बरगद का पत्ता-मंद बुद्धि के लिए रामबाण
बघेलखंड क्षेत्र में बरगद के पेड़ को सिर्फ एक छायादार वृक्ष नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से एक जीवनदायक औषधि माना जाता है. सामाजिक वानिकी वृत्त रीवा रामटेकरी में रोपणी प्रभारी विष्णु कुमार तिवारी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि बरगद को आयुर्वेद में अक्षयवट और अध्यात्म में बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है. इसके पत्ते, फल, छाल, तना और जड़ तक सभी औषधीय गुणों से भरपूर हैं.
दादी-नानी के नुस्खों में छिपी है बौद्धिक शक्ति की चाबी
बरगद का दूध जैसा रस, जिसे स्थानीय लोग बरगद का दूध कहते हैं, बघेलखंड में इसी दूध को ब्रह्ममुहूर्त में निकालकर बताशे में डालकर चूसने की परंपरा रही है. इससे न सिर्फ पाचन शक्ति बेहतर होती है बल्कि दस्त, असलर और पेट के घाव जैसी बीमारियां भी दूर होती हैं. वहीं प्राचीन समय से इस रस का उपयोग खासकर बच्चों के दस्त रोकने के लिए माताएं करती थीं.
सिर्फ बुद्धि ही नहीं, स्किन से लेकर इम्यूनिटी तक करता है मजबूत
बरगद के पत्तों को त्वचा पर रगड़ने से खुजली, एक्ज़िमा जैसी समस्याओं से राहत मिलती है. इसके अलावा इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेट्री, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल तत्व शरीर को प्राकृतिक तौर पर सुरक्षा प्रदान करते हैं. यह शरीर में विटामिन्स को संचित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है.
उन्होंने साइंटिफिक पहलू पर बात करते हुए कहा कि बरगद का पेड़ भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता को भी कम कर सकता है. इसकी जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि यह ज़मीन को थामे रखता है. आमतौर पे ये 200 से 400 या उससे भी अधिक का हो सकता है. कोलकाता के द ग्रेट बनयान ट्री की उम्र करीब 300 वर्ष मानी गई है जो इस वृक्ष की दीर्घायु और शक्ति का प्रमाण है।
बघेलखंड की परंपरा, आज की ज़रूरत
ऐसे समय में जब लोग एलोपैथिक दवाओं और केमिकल युक्त टॉनिक की ओर भाग रहे हैं. बघेलखंड की यह पारंपरिक विद्या एक नई राह दिखा रही हैएम अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा दिमाग से तेज़, पाच से मजबूत और शरीर से स्वस्थ हो तो बरगद के पत्तों से जुड़ा यह उपाय आज़माया जा सकता है.