1 घंटे पहलेलेखक: संदीप सिंह
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किराये पर रहना आज के शहरी जीवन का हिस्सा है। लोग घर को सजाते हैं, उसमें सपने बसाते हैं। लेकिन जब अचानक किराया बढ़े, बिना नोटिस निकासी हो या प्राइवेसी में दखल हो तो सवाल उठता है कि क्या किराएदार का कोई अधिकार नहीं है?
अक्सर किराएदारों और मकान मालिकों के बीच अधिकारों की जानकारी के अभाव में वाद-विवाद होने लगता है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि किराये पर रहते समय आपके कौन-कौन से कानूनी अधिकार हैं, जिनकी मदद से आप न सिर्फ छत, बल्कि सम्मान और मानसिक शांति के साथ रह सकें।
तो चलिए ‘जानें अपने अधिकार’ में आज बात करेंगे कि भारत में किराएदार और मकान मालिक, दोनों के पास क्या-क्या कानूनी अधिकार हैं? साथ ही जानेंगे कि-
- क्या मकान मालिक कभी भी घर से निकाल सकता है?
- विवादों से बचने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
एक्सपर्ट: रूद्र विक्रम सिंह, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
सवाल- क्या किराएदार के पास मकान मालिक की मनमानी से बचने के कानूनी हक हैं?
जवाब- भारत में किराएदारों को कई कानूनी अधिकार दिए गए हैं, जो उन्हें मकान मालिक की जबरदस्ती या गलत व्यवहार से बचाते हैं। उसे लिखित किराएनामा मांगने का अधिकार है। मकान मालिक बिना नोटिस उसे नहीं निकाल सकता है। अगर जबरदस्ती निकाला जाए तो किराएदार कोर्ट में केस कर सकता है। मकान की जरूरी मरम्मत न होने पर किराएदार खुद मरम्मत करवा सकता है और खर्च सिक्योरिटी या किराये से समायोजित कर सकता है। इसके अलावा मकान मालिक किराएदार की इजाजत के बिना घर में नहीं घुस सकता है। ये उसकी निजता का हक है।

सवाल- क्या हाउसिंग सोसाइटी या मकान मालिक बिना बताए किराएदार को निकाल सकते हैं?
जवाब- कोई भी मकान मालिक या सोसाइटी बिना पहले से सूचना दिए किराएदार को अचानक घर खाली करने को नहीं कह सकती है, अगर किराया एग्रीमेंट में नोटिस पीरियड लिखा है। ये नियम दो कानूनों के तहत आते हैं।
रेंट कंट्रोल एक्ट, 1948
ये कानून कहता है कि मकान मालिक बिना सही वजह और बिना नोटिस दिए किराएदार को नहीं निकाल सकते हैं। अगर विवाद हो तो उसका हल कोर्ट के जरिए ही होगा।
मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021
इसका उद्देश्य किराये से जुड़ी समस्याओं, जैसे किराया न मिलना, जबरन बेदखली, बिना एग्रीमेंट किराएदारी जैसे मामलों को सुलझाना है। यह कानून केंद्र सरकार ने बनाया है, लेकिन इसे लागू करना राज्यों की मर्जी पर है। अभी सभी राज्यों ने इसे पूरी तरह लागू नहीं किया है।
सवाल- क्या किराएदार किराये के घर में बदलाव कर सकता है?
जवाब- किराएदार छोटे-मोटे बदलाव जैसे पर्दे लगाना, दीवारों पर पेंट करना या छोटे फिक्सचर (जैसे बल्ब, हैंगर, छोटा शेल्फ) लगाना कर सकता है। लेकिन अगर कोई बड़ा बदलाव करना हो, जैसे दीवार तोड़ना, नया निर्माण करना या प्लानिंग में बदलाव करना तो इसके लिए मकान मालिक की लिखित अनुमति जरूरी होती है। बिना इजाजत बड़े बदलाव करना अनुबंध का उल्लंघन माना जा सकता है और इससे विवाद भी हो सकता है। इसलिए कोई भी बदलाव करने से पहले मकान मालिक से बात जरूर करें।
सवाल- क्या भारतीय कानून में मकान मालिक को भी कुछ अधिकार मिले हैं?
जवाब- भारतीय कानून, खासकर मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 के तहत मकान मालिक को कई अधिकार दिए गए हैं, ताकि वह अपनी संपत्ति को सुरक्षित और कानूनी रूप से किराये पर दे सके। इन्हें नीचे दिए ग्राफिक से समझिए-

