क्षेत्र में भविष्य में कभी भी आ सकता है. यदि समय रहते तैयारी नहीं की गई तो यह चेतावनी एक त्रासदी में बदल सकती है.
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