मेंटल हेल्थ– मुझे ब्रेस्ट कैंसर है: अब्यूसिव पति को छोड़कर जब जीना शुरू किया तो कैंसर ने दबोच लिया, क्या जीवन अब खत्म हो गया

6 मिनट पहले

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सवाल– मैं 46 साल की वर्किंग वुमेन हूं और रांची में एक छोटा सा रेस्त्रां चलाती हूं। सात साल पहले मेरा डिवोर्स हुआ था। उसके पहले मैं हाउस वाइफ थी। पति से अलग होने के बाद मैंने अपनी जमापूंजी और पिता की मदद से अपना रेस्त्रां शुरू किया, जो अब काफी सक्सेसफुल है। डेढ़ साल पहले पता चला कि मुझे थर्ड स्टेज ब्रेस्ट कैंसर है। उस दिन के बाद से मेरी दुनिया ही बदल गई। मैंने जिंदगी में बहुत दुख देखे, इतने साल अब्यूसिव पति के साथ रही, क्या कुछ नहीं सहा। लेकिन जब फाइनली लगने लगा था कि अब जीवन में सबकुछ ठीक है तो इस कैंसर की खबर ने मुझे तोड़ दिया। मेरी बेटी 17 साल की है। मुझ पर ढेरों जिम्मेदारियां हैं। अभी तो मैंने जीना शुरू किया है। मैं इतनी जल्दी मरना नहीं चाहती। डॉक्टर उम्मीद देते रहते हैं, लेकिन इन दिनों हर वक्त मेरे मन में सिर्फ मरने का ख्याल आता है। किसी चीज ने मुझे मानसिक रूप से इतना परेशान नहीं किया, जितना इस बीमारी ने कर दिया है। मुझे बताइए कि इस वक्त मैं कैसे पॉजिटिव रहूं, खुश रहूं। मैं खुद को कैसे ये भरोसा दूं कि सबकुछ ठीक हो जाएगा।

एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर।

आपको हाल ही में अपने कैंसर के बारे में पता चला है। सबसे पहले, तो मैं यह कहना चाहता हूं कि मुझे इस बात का पूरा भान है कि यह खबर आपके लिए कितनी भयावह रही होगी। ऐसे में डर, भ्रम, गुस्सा और यहां तक कि नंबनेस महसूस करना भी पूरी तरह सामान्य है। ये भावनाएं उस स्थिति का हिस्सा हैं, जिसे डॉक्टर “एडजेस्टमेंट डिसऑर्डर” कहते हैं- “जीवन को बदल देने वाली खबर से निपटने का मन का स्वाभाविक तरीका।”

लेकिन इसके साथ ही मैं ये भी कहना चाहता हूं कि कैंसर कोई ऑटोमैटिक डेथ सेंटेंस (मृत्युदंड) नहीं है। यहां मैं आपके साथ कुछ फैक्ट साझा कर रहा हूं, जो आपके डर को कम करने में मददगार हो सकते हैं।

आपके दिमाग में इस वक्त क्या चल रहा है

जब भी किसी को कैंसर के बारे में पता चलता है तो उसका ब्रेन अक्सर कैटेस्ट्रॉफी मोड में चला जाता है। इसका मतलब है कि इस वक्त संभवत: आपके दिमाग में कुछ ऐसे ख्याल आते होंगे:

  • “मेरा जीवन खत्म हो गया है।”
  • “मैं मरने वाली हूं।”
  • “अब कुछ भी पहले की तरह नहीं रहेगा।”
  • “इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता।”

ये विचार सच्चे और डरावने हैं, लेकिन ये मेडिकल फैक्ट पर आधारित नहीं हैं। इन्हें कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन कहते हैं, जब हमारा दिमाग चिंता और भय की स्थिति में सबसे वर्स्ट स्थितियों की कल्पना करता है और सबसे बुरे नतीजे निकालता है। लेकिन ये बातें फैक्चुअल नहीं होतीं।

पूरी दुनिया में कैंसर सरवाइवल रेट

यहां मैं आपको कुछ वास्तविक आंकड़े दे रहा हूं:

