लाखों की मौत, कई शहर तबाह… भारत में आ जाए 8.8 तीव्रता का भूकंप तो क्या होगा?

रूस के कमचटका प्रायद्वीप में आज 8.8 तीव्रता का भीषण भूकंप आया, जिसने दुनिया भर में सिहरन पैदा कर दी. यह भूकंप इतना तेज था कि इसके झटके अमेरिका से लेकर जापान तक महसूस किए गए. इस शक्तिशाली भूकंप की वजह से रूस के तटीय इलाके में सुनामी की ऊंची लहरें भी उठती दिखी. वहीं अमेरिका और जापान ने भी सुनामी अलर्ट जारी कर दिया है. समुद्र तट से सटे इलाकों में लोग से तुरंत ऊंची जगहों पर जगहों पर जाने को कहा गया है.

इस भूकंप की तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि विश्व इतिहास में अब तक इससे ज्यादा तीव्रता वाले केवल 4 ही भूकंप दर्ज हैं. इनमें से एक भूकंप इंडोनेशिया में आया था. वर्ष 2024 में आए उस भूकंप की तीव्रता 9.2 थी, जिसके बाद आई सुनामी ने भारत तक में भीषण तबाही मचाई थी. ऐसे में रूस में आए इस 8.8 तीव्रता वाले भूकंप से एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में इस तीव्रता का भूकंप आ जाए, तो क्या होगा…
रूस जैसा भूकंप अगर भारत में आ जाए तो यह देश के लिए एक भीषण आपदा साबित हो सकती है. इस न केवल जानमाल का भारी नुकसान होगा, बल्कि देश के आर्थिक विकास को वर्षों पीछे धकेल सकता है. भारत एक भूकंप संभावित देश है, जिसकी भूगर्भीय स्थिति इसे बार-बार धरती के भीतर की हलचलों के सामने असहाय बना देती है. खासकर हिमालयी क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी राज्य, और गंगा के मैदान भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं. ऐसे में अगर किसी दिन यहां 8.8 तीव्रता का भूकंप आता है, तो इसका ऐसी भीषण प्रभाव हो सकता है, जिसकी कल्पणा भी मुश्किल है.

कितना ताकतवर 8.8 तीव्रता वाला भूकंप

सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि रिक्टर स्केल पर 8.8 तीव्रता का भूकंप किस स्तर का होता है. यह कोई साधारण कंपन नहीं होता, बल्कि एक विनाशकारी झटका होता है जो धरती को चीर देता है, इमारतों को जमींदोज कर देता है, और भू-भाग को स्थायी रूप से बदल देता है. रूस में जो भूकंप आया, वह समुद्र की सतह के काफी नीचे था, जिससे वहां की सतह पर प्रभाव अपेक्षाकृत कम था. लेकिन भारत में अगर ऐसा कोई भूकंप सतह के पास या किसी घनी आबादी वाले इलाके में आता है, तो इसका परिणाम विभीषिका से कम नहीं होगा.

8.8 तीव्रता का क्या मतलब है?

रिक्टर स्केल पर 8.8 तीव्रता का भूकंप ‘मेगा–भूकंप’ की श्रेणी में आता है.
यह ऊर्जा में हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम से करीब 30,000 गुना ज़्यादा होता है.
इसका प्रभाव सैकड़ों किलोमीटर दूर तक महसूस हो सकता है.

कल्पना कीजिए कि यह भूकंप उत्तर भारत के किसी पर्वतीय इलाके में, जैसे उत्तराखंड या हिमाचल में आता है. वहां की भौगोलिक बनावट, ढलवां ज़मीनें और खराब कनेक्टिविटी पहले से ही आपदा प्रबंधन को कठिन बना देती है. अगर भूकंप रात के समय आता है, जब अधिकतर लोग सो रहे होंगे, तो मृतकों की संख्या हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में हो सकती है. इमारतें भरभरा कर गिरेंगी, सड़कें फट जाएंगी, और संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी. पहाड़ी क्षेत्रों में तो भूस्खलन और ग्लेशियरों के खिसकने से और भी नुकसान हो सकता है. नदियों का बहाव बदल सकता है, जिससे निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आ सकती है.

