Swami Kailashananda Giri: देवी को बलि चढ़ाना सही या गलत ? स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें

Swami Kailashananda Giri on Bali Pratha: देश भर में माता के कई मंदिरों में तो बिना बलि के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता. हालांकि अब तक इस परंपरा का कोई धार्मिक आधार नहीं पाया गया है. कई महान पुरुष और संतों ने इसका विरोध भी किया. हिंदू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है.

यहां तक की वेदों में कई ऋचाएं हैं जिसमें हिंदू धर्म में बलि प्रथा निषेध मानी जाती है. सामवेद के अनुसार ‘न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। मंत्रश्रुत्यं चरामसि’ इसका अर्थ है देवों हम हिंसा नहीं करते और न ही ऐसा अनुष्ठान करते हैं, वेद मंत्र के आदेशानुसार आचरण करते हैं. बलि प्रथा एक विवादास्पद विषय है, और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में इसके प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. आइए स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें धार्मिक कार्य के लिए बलि देना सही है या गलत.

स्वामी कैलाशानंद गिरी से जानें बलि देना सही या गलत ?

एक वीडियो में बलि प्रथा को लेकर स्वामी कैलाशानंद गिरी ने बताया कि बलि देने की परंपरा अनादिकाल से है. दुर्गा सप्तशती का श्लोक है ‘बलि प्रधान पूजाया मग्न कार्य महोत्सव’ जब माता रानी का महोत्सव है जैसे दुर्गा अष्टमी, नवमी, सप्तमी की कालरात्रि, दशहरा हो तो उस समय बलि देना चाहिए. लेकिन ये कोई प्रमाण नहीं है कि बलि पशु की ही हो. बलि छाग, दही, उड़द, कद्दू, नारियल, केले की भी बलि हो सकती है.

स्वामी कैलाशानंद गिरी ने बताया कि देवी कामाख्या, मां काली, मां छिन्नमस्तिक, मां धूमावती, मां मातंगी, मां तारा इनका तो आहार ही रक्त है, लेकिन जरुरी नहीं कि ये रक्त किसी जानवर का हो, मां समय-समय पर भक्तों की रक्षा के लिए दुष्टों का संहार कर भी रक्तपान करती हैं.

शाक्त परंपरा में बलि का उल्लेख

शाक्त परंपरा, मां दुर्गा, काली और अन्य शक्ति रूपों की पूजा पर केंद्रित है. इसमें पशुबलि का विशेष महत्व रहा है. कालिका पुराण और देवी भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में देवी को प्रसन्न करने के लिए पशुबलि का उल्लेख है. खासकर पूर्वी भारत जैसे पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा आदि प्रदेशों के साथ ही नेपाल जैसे देशों में काली, दुर्गा पूजा और नवरात्रि के दौरान बकरे, मुर्गे या भैंसे की बलि दी जाती रही है.

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