Magic Of Science: डायनासोर तक मर गए, मगर पूरी दुनिया बची रह गईं ये छिपकलियां, हड्डियों में छिपा है राज

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ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों ने छिपकली, जिसे गोआना के नाम से जाना जाता है. इनकी त्वाचा के नीचे पाए जाने वाले हड्डियों के बारे में वैज्ञानिकों ने स्टडी में पाया कि इसमें कई राज छिपे हैं. चलिए जानते हैं.

छिपकलियों का खुला राज.

New Science Study: ऑस्ट्रेलिया की मशहूर गोआना या मॉनिटर लिजर्ड छिपकली स्टडी की गई. इस स्टडी ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया. ये विशाल और ताकतवर सरीसृप, जो जंगलों और झाड़ियों में अपनी जीभ लपलपाते हुए घूमते हैं, जो लाखों साल पहले डायनासोर के खात्मे के बाद भी जीवित रहे. आखिर इसका क्या राज रहा होगा. जूलॉजिकल जर्नल ऑफ द लिनियन सोसाइटी में एक ताजा स्टडी प्रकाशित हुई है, जो इनके रहस्य से पर्दा हटाती है. गोआना की त्वचा के नीचे छिपी हड्डी जैसी संरचनाएं जिनको ऑस्टियोडर्म्स कहा जाता है, इसकी मदद से ही वे अब धरती पर जिंदा रह पाए.

पहले ऑस्टियोडर्म्स के बारे में जानते हैं. ये त्वचा के अंदर मौजूद छोटी-छोटी हड्डी जैसी प्लेटें होती हैं, जो कुछ जानवरों में पाई जाती हैं. उदाहरण के लिए, मगरमच्छ और आर्मडिलो (एक प्रकार का छोटा स्तनधारी) की त्वचा में ऐसी संरचनाएं होती हैं. ये हड्डियां छोटी से लेकर बहुत बड़ी हो सकती हैं, जैसे कि स्टेगोसॉरस डायनासोर की पीठ पर विशाल प्लेटें. वैज्ञानिकों को पहले लगता था कि ये हड्डियां सिर्फ जानवरों को चोट से बचाने का काम करती हैं, लेकिन अब पता चला है कि ये कई और काम करती हैं, जैसे तापमान को नियंत्रित करना, हिलने-डुलने में मदद करना और यहां तक कि अंडे देने के दौरान कैल्शियम की आपूर्ति करना.

कैसे हुई यह खोज?

वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सुलझाने के लिए एक इंटरनेशनल टीम बनाई. समें ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका के एक्सपर्ट शामिल थे. उन्होंने फ्लोरिडा म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, बर्लिन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, और म्यूजियम्स विक्टोरिया जैसे संस्थानों में रखे गए लगभग 2,000 सरीसृप नमूनों का अध्ययन किया. इनमें से कुछ नमूने 120 साल से भी पुराने थे.

माइक्रो-सीटी स्कैनिंग से स्टडी

पहले तो ऑस्टियोडर्म्स को देखने के लिए नमूनों को तोड़ना पड़ता था, जिससे वे खराब हो जाते थे. लेकिन पहली बार वैज्ञानिकों ने माइक्रो-सीटी स्कैनिंग का इस्तेमाल किया. जो एक तरह का हाई-टेक्नोलॉजी स्कैनर है. यह तकनीक अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले सीटी स्कैन से भी ज्यादा सटीक है. यह छोटी-छोटी संरचनाओं को देखने में मदद करती है. इस तकनीक से वैज्ञानिकों ने छिपकलियों और सांपों के शरीर के अंदर 3डी मॉडल बनाए और ऑस्टियोडर्म्स की स्थिति को समझा. उन्होंने एक नई तकनीक, रेडियोडेंसिटी हीटमैपिंग भी विकसित की.

गोआना में चौंकाने वाली खोज

वैज्ञानिकों को पहले लगता था कि गोआना (मॉनिटर लिजर्ड) में ऑस्टियोडर्म्स बहुत कम पाए जाते हैं. लेकिन, इस स्टडी में 29 ऑस्ट्रेलो-पापुआन गोआना प्रजातियों में पहले कभी न देखी गई ऑस्टियोडर्म्स मिलीं. यह खोज इतनी बड़ी थी कि गोआना में ऑस्टियोडर्म्से बारे में जानकारी पांच गुना बढ़ गई. इससे पता चला कि दुनिया की लगभग आधी छिपकली प्रजातियों में किसी न किसी रूप में ऑस्टियोडर्म्स मौजूद हैं.

इसका क्या मतलब है?

यह खोज सिर्फ एक शारीरिक जिज्ञासा नहीं है. गोआना लगभग 2 करोड़ साल पहले ऑस्ट्रेलिया आए थे. उन्हें वहां के कठिन माहौल में ढलना पड़ा. अगर ऑस्टियोडर्म्स उस समय विकसित हुए, तो ये हड्डियां उनके लिए कितनी जरूरी रही होंगी. ये संरचनाएं शायद उन्हें शिकारियों से बचाने, गर्मी को नियंत्रित करने या फिर अंडे देने में मदद करने में महत्वपूर्ण थीं.

Deep Raj Deepak

दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व…और पढ़ें

दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व… और पढ़ें

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डायनासोर तक मर गए, पूरी दुनिया बची रह गईं ये छिपकलियां, हड्डियों में छिपा राज

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