सवाल- किराये का लिखित एग्रीमेंट कितने महीने का होना चाहिए और यह क्यों जरूरी है?
जवाब- आमतौर पर किराये का लिखित एग्रीमेंट 11 महीने का किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है ताकि भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 के तहत रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता और उससे जुड़ी फीस से बचा जा सके। अगर यह 12 महीने या उससे अधिक का होता है तो उसे रजिस्टर करवाना अनिवार्य है।
इस एग्रीमेंट में मकान मालिक और किराएदार के अधिकार और जिम्मेदारियां साफ-साफ तय होती हैं। कोई भी विवाद होने पर यही डॉक्यूमेंट कानूनी सबूत बनता है। इसलिए भले ही यह रजिस्टर्ड न हो, लेकिन इसे नोटरी से सत्यापित करवाना जरूरी होता है ताकि यह वैध बना रहे।

सवाल- किराये का एग्रीमेंट रजिस्टर कराते समय कौन-कौन से चार्ज देने होते हैं?
जवाब- रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट कराते समय कुछ तय शुल्क देने होते हैं, जो लीज की अवधि और किराये की राशि पर निर्भर करते हैं। भारत में आमतौर पर ये चार्जेस इस प्रकार होते हैं।
स्टांप ड्यूटी
- अगर लीज 5 साल तक की है तो कुल वार्षिक किराये का 2% स्टांप ड्यूटी देनी होती है।
- अगर लीज 5 से 9 साल के बीच है तो स्टांप ड्यूटी 3% होती है।
- अगर लीज 9 साल से ज्यादा की है तो स्टांप ड्यूटी 6% हो जाती है (यानि 3% की डबल)।
- अगर सिक्योरिटी डिपॉजिट भी शामिल है तो अतिरिक्त ₹100 देने होते हैं।
रजिस्ट्रेशन फीस
- यह सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में रेंट एग्रीमेंट रजिस्टर कराने पर लगती है।
- ₹1,100 की न्यूनतम रजिस्ट्रेशन फीस देनी होती है, जिसमें ₹1,000 फीस और ₹100 पेस्टिंग चार्ज शामिल होता है।
इसलिए जब भी आप रेंट एग्रीमेंट कराएं, तो ये शुल्क पहले से जानकर रखें और मकान मालिक से साझा खर्च पर सहमति बनाएं। इससे कानूनी प्रक्रिया भी सही होगी और विवाद से भी बचा जा सकेगा।

सवाल- किराएदार का पुलिस वेरिफिकेशन कराना क्यों जरूरी है?
जवाब- भारतीय कानून के अनुसार, किराएदार का पुलिस वेरिफिकेशन कराना मकान मालिक की जिम्मेदारी है। यह स्थानीय पुलिस अधिनियम (जैसे दिल्ली पुलिस एक्ट, महाराष्ट्र पुलिस एक्ट) और कई राज्य सरकारों की गाइडलाइंस में अनिवार्य किया गया है।
पुलिस वेरिफिकेशन से मकान मालिक को यह पता चलता है कि किराएदार की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि तो नहीं है। यह सुरक्षा के लिए जरूरी है, खासकर अगर किराएदार नया या अनजान हो। अगर मकान मालिक यह प्रक्रिया पूरी नहीं करता और किराएदार किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल पाया जाता है, तो मकान मालिक पर भी लापरवाही का केस बन सकता है।
सवाल- एक मकान मालिक किराये पर घर देने के समय अधिकतम कितनी सिक्योरिटी डिपॉजिट मांग सकता है?
जवाब- भारत में सिक्योरिटी डिपॉजिट की कोई तय सीमा नहीं है। यह अलग-अलग शहरों और मकान मालिकों पर निर्भर करता है। बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, चेन्नई में मकान मालिक आमतौर पर 3 से 6 महीने के किराये के बराबर डिपॉजिट लेते हैं। वहीं कुछ शहरों में 1 महीने के किराये के बराबर सिक्योरिटी डिपॉजिट लिया जाता है। किराया खत्म होने पर, अगर घर को कोई नुकसान नहीं हुआ है तो मकान मालिक को पूरी राशि वापस करता है। अगर कोई कटौती करनी हो तो उसका कारण बताना जरूरी होता है।
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