शहर के शहर हो जाएंगे तबाह

अब सोचिए यही भूकंप अगर दिल्ली, पटना या कोलकाता जैसे किसी बड़े शहरी क्षेत्र में आता है तो वहां का नजारा बिल्कुल युद्धग्रस्त इलाके जैसा हो जाएगा. भारत के अधिकतर शहरी क्षेत्र भूकंप-रोधी निर्माण के मानकों का पालन नहीं करते. पुराने मकान, जर्जर कॉलोनियां, और अनियोजित विकास… सबकुछ मिनटों में ध्वस्त हो सकता है. अस्पताल, स्कूल, पुल, मेट्रो लाइन्स, कुछ भी सुरक्षित नहीं बचेगा. यातायात अवरुद्ध हो जाएगा, हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन काम करना बंद कर देंगे. लोग सड़कों पर निकल आएंगे, मदद की गुहार लगाएंगे, लेकिन आपदा प्रबंधन संसाधन उस पैमाने की तबाही से निपटने के लिए अपर्याप्त होंगे.

इसका असर सिर्फ जानमाल तक सीमित नहीं रहेगा. देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका भीषण असर पड़ेगा. एक अनुमान के अनुसार, इतना बड़ा भूकंप भारत को 50–100 अरब डॉलर तक की आर्थिक क्षति पहुंचा सकता है. शेयर बाजार ध्वस्त हो सकता है, उत्पादन और सेवाएं महीनों तक बाधित हो सकती हैं. लाखों लोग बेघर हो जाएंगे, और सरकार को भारी खर्च करना पड़ेगा राहत और पुनर्वास पर. पर्यटन, उद्योग, शिक्षा हर क्षेत्र ठप पड़ जाएगा.

भारत के लिए खतरे की जगहें?

भारत के कई क्षेत्र सीस्मिक जोन IV और V में आते हैं, यानी भूकंप की दृष्टि से उच्च जोखिम वाले…

उत्तर भारत: जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर बिहार, सिक्किम
पूर्वोत्तर भारत: असम, अरुणाचल, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा
कुछ शहरी क्षेत्र: दिल्ली-NCR, गुवाहाटी, सिलीगुड़ी, श्रीनगर, शिमला, गंगटोक
नए खतरे: हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट्स की सक्रियता बढ़ रही है.

महीनों तक सताएगा दर्द

भूकंप के बाद आने वाली चुनौतियां भी कम नहीं होतीं. राहत कार्यों में बाधा, महामारी फैलने का खतरा, पीने के पानी और खाने की कमी और सबसे अहम… मानसिक आघात. लोग वर्षों तक इस सदमे से उबर नहीं पाएंगे. खासकर बच्चे और महिलाएं इस आपदा के दीर्घकालिक मानसिक असर से पीड़ित रह सकते हैं. जो लोग अपने परिवार खो देंगे, उन्हें जीवन की मूलभूत प्रेरणा वापस पाने में कठिनाई होगी.

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आपदा प्रबंधन की दिशा में कई सकारात्मक कदम उठाए हैं, जैसे राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की तैनाती, NDMA की योजनाएं, और कुछ मेट्रो शहरों में भूकंप-संवेदनशील निर्माण के निर्देश. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अधिकतर राज्य इन योजनाओं को लागू करने में असफल रहे हैं.

8.8 तीव्रता के भूकंप की संभावना भले ही कम हो, लेकिन असंभव नहीं है. भारत के नीचे इंडो-यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स की टकराहट लगातार बढ़ रही है, जिससे हिमालयी क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील हो गया है. वैज्ञानिकों ने पहले ही चेतावनी दी है कि एक ‘बड़ा भूकंप’ इस क्षेत्र में भविष्य में कभी भी आ सकता है. यदि समय रहते तैयारी नहीं की गई तो यह चेतावनी एक त्रासदी में बदल सकती है.

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