देवशयनी एकादशी से भगवान श्री हरि चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान संपूर्ण सृष्टि का कार्यभार महादेव संभालते हैं। प्रतिवर्ष देव प्रबोधिनी एकादशी पर श्री हरि के जागने के बाद बैकुंठ चतुर्दशी पर महादेव उन्हें पुनः सृष्टि का कार्यभार सौंप
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इसी मान्यता के आधार पर, धानमंडी स्थित ओंकारेश्वर महादेव मंदिर से महादेव को रथ में विराजित कर सवारी निकाली गई। यह सवारी नगर के विभिन्न मार्गों से भ्रमण करते हुए वजीरपुरा स्थित मोढ़वणिक समाज के श्रीराधा-कृष्ण मंदिर पहुंची। पूरे नगर में भक्तों ने ओंकारेश्वर महादेव का पूजन किया। इस दौरान लोगों ने महादेव के जयकारे लगाए।
मंदिर पहुंचने पर भगवान भोलेनाथ की ओर से श्रीकृष्ण को बिल्वपत्र की माला भेंट की गई और प्रभु श्रीकृष्ण की ओर से भोलेनाथ को तुलसी माला अर्पित की गई। यह प्रतीकात्मक आदान-प्रदान सृष्टि के कार्यभार हस्तांतरण का प्रतीक था।
इस वार्षिक आयोजन के लिए पहले से ही तैयारियां कर ली गई थीं। बड़ी संख्या में भक्तों ने इस अवसर पर आतिशबाजी भी की, जिससे उत्सव का माहौल बन गया। इसके बाद भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर लौट जाते हैं।