वर्ल्ड कैंसर सरवाइवल रेट

  • ब्रेस्ट कैंसर: 100 में से 91 लोग कम-से-कम 5 साल जीवित रहते हैं।
  • प्रोस्टेट कैंसर: 100 में से 98 लोग कम-से-कम 5 साल जीवित रहते हैं
  • कोलोरेक्टल कैंसर: कुल मिलाकर 100 में से 65 लोग कम-से-कम 5 साल जीवित रहते हैं (अगर समय पर पता चल जाए तो 100 में से 90 लोग।)
  • लंग कैंसर: 100 में से 25 लोग कम-से-कम 5 साल जीवित रहते हैं (अगर समय पर पता चल जाए तो 100 में से 61 लोग)।

भारत में कैंसर सरवाइवल रेट

भारत में कैंसर सरवाइवल का रेट कई तथ्यों पर निर्भर करता है, जैसे कैंसर टाइप, कैंसर की स्टेज, हेल्थ केयर सुविधा और व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति। फिर भी हाल के कुछ आंकड़े काफी उत्साहजनक हैं।

भारत में ब्रेस्ट कैंसर सरवाइवल रेट

  • औसतन 60 से 70% लोग 5 साल तक जीवित रहते हैं।
  • अगर कैंसर का पता जल्दी चले तो सरवाइवल रेट 85-90% हो सकता है।

कैंसर का असर मन पर

जैसाकि ऊपर दिए आंकड़ों से जाहिर है कि कैंसर होने का मतलब जीवन का अंत नहीं है। लेकिन चूंकि यह एक गंभीर बीमारी है तो इसका जितना असर शरीर पर पड़ता है, उससे कहीं ज्यादा मन पर भी पड़ता है। अक्सर लोग बीमारी से ज्यादा उसके इमोशनल इफेक्ट और नेगेटिव सोच से प्रभावित होते हैं। यह भी साइंटिफिकली प्रूवेन बात है कि हमारे मन, दिमाग, सोच और इमोशनल स्टेट का असर रिकवरी पर पड़ता है। इसलिए पॉजिटिव रहना, अपने मन को मजबूत रखना और साइंटिफिक तरीके से सिर्फ फैक्ट्स को देखना जरूरी है।

कैंसर और इमोशनल हेल्थ: सेल्फ स्क्रीनिंग टूल

आगे बढ़ने से पहले मैं आपको अपने इमोशनल स्टेट को बेहतर समझने के लिए एक सेल्फ स्क्रीनिंग टूल दे रहा हूं। इस टेस्ट में 20 सवाल हैं। इन सवालों को आपको 0 से 3 के स्केल पर रेट करना है। 0 का अर्थ है- ‘बिल्कुल नहीं’ और 3 का अर्थ है, ‘हर वक्त, हमेशा’। हर सवाल को उसके जवाब के हिसाब से स्कोर देने के बाद आपको अपना स्कोर चेक करना है।

सवाल नीचे ग्राफिक में हैं। स्कोर का इंटरप्रिटेशन भी ग्राफिक में दिया है। पहले सवालों के जवाब दीजिए और फिर अपने स्कोर के हिसाब से उसका इंटरप्रिटेशन चेक करिए।

पॉजिटिव रहकर कैंसर का मुकाबला कैसे करें

चार हफ्ते का सेल्फ हेल्प प्लान

पहला सप्ताह : अपने डरावने ख्यालों को चुनौती देना

लक्ष्य: भयावह सोच को रिएलिस्टिक सोच से बदलना

डेली टास्क : मन में आने वाले हर डरावने ख्याल को डायरी में नोट करना।

जब भी आपके मन में कैंसर के बारे में कोई डरावना विचार आए तो उसे डायरी में लिखें और खुद से पूछें:

  • वह विचार क्या है? (उदाहरण: “मैं मरने वाली हूं।”)
  • इस विचार को सपोर्ट करने वाला एविडेंस क्या है? (आमतौर एविडेंस बहुत कम होता है।)
  • इस विचार को गलत साबित करने वाले एविडेंस क्या हैं? (सरवाइवल डेटा, एडवांस ट्रीटमेंट फैसिलिटी आदि।)
  • अगर मेरे सबसे अच्छे दोस्त के मन में यह विचार आए, तो मैं उससे क्या कहूंगी?
  • इसके बारे में सोचने का ज्यादा बैलेंस्ड तरीका क्या है?

