सावधान! बरसात में बकरियों में फैल रही ये 2 जानलेवा बीमारी, जो ले सकती है जान; डॉक्टर ने बताए घरेलू और सही इलाज

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Goat Health Tips: बकरियों में मानसून के दौरान संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. सतना में ऑर्फ नामक वायरल रोग और एंटरोटॉक्सिमिया जानलेवा साबित हो रहे हैं. आज हम एक्सपर्ट से कुछ सलाह बताएंगे.

सतना. बकरियां भारत के ग्रामीण जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इन्हें गरीबों की गाय भी कहा जाता है. खासकर बघेलखंड जैसे क्षेत्रों में इनका पालन आज भी कई लोगों की रोजी-रोटी का प्रमुख साधन है, लेकिन मानसून का मौसम इन बेजुबानों के लिए खतरे की घंटी लेकर आता है. बारिश के मौसम में नमी और गंदगी के कारण कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

दो मुख्य बीमारियां: ऑर्फ और एंटरोटॉक्सिमिया
लोकल 18 से बातचीत में पशु चिकित्सक डॉ.बृहस्पति भारती ने बताया कि बरसात में बकरियों में खासतौर पर दो बीमारियां आमतौर पर देखी जाती है, जिनमें ऑर्फ और एंटरोटॉक्सिमिया शामिल है. ऑर्फ एक वायरल रोग है, जो संक्रमित बकरी से अन्य बकरियों में तेजी से फैलता है. इसमें बकरी के मुंह और उसके चारों ओर छाले पड़ जाते हैं. अगर समय रहते इसे रोका न जाए तो पूरी झुंड प्रभावित हो सकती है.

गलत घरेलू इलाज बन सकता है जानलेवा
डॉ. ने चेतावनी दी कि कई पशुपालक जानकारी के अभाव में जले हुए तेल का इस्तेमाल बकरियों के छालों पर करते हैं, जिसे जानवर जीभ से चाट लेता है. इससे छाले पेट तक पहुंच सकते हैं और हालत बिगड़ सकती है. बेहतर विकल्प के रूप में उन्होंने संक्रमित को झुंड से अलग रख के हल्दी और सरसों के तेल के लेप को छालों पर लगाने की सलाह दी ताकि अगर बकरी उसे चाट भी ले तो कोई आंतरिक नुकसान न हो.

टीकाकरण और सावधानी ही है असली इलाज
उन्होंने बताया कि ऑर्फ एक सेल्फ-क्योर बीमारी है जो समय के साथ ठीक हो जाती है, लेकिन इससे जुड़ी दूसरी संक्रमणों से बचाव के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना जरूरी होता है. वहीं एंटरोटॉक्सिमिया, पॉट पॉक्स और पीपीआर जैसी बीमारियों से बचाव के लिए सरकारी पशु अस्पतालों में टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध है. डॉ. भारती ने वर्षों पुराना मिथक तोड़ते हुए यह भी स्पष्ट किया कि गर्भवती बकरियों को भी टीके दिए जा सकते हैं और इससे उनके गर्भस्थ शावकों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है.

डिवॉर्मिंग और साफ-सफाई भी उतनी ही जरूरी
बरसात में तालाब और खेतों में कीड़े-मकोड़े व घोंघे बढ़ जाते हैं, जो बकरियों के लिए हानिकारक होते हैं. खासकर घोंघे घास में छुप जाते हैं और जब बकरी इन्हें खा लेती है जिससे इनके पेट में कीड़े हो जाते हैं. इससे बचाव के लिए डिवॉर्मिंग यानी पेट के कीड़े मारने की दवा समय समय पर देना जरूरी है.

बचाव में ही भलाई, मानसून से पहले हो तैयारी
टीकाकरण मानसून आने से 20-21 दिन पहले करवा लेना चाहिए क्योंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में वक्त लगता है. साथ ही बकरियों को कीचड़ और गंदे तालाबों से दूर रखना चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें और पशुपालकों को आर्थिक नुकसान न हो. बारिश भले ही जीवनदायिनी हो लेकिन अगर सावधानी न बरती जाए तो यह पशुओं के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है. इस मौसम में पशुपालकों की सतर्कता और समय पर इलाज ही बकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है.

Anuj Singh

Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digital), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked a…और पढ़ें

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सावधान! बरसात में बकरियों में फैल रही ये 2 जानलेवा बीमारी, जो ले सकती है जान

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