1 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
आज डिजिटल टेक्नोलॉजी के दौर में हर इंसान की गतिविधियां कहीं-न-कहीं डेटा में बदल रही हैं। कौन कहां गया, क्या सर्च किया, किससे बात की, क्या खरीदा ये सारी जानकारियां स्मार्टफोन, एप्स और इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स के जरिए रिकॉर्ड हो रही हैं। लोकेशन, बैंकिंग ट्रांजैक्शन, कॉल डिटेल्स से लेकर बायोमेट्रिक डेटा तक ट्रैक होता है। अक्सर व्यक्ति को इसकी भनक तक नहीं लगती है।
चौंकाने वाली बात यह है कि हर 39 सेकंड में एक साइबर हमला होता है। साल 2024 में अकेले डीपफेक फ्रॉड से 6,000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई। हांगकांग की एक कंपनी को ₹212 करोड़ का नुकसान एक फर्जी AI-वीडियो के कारण हुआ।
ये घटनाएं साफ संकेत देती हैं कि डिजिटल टेक्नोलॉजी जितनी सुविधा देती है, उतना ही बड़ा खतरा भी बन सकती है। खासकर जब पर्सनल जानकारी गलत हाथों में पहुंच जाए।
तो चलिए, जानें अपने अधिकार कॉलम में बात करेंगे कि रोजाना स्मार्टफोन से कौन सी पर्सनल जानकारी ट्रैक हो रही है? साथ ही जानेंगे कि-
- ये जानकारी कैसे और किन प्लेटफॉर्म्स से ट्रैक होती है?
- इससे बचाव के लिए क्या कर सकते हैं?
एक्सपर्ट: डॉ. पवन दुग्गल, साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट, नई दिल्ली
सवाल- ऑनलाइन कौन-कौन सी जानकारी सबसे ज्यादा ट्रैक होती है?
जवाब- आज के डिजिटल युग में मोबाइल एप्स, वेबसाइट्स और ऑनलाइन सर्विसेज यूजर्स की कई तरह की पर्सनल जानकारी नियमित रूप से इकट्ठा कर रही हैं। यह ट्रैकिंग आमतौर पर ‘Terms & Conditions’ या ‘Allow Access’ जैसे विकल्पों के जरिए यूजर की सहमति लेकर की जाती है। लेकिन कई बार एप्स जरूरत से ज्यादा और पेचीदा परमिशन मांगते हैं। सबसे ज्यादा ट्रैक की जाने वाली जानकारियां नीचे दिए ग्राफिक में देख सकते हैं।

सवाल- इस तरह की ऑनलाइन ट्रैकिंग का उद्देश्य क्या होता है?
जवाब- साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट डॉ. पवन दुग्गल बताते हैं कि कंपनियां ऐसा दावा करती हैं कि यूजर डेटा की ट्रैकिंग का मकसद उसके बिहेवियर को समझना, सर्विसेज को पर्सनलाइज करना और एडवर्टाइजमेंट के जरिए कमाई बढ़ाना होता है। इसे इन पॉइंट्स से समझिए-
एडवर्टाइजमेंट टारगेटिंग कंपनियां यूजर की सर्च, लोकेशन, शॉपिंग और सोशल मीडिया एक्टिविटी को ट्रैक करके उनके इंटरेस्ट के मुताबिक विज्ञापन दिखाती हैं, जिससे ऑनलाइन बिक्री बढ़ाई जा सके।
यूजर एक्सपीरियंस को कस्टमाइज करना
बार-बार एक ही चीज टाइप न करनी पड़े और पहले सर्च की गईं चीजें फिर से जल्दी मिल जाएं। इसके लिए साइट्स यूजर डेटा सेव करके इंटरफेस को पर्सनल बनाती हैं।
बिहेवियर एनालिटिक्स और मार्केट रिसर्च
यूजर्स का डिजिटल बिहेवियर (क्या क्लिक करते हैं, कहां रुकते हैं) ट्रैक करके कंपनियां यह तय करती हैं कि किस प्रोडक्ट या फीचर पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
फ्रॉड डिटेक्शन और सिक्योरिटी
कुछ संस्थाएं लॉगिन पैटर्न, लोकेशन और ट्रांजैक्शन हिस्ट्री को ट्रैक करके यह पहचानती हैं कि कहीं कोई संदिग्ध गतिविधि तो नहीं हो रही है।
सरकारी निगरानी (कुछ मामलों में)
राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था या साइबर क्राइम की निगरानी के लिए कुछ ट्रैकिंग सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसियों द्वारा की जाती है, लेकिन इसके लिए कानूनी अनुमति जरूरी होती है।
डेटा मॉनेटाइजेशनइन
दावों के पीछे बड़ा उद्देश्य डेटा से मुनाफा कमाना भी होता है। कई बार कंपनियां इस डेटा को थर्ड पार्टी को बेचती हैं या विज्ञापन टारगेटिंग में इस्तेमाल करती हैं। अगर यूजर की जानकारी या सहमति के बिना यह सब होता है, तो यह निजता के अधिकार और डिजिटल स्वतंत्रता का सीधा उल्लंघन है।
सवाल- डिजिटल डेटा की सिक्योरिटी को लेकर यूजर के क्या अधिकार हैं?
जवाब- भारत में हर नागरिक को अपनी निजी जानकारी की सुरक्षा का अधिकार है। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) के तहत आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक मौलिक अधिकार माना है। इसके अलावा IT Act, 2000 और डेटा प्रोटेक्शन से जुड़े नियम, यूजर की जानकारी की सुरक्षा के लिए कानूनी रूपरेखा देते हैं।