उदाहरण:

डरावना विचार: “मेरा जीवन खत्म हो गया है।”

बैलेंस्ड विचार: “मेरा जीवन बदल रहा है, और मुझे डर लग रहा है, लेकिन कैंसर से पीड़ित कई लोग ट्रीटमेंट के समय और उसके बाद भी खुशहाल जीवन जीते हैं।”

दूसरा सप्ताह: अपने दिमाग को शांत करना

लक्ष्य: एंग्जाइटी को कम करना और प्रेजेंट मॉमेंट में मन को शांत और खुश रखना

डेली टास्क:

5 मिनट ब्रीदिंग एक्सरसाइज: 4 तक गिनते हुए सांस अंदर लें, 4 गिनने तक सांस को रोके रहें, फिर 6 तक गिनते हुए सांस बाहर छोड़ें।

बॉडी स्कैन: शवासन की अवस्था में लेट जाएं और अपने शरीर के हरेक हिस्से पर ध्यान दें। पैर की उंगलियों से लेकर सिर तक हर हिस्से को महसूस करें।

ग्राउंडिंग तकनीक: अपने आसपास देखें और इन चीजों का नाम लें-

  • 5 चीजें जिन्हें आप देख सकती हैं।
  • 4 चीजें जिन्हें आप छू सकती हैं।
  • 3 चीजें जिन्हें आप सुन सकती हैं।
  • 2 चीजें जिन्हें आप सूंघ सकती हैं।
  • 1 चीज जिसे आप चख सकती हैं।

ये एक्सरसाइज क्यों करें: आप कैंसर होने को कंट्रोल नहीं कर सकती हैं, लेकिन आप ये जरूर कंट्रोल कर सकती हैं कि आप कितना वक्त कैंसर के बारे में सोचते हुए, उसकी चिंता, डर और घबराहट में बिताएंगी।

तीसरा सप्ताह: जीवन को दोबारा खुलकर जीना

लक्ष्य: कैंसर से लड़ते हुए भी मीनिंफुल काम करते रहना

डेली टास्क:

  • हर दिन कोई भी एक छोटी एक्टिविटी करें, जिसमें आपको खुशी मिलती हो। जैसे:
  • कोई किताब पढ़ना।
  • कोई पसंदीदा फिल्म देखना।
  • अपनी किसी फेवरेट वेब सीरीज का एक एपिसोड देखना।
  • किसी ऐसे व्यक्ति से बात करना, जो आपकी परवाह करता हो।
  • रोज कुछ हल्की-फुल्की फिजिकल एक्टिविटी करना, जैसे थोड़ा सा वॉक, या थोड़ी सी स्ट्रेचिंग। (डॉक्टर की सलाह पर।)
  • अपनी भावनाओं को राइटिंग, आर्ट या म्यूजिक के माध्यम से व्यक्त करना।

याद रखें: आप अभी भी वही इंसान हैं, जो कैंसर डायग्नोसिस के पहले थीं। कैंसर सिर्फ आपको हुआ है, आप वो नहीं हैं।

चौथा सप्ताह: भविष्य की ओर उम्मीद से देखना

लक्ष्य: अपने लिए रिएलिस्टिक लक्ष्य तय करना, जीवन के हर अनुभव में अर्थ ढूंढना।

डेली टास्क:

  • अपने लिए हर दिन एक छोटा सा लक्ष्य तय करें। कुछ ऐसा जिसे आसानी से पूरा किया जा सके।
  • उन चीजों के बारे में सोचें, जो आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
  • इस बारे में सोचें कि आपका यह अनुभव कैसे दूसरों के काम आ सकता है।
  • एक “Hope List” बनाएं- वे चीजें जो कैंसर का ट्रीटमेंट पूरा होने के बाद आप करना चाहती हैं।

पॉजिटिव रहने के प्रैक्टिकल स्टेप्स

1. फैक्ट्स पर ध्यान दें, डर पर नहीं

जब भी आपका मन सबसे बुरी स्थितियों के बारे में सोचे, तो खुद को जीवित रहने के आंकड़े याद दिलाएं। उन्हें प्रिंट करके अपने पास रखें।

