यह खत उस बहन का है, जिसका भाई पाकिस्तान की कोट लखपत सेंट्रल जेल में करीब 6 साल से बंद है. उन्होंने करीब 14 साल से अपने भाई को राखी नहीं बांधी है. लेकिन उनकी बदनसीबी ऐसी है कि उनकी चिट्ठी पाकिस्तान की जेल में नहीं पहुंच सकती. दरअसल, पहलगाम हमले के बाद से ही पाकिस्तान में चिट्ठी या कुरियर की सर्विस बंद कर दी गई थी.
पढ़ा-लिखा है पाकिस्तान की जेल में बंद प्रसन्नजीत
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खैरलांजी में रहने वाला प्रसन्नजीत रंगारी पढ़ाई में तेज था. इसलिए कर्ज लेकर उनके बाबूजी लोपचंद रंगारी ने उन्हें जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी की पढ़ाई करवाई थी. पढ़ाई पूरी कर साल 2011 में एमपी स्टेट फॉर्मसी काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन किया था. इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन मानसिक स्थिति खराब होने के कारण पढ़ाई छोड़कर घर आ गया. इसके बाद वह घर छोड़कर भाग गया था, फिर 8 महीने बाद बिहार से लौट आया. फिर वह अपनी बहन के घर रहने लगा.
प्रसन्नजीत करीब एक साल अपनी बहन के यहां रहने के बाद फिर अपने माता-पिता के पास रहने चला गया. फिर से वह अपनी बहन के यहां महकेपार नाम के गांव में रहने के लिए आया और अचानक घर से लापता हो गया. इसके बाद कुछ दिनों तक तलाश की गई लेकिन कोई खबर नहीं मिली. इसके बाद प्रसन्नजीत के परिवार ने उसे मरा हुआ मान लिया.
एक फोन और उम्मीद जगी लेकिन…
दिसंबर 2021 में अचानक महकेपार में रह रही संघमित्रा खोब्रागड़े के लिए फोन आता है. उन्हें पता चलता है कि उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान के लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद है. इसके बाद बहन को खुशी तो हुई लेकिन पाकिस्तान की बात सुनकर वह हैरान रह गईं. यह फोन कूलदीप सिंह का था, जो 29 साल पाकिस्तान की उसी जेल में रहकर आए थे जहां प्रसन्नजीत भी बंद है. तब से लेकर अब तक बहन संघमित्रा अपने भाई को छुड़वाने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं. उन्हें उम्मीद है कि वह अपने भाई को जेल से छुड़वा लेंगी.
बहन संघमित्रा खोब्रागड़े ने बताया कि मंत्रालय से प्रसन्नजीत की पहचान के लिए दस्तावेज मंगाए गए थे. उन्हीं में कुछ दस्तावेज थे, जिसमें प्रसन्नजीत का जिक्र था. वहां पर वह सुनिल अदे के नाम से बंद है. वहीं, उसने वहां अपना असली नाम और रिश्तेदारों के नाम भी बताए. उनकी बहन का कहना है कि 1 अक्तूबर 2019 में प्रसन्नजीत को पाकिस्तान के बाटापुर से हिरासत में लिया गया. उस समय तक उस पर किसी तरह के आरोप तय नहीं हुए.
बेटे के इंतजार में पिता की मौत, मां को अब भी उम्मीद
वेरिफिकेशन के दस्तावेज भी उसी दिन आए थे, जिस दिन संघमित्रा और प्रसन्नजीत के पिता लोपचंद रंगारी की मौत हुई थी. बेटे के इंतजार में वह दुनिया से चल बसे और मां को लगता है कि उनका बेटा अब जबलपुर में है. वह मानसिक रूप से बीमार है और पड़ोसियों से खाना लेकर अपना गुजारा कर रहा है.
संघर्ष की राह बेहद कठिन
पाकिस्तान की जेल में प्रसन्नजीत को छुड़ाने की जिम्मेदारी बहन संघमित्रा के ऊपर है. वह पूरे साल मजदूरी करके अपना जीवन यापन करती हैं. उनकी दो बेटियां हैं, उनके पालन-पोषण की भी जिम्मेदारी है. वहीं, उनके पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं और उनकी सास बीड़ी बनाने का काम कर परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हैं. प्रसन्नजीत के जीजा राजेश खोब्रागड़े का कहना है कि इस प्रक्रिया में काफी खर्च होता है. कई दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में काफी खर्चा हो जाता है. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.
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