हम मन को नियंत्रित करते हैं तो क्या होता है?: श्रीकृष्ण की अर्जुन को सीख: जो व्यक्ति अपने मन का सेवक है, वह चिंतित, भ्रमित और अस्थिर रहता है

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5 घंटे पहले

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महाभारत के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन का रथ युद्ध की ओर बढ़ रहा था, तभी अचानक उनका मन उन्हें रोक देता है। भय, संदेह और मोह अर्जुन की राह में खड़े हो जाते हैं। अर्जुन अपने सारथी यानी श्रीकृष्ण से रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाने के लिए कहते हैं। जब रथ दोनों सेनाओं के बीच पहुंचता है, तब कौरव पक्ष में अर्जुन ने अपने कुटुंब के लोगों को देखा तो उन्होंने युद्ध करने का विचार त्याग दिया।

उस समय श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन को समझाया कि मनुष्य का मन उसका मित्र भी है और शत्रु भी।

श्रीमद् भगवद् गीता की ये एक अमूल्य शिक्षा है, जो आज भी उतनी ही मददगार है।

हमारा मन मित्र है या शत्रु?

हमारा मन हमें मुक्त कर सकता है या बांध सकता है। अगर हम अपने मन के स्वामी बन जाते हैं, अपने मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो जीवन में स्पष्टता, स्थिरता और आनंद का अनुभव करने लगते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति अपने मन का सेवक बन जाता है तो वह चिंता, भ्रम और अस्थिरता का शिकार हो जाता है।

गीता में मन के बारे में श्रीकृष्ण कहते हैं कि- जिसने अपने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सबसे बड़ा मित्र है; लेकिन जिसने मन को नहीं जीता, उसका मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।

मन अग्नि के समान है, नियंत्रित रहे तो प्रकाश फैलाता है, लेकिन यदि यह अनियंत्रित हो जाए तो व्यक्ति को जलाता है और अंधकार फैला देता है।

गीता हमें यह नहीं कहती कि मन बुरा है, बल्कि गीता हमें संदेश देती है कि मन एक उपकरण है, जिसे प्रशिक्षित, अनुशासित और अंततः नियंत्रित किया जाना चाहिए।

यदि हम मन के गुलाम बन जाएं तो क्या होता है?

बहुत से लोग अनजाने में अपने मन के नियंत्रण में जीते हैं। इसकी वजह से लोगों को इन बातों का सामना करना पड़ता है…

  • अनवरत सोच यानी ओवर थिंकिंग- मन अतीत की गलतियों और भविष्य की आशंकाओं में उलझा रहता है। नींद नहीं आती, बेचैनी बनी रहती है और हमेशा मानसिक थकावट महसूस होती है।
  • भावनाओं में फंसना- कभी आत्मविश्वास से भरपूर महसूस होता है तो अगले ही पल असुरक्षित महसूस होने लगता है। मन मौसम की तरह मूड बदलता रहता है और हम उसके पीछे-पीछे भागते रहते हैं। भावनाओं में उलझे रहते हैं।
  • जल्दबाजी करना- जब मन हमें नियंत्रित करता है, तब हम हर बात पर तुरंत प्रतिक्रिया देने लगते हैं। सोच समझकर कार्य करने के बजाय झट से प्रतिक्रिया दे देते हैं। कोई आलोचना सुन ली तो दिन खराब। किसी ने तारीफ कर दी तो उस पर निर्भर हो गए, ये सही नहीं है, सोच-विचार करके निर्णय लेना चाहिए।
  • तनाव बना रहेगा- मन यदि नियंत्रण में न हो तो ये चिंता, तनाव और अवसाद की जड़ बन जाता है। ये ऐसे संकट खड़े करता है जो असल में होते ही नहीं हैं।

यदि हम मन के स्वामी बन जाएं तो क्या होगा?

जब हम मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो जीवन का अनुभव ही बदल जाता है-

  • स्पष्टता और आंतरिक शांति – हम विचारों को बस आते-जाते बादलों की तरह देख पाते हैं, उनमें बह नहीं जाते। निर्णय स्पष्ट होते हैं, जीवन शांत हो जाता है।
  • मूड स्थिर रहता है- हम अब मूड के गुलाम नहीं होते, बात-बात मूड बदलता नहीं है, स्थिर रहता है। भावनाओं को न दबाते हैं और न ही उनमें उलझते हैं, बल्कि उन्हें पार कर जाते हैं।
  • उद्देश्यपूर्ण जीवन- आप प्रतिक्रिया नहीं देते, बल्कि कार्य करते हैं। आप धर्म से प्रेरित होकर जीते हैं। गलतियों से बचे रहते हैं और सही मार्ग पर आगे बढ़ते हैं।
  • आनंद बना रहता है- मन नियंत्रित हो तो हमारा आनंद बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं रहता। आनंद हमारे भीतर से आता है, क्योंकि हम अपने भीतरी संसार के राजा बन चुके होते हैं।

ये हैं मन को साधने के चार साधन

गीता समस्या ही नहीं बताती, समाधान भी देती है, मन को साधने के 4 उपाय, जो गीता में बताए गए हैं:

  • फल का मोह छोड़ें- कर्म करो, लेकिन फल की अपेक्षा मत करो। जब हम अपेक्षा छोड़ देते हैं, तब मन हमारी पकड़ में रहता है। हम अपना श्रेष्ठ कार्य करते हैं और जो कुछ प्राप्त होता है, उसे स्वीकार करते हैं।
  • नियमित अभ्यास- श्रीकृष्ण बताते हैं कि नियमित अभ्यास से ही मन पर विजय मिलती है। चाहे वह ध्यान हो, सत्कर्म हो या संयमित जीवन, नियमित ध्यान से मन को साधा जा सकता है।
  • समभाव रखें- सफलता और असफलता, लाभ और हानि, इन सबको समान दृष्टि से देखें। समभाव रखें। इसका अर्थ ये नहीं है कि आप उदासीन हो जाएं, बल्कि आप भीतर से स्थिर रहें, चाहे बाहर कुछ भी हो रहा हो।
  • आत्मा में समर्पण- असली विजय अहंकार से नहीं, आत्मसमर्पण से मिलती है। अहंकार छोड़ें और दूसरों के लिए समर्पण का भाव रखें।

कैसे समझें कि हमने मन पर नियंत्रण पा लिया हैं?

कुछ संकेत हैं जो दर्शाते हैं कि हम मन को नियंत्रित कर पा रहे हैं…

  • प्रतिक्रिया देने से पहले रुकते हैं।
  • बिना व्याकुल हुए असुविधा में भी टिके रहते हैं।
  • आलोचना से विचलित नहीं होते।
  • बिना कारण के भी मन में शांति बनी रहती है।
  • हम क्रोध नहीं करते।

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