2. एक दिन में सिर्फ उस दिन के बारे में सोचें

यह सोचने की बजाय कि “मुझे जीवन भर कैंसर रहेगा,” यह सोचें कि “आज मैं अपना ध्यान रख रही हूं और अपने ट्रीटमेंट प्लान को फॉलो कर रही हूं।”

3. अपनी सपोर्ट टीम बनाएं

  • भरोसेमंद दोस्तों और फैमिली को बताएं कि आपको क्या चाहिए।
  • कैंसर सपोर्ट ग्रुप जॉइन करें (ऑनलाइन या व्यक्तिगत रूप से)।
  • काउंसिलिंग लेने पर विचार करें- यह कमजोरी नहीं, ताकत की निशानी है।

4. जो महत्वपूर्ण है, उससे जुड़ाव बनाए रखें

  • अपने पसंद के काम करती रहें।
  • अपने रिश्तों से जुड़ी रहें। कट-ऑफ न करें।
  • अपना सेंस ऑफ ह्यूमर को बनाए रखें – हंसी वाकई दवा है।

5. हर छोटी जीत का जश्न मनाएं

  • ट्रीटमेंट का हरेक स्टेप पूरा होने के बाद उसे सेलिब्रेट करें।
  • चाहे जो भी हो जाए, खुद को व्यस्त रखने और एक अच्छा दिन बिताने की कोशिश करें।
  • अपने हर अनुभव को लिखें।
  • सोचें कि कल को कैसे ये अनुभव दूसरों के काम आ सकते हैं।

प्रोफेशनल मदद लेना कब जरूरी है

अमूमन अपनी विल पावर और परिवार की मदद से बीमारी से लड़ना और उबरना आसान होता है। लेकिन कुछ स्थितियों में प्रोफेशनल हेल्प लेना भी जरूरी हो जाता है। नीचे ग्राफिक में कुछ पॉइंट्स दिए हैं। अगर आप इनमें से कोई भी सिम्पटम महसूस करें तो तुरंत प्रोफेशनल हेल्प लें।

निष्कर्ष

अंत में मैं आपसे सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि आपका डर और चिंता स्वाभाविक है। लेकिन याद रखिए, आपसे पहले हजारों लोग इस राह से गुजरकर जा चुके हैं। उन्होंने न सिर्फ कैंसर से लड़कर उसे मात दी, बल्कि अब वो एक मीनिंगफुल, खुशहाल जिंदगी भी जी रहे हैं। आपके पास भविष्य की ओर उम्मीद से देखने का हर कारण है। सबसे बड़ी बात ये कि आपके भीतर वो हिम्मत और ताकत है कि आप मुश्किल का मुकाबला कर सकती हैं। अपने ट्रीटमेंट प्लान को फॉलो करें और याद रखें कि ये अध्याय आपके जीवन का आखिरी अध्याय नहीं है। इसके बाद और बहुत से नए अध्याय लिखे जानें हैं, जिन्हें आप खुद बहुत खूबसूरत शब्दों और नए रंगों में लिखेंगी। …………………… ये खबर भी पढ़िए… मेंटल हेल्थ- बचपन में मम्मी–पापा ने मुझे छोड़ दिया:नाना–नानी ने पाला, नानी के जाने के बाद से मैं गहरे डिप्रेशन में हूं, मैं क्या करूं

मैं 29 साल का हूं। जब मैं डेढ़ साल का था, तब मम्मी-पापा का तलाक हो गया। मम्मी ने दूसरी शादी कर ली और मुझे नानी के पास छोड़ दिया। पापा को मैंने 19 साल की उम्र तक देखा भी नहीं। दोनों ने कभी मुझसे संपर्क नहीं किया। मुझे नाना-नानी ने पाला, और नानी से मेरी गहरी भावनात्मक जुड़ाव था। दो साल पहले नाना की और छह महीने पहले नानी की मौत हो गई। तब से मैं गहरे डिप्रेशन में चला गया हूं। मैं क्या करूं? पूरी खबर पढ़िए…

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