लव…ग्रहों का धोखा है या कुंडली में बैठे शुभ ग्रहों का तोहफा

Love Astrology: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में कुछ विशेष भाव और ग्रह प्रेम संबंधों और वैवाहिक जीवन की दिशा तय करते हैं. यदि इनकी स्थिति अनुकूल हो तो प्रेम सफल होता है, अन्यथा जीवन में धोखा, कलह या रिश्तों की विफलता देखने को मिलती है.

प्रेम संबंधों में तीन मुख्य भावों की भूमिका

  1. पंचम भाव (5वां घर) – प्रेम, आकर्षण और चुनाव
    पंचम भाव बुद्धि और प्रेम का भाव होता है. इसी भाव से यह देखा जाता है कि व्यक्ति किस तरह का प्रेम संबंध बनाएगा और उसमें कितना स्थायित्व होगा. अगर पंचम भाव या इसका स्वामी शत्रु राशि में हो, या पाप ग्रहों जैसे राहु, केतु या शनि से ग्रस्त हो, तो व्यक्ति को प्रेम में धोखा, गलत चुनाव या एकतरफा प्रेम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
  2. सप्तम भाव (7वां घर) – विवाह और जीवनसाथी
    यह भाव वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी की प्रकृति और विवाह के बाद की स्थिति को दर्शाता है. अगर सप्तम भाव या इसका स्वामी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, स्वराशि, मित्र राशि या उच्च राशि में हो, तो वैवाहिक जीवन सुखद होता है. इससे यह भी पता चलता है कि क्या जीवनसाथी के आने के बाद व्यक्ति की प्रगति होगी या नहीं.
  3. नवम भाव (9वां घर) – भाग्य और रिश्तों की स्थिरता
    नवम भाव को भाग्य भाव कहा जाता है. पंचम से पंचम होने के कारण यह भाव यह भी बताता है कि प्रेम संबंध भाग्य में है या नहीं. साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि जीवनसाथी के चुनाव में भाग्य साथ देगा या नहीं. यदि यह भाव कमजोर हो तो अच्छे प्रयासों के बावजूद प्रेम में असफलता मिल सकती है.

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राहु और केतु अगर पंचम, सप्तम या नवम भाव में हों, या इन भावों के स्वामी के साथ युति में हों, तो संबंधों में भ्रम, धोखा, झूठे वादे या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

शनि अगर पंचम, सप्तम, लग्न या दशम भाव में हो, तो रिश्तों में विलंब, संदेह, दूरी और वैवाहिक जीवन में भावनात्मक शून्यता आ सकती है.

नीच ग्रहों की युति विशेष रूप से खतरनाक मानी जाती है. उदाहरण के लिए यदि पंचमेश या सप्तमेश नीच राशि में हों और उनके साथ राहु या केतु हों, तो यह योग संबंधों में भारी हानि का कारण बनता है.

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यदि सप्तम भाव का स्वामी स्वराशि, मित्र राशि या उच्च राशि में हो, तो विवाह के बाद जीवन में सुख, समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है.

पंचमेश, भाग्येश और सप्तमेश यदि आपसी शुभ संबंध में हों और एक-दूसरे के साथ शुभ भावों में स्थित हों, तो यह योग लव मैरिज को सफल बनाता है. ऐसे योग में जीवनसाथी का आगमन भाग्योदय का कारण बनता है.

प्रेम संबंध और लव मैरिज के सफल या असफल होने में ग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. शुभ ग्रहों की स्थिति प्रेम जीवन को मधुर और स्थिर बनाती है, जबकि पाप ग्रहों या नीच ग्रहों की स्थिति कलह, गलतफहमियों और रिश्तों की समाप्ति तक ले जा सकती है. इसलिए किसी भी प्रेम संबंध या विवाह के निर्णय से पूर्व कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है.

प्रसिद्ध और अनुभवी ज्योतिषी निखिल कुमार की मानें तो ज्योतिषीय उपायों, सही दिशा और समय के अनुसार लिए गए निर्णय जीवन को सुखद बना सकते हैं. ग्रहों की चाल को समझकर, उनका सहयोग प्राप्त कर, हम प्रेम संबंधों को बेहतर दिशा दे सकते हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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