- Hindi News
- Jeevan mantra
- Dharm
- What To Do If You Don’t Feel Like Meditating, Significance Of Meditation In Hindi, How To Control Anger In Hindi
3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
आज सुख-सुविधाओं की चीजों की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी कई लोगों का मन अशांत ही रहता है। एक प्रेरक लोक कथा है, जिसमें एक संत ने एक व्यापारी को बताया था कि सच्ची शांति बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होती है। संत ने व्यापारी को शांति पाने के सूत्र बताए थे, पढ़िए ये लोक कथा…
पुराने समय में एक धनी व्यापारी था, जिसके पास अपार धन-संपत्ति, बड़ा घर, नौकर और सभी तरह की सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन फिर भी उसका मन हमेशा अशांत रहता था। उसे हमेशा चिंता, तनाव और असंतोष घेरे रहते थे। उसके जीवन में कोई स्पष्ट समस्या नहीं थी, फिर भी उसे ऐसा लगता था कि कुछ कमी है।
वह अपने व्यापार के सिलसिले में एक गांव से दूसरे गांव की यात्रा करता रहता था। एक दिन, यात्रा के दौरान उसे रास्ते में एक आश्रम दिखाई दिया। वातावरण में शांति और हरियाली थी। ये देखकर वह थोड़ा आकर्षित हुआ और आश्रम के भीतर चला गया।
आश्रम के अंदर एक संत ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे हुए थे। व्यापारी ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी परेशानी उनके सामने रख दी। उसने कहा, “गुरुजी, मेरे पास सब कुछ है, लेकिन फिर भी मन बेचैन रहता है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं शांति कैसे प्राप्त करूं।”
संत मुस्कराए और बोले, “यदि तुम शांति चाहते हो तो थोड़ी देर यहां बैठकर ध्यान करो। भीतर की ओर देखो।”
व्यापारी ने प्रयास किया। वह ध्यान मुद्रा में बैठा, लेकिन उसका मन कभी व्यापार के नुकसान की चिंता करने लगा, तो कभी घर के मामलों की। मन में इधर-उधर की बातों का जाल बुनता रहा। काफी देर कोशिश करने के बाद भी वह ध्यान नहीं लगा सका और संत के पास वापस लौट आया।
उसने निराश होकर कहा, “गुरुदेव, मैं कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ध्यान नहीं लग पा रहा है। मन तो जैसे वश में ही नहीं आता।”
संत ने कहा, “ठीक है, चलो मेरे साथ। आश्रम में थोड़ा घूम आते हैं।” दोनों आश्रम के अंदर टहलने लगे। तभी एक पेड़ के पास व्यापारी का हाथ एक शाखा से टकराया और उसे कांटा चुभ गया। वह दर्द से कराह उठा। संत तुरंत दौड़े और एक औषधीय लेप लाकर उसके घाव पर लगा दिया।
संत ने कहा, “बेटा, जिस प्रकार तुम्हारे हाथ में कांटा चुभा और तुम्हें दर्द हुआ, ठीक उसी प्रकार तुम्हारे मन में भी अनेक कांटे चुभे हुए हैं— क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, लालच, और असंतोष, ये सब मन के लिए कांटों की तरह हैं। जब तक इन कांटों को नहीं निकालोगे, तब तक मन ध्यान में नहीं लगेगा और शांति भी नहीं मिलेगी।”
संत की ये बात सीधे व्यापारी के हृदय में उतर गई। उसने अनुभव किया कि वास्तव में उसकी अशांति का कारण बाहरी दुनिया नहीं, बल्कि उसके अंदर की नकारात्मक भावनाएं हैं। उसने संत से दीक्षा ली और उनके शिष्य के रूप में आश्रम में रहकर साधना शुरू की।
धीरे-धीरे उसने अपने जीवन में बदलाव लाना शुरू किया। क्रोध की जगह क्षमा, अहंकार की जगह विनम्रता, और लालच की जगह दान की भावना विकसित की। उसने अपने धन का उपयोग समाज सेवा में करना शुरू किया, गरीबों की सहायता, विद्यालयों का निर्माण, और जरूरतमंदों की मदद करना उसका उद्देश्य बन गया।
कुछ ही समय में वह व्यापारी, जो कभी अशांत और तनावग्रस्त था, अब शांत, संतुलित और संतोषपूर्ण जीवन जीने लगा। उसे अब किसी भौतिक वस्तु की कमी महसूस नहीं होती थी, क्योंकि उसने आत्मिक शांति प्राप्त कर ली थी।
लोक कथा की सीख
इस लोक कथा से हमें एक महत्वपूर्ण जीवन संदेश मिलता है, सच्ची शांति बाहरी संपत्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और भावनात्मक संतुलन से मिलती है। जब तक हम अपने भीतर के “कांटों” को नहीं निकालते, तब तक कोई भी साधना या प्रयास सफल नहीं हो सकता।
.