अगर लोग हमारी कद्र नहीं करते हैं तो क्या करें?: श्रीकृष्ण की सीख: सफलता या असफलता कर्म का परिणाम है, लेकिन आत्म संतोष धर्म के अनुसार काम करने से ही मिलता है

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42 मिनट पहले

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16 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन भगवान की पूजा करने के साथ ही उनके उपदेशों को जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए, ऐसा करने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं।

आज की तेज रफ्तार जिंदगी में, कई लोगों को ये महसूस होता है, कोई उनकी कद्र नहीं करता है, लोग नजरअंदाज कर देते हैं। कई लोग सोचते हैं कि हमें कभी कोई अवसर नहीं मिला, जिसके लिए हम पूरी तरह योग्य हैं। ऐसी स्थितियों में व्यक्ति खुद पर शक करने लगता है।

श्रीमद् भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि अपने कर्तव्य का पालन करो, फल की चिंता मत करो। ये बात केवल युद्ध तक की नहीं है, ये जीवन प्रबंधन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा है। जो लोग इस बात को जीवन में उतार लेते हैं, वे शांत हो जाते हैं। ऐसे लोगों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि कोई उनकी कद्र करता है या नहीं, वे लोग सिर्फ अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाते हैं और सुखी रहते हैं।

बाहरी लोगों को महत्व न दें, सही काम करें

जब हम अपने आत्मसम्मान को बाहरी लोगों की सोच पर आधारित कर लेते हैं तो हम अस्थिरता का शिकार बन जाते हैं। कल्पना करें कि आप अर्जुन हैं, कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर खड़े हैं। एक ओर परिवार, मित्र, समाज है, दूसरी ओर आपका धर्म, कर्तव्य और जीवन का उद्देश्य। निर्णय कठिन है, क्योंकि आप सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे?

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो संदेश दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। भगवान ने कहा है कि दूसरों की वाहवाही या आलोचना से अपने मूल्य का निर्धारण मत करो। जो काम आपको सही लगता है, धर्म के अनुसार है, वही कीजिए।

आत्मविश्वास बनाए रखें, दूसरों पर ध्यान न दें

सच्चा आत्ममूल्य बाहर से नहीं, भीतर से आता है। जब हम हर काम दूसरों को खुश करने के लिए करते हैं, तब हमारा जीवन एक कठपुतली की तरह बन जाता है, जिसकी डोर दूसरों के हाथों में होती है, लेकिन जब हम अपने मूल्यों, अपनी अंतरात्मा और अपने उद्देश्य से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, तब हम स्वतंत्र होते हैं।

भगवद गीता यही कहती है कि सफलता या असफलता कर्म का परिणाम है, लेकिन आत्म संतोष धर्म के अनुसार काम करने से ही मिलता है। ये बात समझ आ जाए तो हमारा आत्मविश्वास किसी की प्रशंसा या आलोचना से नहीं डगमगाता।

दूसरों को अपना निर्धारक मत बनने दीजिए

समाज हमें सिखाता है कि अगर लोग हमारी तारीफ कर रहे हैं तो हम सफल हैं, लेकिन ये सोच ही असली परेशानी है। अगर कोई हमारा कद्र नहीं करता है तो इसका अर्थ ये नहीं कि हम कमजोर हैं। जब हम किसी के द्वारा अस्वीकार होने से टूटते हैं तो हम अपनी शक्ति उन्हें सौंप देते हैं।

श्रीकृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि अपने मूल्य को दूसरों की राय से मत मापो।

जिस क्षण हम ये मान लेते हैं कि हमारा अस्तित्व ही हमारी कीमत है, तब हम किसी की स्वीकृति की आवश्यकता से मुक्त हो जाते हैं।

कर्म प्रशंसा के लिए नहीं, उद्देश्य पूरे करने के लिए करें

हमारा कार्य उस उद्देश्य के लिए होना चाहिए जिसे हमने तय किया है, न कि उस काम की प्रशंसा पाने के लिए। कभी-कभी हम ऐसे काम करते हैं जो बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन कोई देखता तक नहीं। तब हमें लगता है कि शायद हमने व्यर्थ प्रयास किया, ऐसी स्थिति के लिए श्रीकृष्ण का संदेश है कि – कर्तव्य करना ही धर्म है, उसकी मान्यता की चिंता करना व्यर्थ है।

जब हम केवल अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर आगे बढ़ते हैं, तब हमें अन्य लोगों की मान्यता की जरूरत नहीं होती है। कर्म ही पूजा है और पूजा के लिए दर्शकों की आवश्यकता नहीं है।

प्रशंसा के पीछे न भागें

आज सोशल मीडिया, प्रतिस्पर्धा, समाज के मानक, सब कुछ हमें यही सिखाते हैं कि जब तक कोई और हमारी प्रशंसा नहीं करता है, तब तक हम योग्य नहीं हैं, लेकिन ये सोच थका देने वाली है।

हमारा आत्म मूल्य किसी की अस्थायी राय से तय नहीं होना चाहिए। हम तब भी मूल्यवान हैं, जब कोई हमारी प्रशंसा न करे और तब भी जब कोई हमारी आलोचना करता है।

ये समझ ही हमें आंतरिक शक्ति देती है, वह शक्ति जो अर्जुन को मिली, जब उसने अपने आत्म-संदेह को छोड़ा और युद्धभूमि में अपने कर्तव्य को अपनाया।

स्वयं को पहचानिए, आत्मविश्वास बनाए रखें

जब हम ये समझ लेते हैं कि हमारी कीमत दूसरों की सहमति से नहीं, बल्कि हमारी आत्मिक स्थिति से आती है, तब जीवन का दृष्टिकोण बदल जाता है। हम फैसले आत्मविश्वास से लेते हैं, हमारा कार्य उद्देश्य से प्रेरित होता है और हम शांति में जीते हैं, चाहे बाहर कैसा भी कोलाहल हो।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध जीतने के लिए नहीं, स्वयं को जीतने के लिए प्रेरित किया। जब हम खुद को पहचानते हैं, स्वीकारते हैं और सम्मान देते हैं तो बाहरी दुनिया चाहे जैसी भी हो, हमारा जीवन संतुलित और शांत रहता है। अपने आत्म मूल्य के स्वामी स्वयं बनिए, न कि दूसरों की राय के दास, क्योंकि स्वयं की दृष्टि में मूल्यवान होना ज्यादा जरूरी है।

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