सवाल- क्या कंपनियों को यूजर की सहमति लेना जरूरी है?
जवाब- हां, IT नियमों के अनुसार किसी भी एप या वेबसाइट को यूजर की जानकारी ट्रैक करने से पहले यह बताना जरूरी है कि वे उस डेटा का कहां और कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर वे यह खुलासा नहीं करते या जानकारी छुपाकर परमिशन लेते हैं तो यह अनैतिक और कानूनी उल्लंघन माना जाता है।

सवाल- अगर किसी एप, वेबसाइट या कंपनी ने अनुमति के बिना यूजर का डेटा शेयर या लीक किया तो वह क्या कार्रवाई कर सकता है?
जवाब- अगर पर्सनल जानकारी बिना आपकी इजाजत के इस्तेमाल, शेयर या लीक की गई है तो आप इन आसान तरीकों से कार्रवाई कर सकते हैं। जैसेकि-
- हर एप या वेबसाइट को एक ग्रेविएंस ऑफिसर रखना जरूरी होता है। उनकी ईमेल या कॉन्टैक्ट जानकारी कंपनी की वेबसाइट या एप पर मिल जाती है। वहां लिखित शिकायत भेजें।
- भारत सरकार की वेबसाइट www.cybercrime.gov.in पर आप ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। इसमें पहचान, घटनाक्रम और सबूत दें।
- अगर मामला डेटा लीक या तकनीकी चूक से जुड़ा है तो इसे www.cert-in.org.in पर रिपोर्ट करें। यह भारत की साइबर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम है।
- अगर आपको मानसिक, आर्थिक या व्यक्तिगत नुकसान हुआ है तो कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
सवाल- डेटा लीक और फ्रॉड से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
जवाब- अपनी डिजिटल गोपनीयता को सुरक्षित रखने या ऑनलाइन डेटा फ्रॉड से बचने के लिए ग्राफिक में दिए कुछ आसान और प्रभावी टिप्स को अपना सकते हैं।

सवाल- भारत में डिजिटल गोपनीयता से जुड़े हाल के कानूनी अपडेट क्या हैं?
जवाब- भारत सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) नियम, 2025 का ड्राफ्ट जारी किया है। इस कानून का मकसद आपकी डिजिटल जानकारी की सुरक्षा को और मजबूत बनाना है। इसकी कुछ मुख्य बातें इन पॉइंट्स से समझिए-
- आपकी सहमति के बिना डेटा इकट्ठा या इस्तेमाल करना गैरकानूनी होगा।
- कंपनियों को डेटा लीक होने की स्थिति में तुरंत सूचना देनी होगी।
- बच्चों के डेटा की सुरक्षा के लिए अलग प्रावधान होंगे।
- आपकी निजी जानकारी का कैसे, क्यों और कितना इस्तेमाल हो रहा है, इसका अधिकार आपके पास रहेगा।
……………… ये खबर भी पढ़िए…
जानें अपने अधिकार- मकान किराए पर लेने के नियम:क्या हैं किराएदार और मकान मालिक के कानूनी अधिकार, रेंट एग्रीमेंट की 10 बातें

अक्सर किराएदारों और मकान मालिकों के बीच अधिकारों की जानकारी के अभाव में वाद-विवाद होने लगता है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि किराये पर रहते समय आपके कौन-कौन से कानूनी अधिकार हैं, जिनकी मदद से आप न सिर्फ छत, बल्कि सम्मान और मानसिक शांति के साथ रह सकें। पूरी खबर पढ़िए…
.