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- How To Find Peace In Life, Life Management Tips In Hindi, Life Management Tips From Shrimad Bhagwad Geeta, Lord Krishna Lesson In Hindi
5 घंटे पहले
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16 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से ठीक पहले अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। भगवान ने गीता के माध्यम से हमें कर्म करते रहने की शिक्षा दी है। गीता में बताए गए उपदेशों को जीवन में उतार लेने से हमारी सभी समस्याएं हल हो सकती हैं।
श्रीमद् भगवद् गीता कहती है कि सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय, ये सभी क्षणिक हैं। जब हम इन बातों को समान भाव से स्वीकार करते हैं, तब हम निडर होकर कर्म कर पाते हैं। जब हम सफलता-असफलता पर ध्यान दिए बिना काम करते हैं तो जीवन में शांति आती है।
मनुष्य का जीवन अनेक प्रश्नों से घिरा रहता है, जैसे हम इस जीवन में क्यों आए हैं?, क्या हमारा उद्देश्य केवल सुख-सुविधाएं भोगना है? गीता इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए हमें सिखाती है कि जीवन न तो केवल उपलब्धियों से परिभाषित होता है, न ही असफलताओं से। बल्कि जीवन का मूल्य इस बात से है कि हम इसे कैसे जीते हैं और चुनौतियों का कैसे सामना करते हैं।
वर्तमान में जीने से मिलती है शांति
हम अक्सर या तो अतीत के पछतावे में या भविष्य की चिंता में उलझे रहते हैं। गीता सिखाती है कि शांति केवल वर्तमान में जीकर ही प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान में जीना यह नहीं कहता कि आप भविष्य की योजना न बनाएं या अतीत से कुछ न सीखें, बल्कि यह कहता है कि आप बीते या आने वाले समय के वश में न हों। जब हम वर्तमान में रहते हैं, तब हमारे निर्णय स्पष्ट होते हैं, मन स्थिर होता है और जीवन में एक नई जागरूकता बनी रहती है।
गीता के महत्वपूर्ण संदेशों से समझें कैसे हमारी समस्याओं को दूर कर सकते हैं…
संबंधों में जुड़ाव रखें, लेकिन अत्यधिक मोह से बचें
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येनकेनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः।।
(अध्याय 12, श्लोक 19)
अर्थ: जो व्यक्ति आसक्ति से मुक्त है, हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है, जिसका मन स्थिर है और जो भक्ति में रमा रहता है, वह मुझे प्रिय है।
गीता कहती है कि जीवन के सबसे सुंदर अनुभव संबंधों से जुड़े होते हैं, लेकिन यही संबंध जब अपेक्षाओं और मोह का रूप ले लेते हैं, तब वे दुख का कारण बनते हैं। गीता कहती है कि सच्चा प्रेम नियंत्रण या स्वामित्व नहीं चाहता, बल्कि सच्चा प्रेम स्वतंत्रता देता है। इसलिए अत्यधिक मोह से बचना चाहिए।
जब हम किसी को बिना बदलने की चाह के, बिना बंधन के प्रेम करते हैं, तब वह प्रेम शुद्ध और शांतिपूर्ण बन जाता है, संबंध तब आनंद का कारण बनते हैं, वे बोझ की तरह महसूस नहीं होते हैं।
कर्म में लगाव नहीं, समभाव होना चाहिए
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
(अध्याय 2, श्लोक 48)
अर्थ: हे अर्जुन! कर्म में स्थित होकर, आसक्ति त्यागकर, सफलता और असफलता में सम भाव रखते हुए कार्य करो। यही समत्व योग है।
समाज में सफलता और असफलता को जीवन का मापदंड माना जाता है, लेकिन गीता कहती है कि कर्म करते समय फल की चिंता न करें। जब आप बिना फल की इच्छा के कर्म करते हैं, तब वह कर्म एक साधना बन जाता है। सफलता और असफलता केवल बाहरी घटनाएं हैं, ये आत्म शांति नहीं देती हैं। सच्ची शांति कर्म में निष्ठा और समभाव में होने से मिलती है।
जीत-हार को समान मानकर आगे बढ़ें
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।
(अध्याय 2, श्लोक 38)
अर्थ: सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार को समान मानकर अपने कर्तव्य में लग जाओ।
जीवन में कठिनाइयां आना स्वाभाविक है। गीता कहती है कि परेशानियां जीवन का दंड नहीं, बल्कि ये शिक्षक की तरह होती हैं। जब हम दुख को स्वीकारते हैं और उसका सामना करते हैं तो वह हमें मजबूत बनाता है। आत्मिक विकास केवल सुख से नहीं होता। संघर्ष और कष्ट हमें भीतर से जागरूक और संवेदनशील बनाते हैं। हमें परेशानियों से भागना नहीं चाहिए, बल्कि सकारात्मक सोच के साथ उनका सामना करना चाहिए। सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार को समान मानकर अपने कर्म करते रहना चाहिए।
मृत्यु के भय से बचें
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
(अध्याय 2, श्लोक 22)
अर्थ: जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
गीता मृत्यु को अंत नहीं, आत्मा के एक नए चरण की शुरुआत मानती है। मृत्यु का भय केवल तब तक रहता है, जब तक हम शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा शाश्वत है, ये न जन्म लेती है, न मरती है। जब ये बोध होता है, तब हम मृत्यु से डरना छोड़ देते हैं और जीवन को अधिक गहराई से जीने लगते हैं, हर क्षण को पूर्ण रूप से स्वीकार करने लगते हैं।
जीवन को सफलता या असफलता से न मापें
जीवन केवल सफलताओं या असफलताओं से नहीं मापा जाता, बल्कि इस बात से जीवन को समझें कि हमने अपने मार्ग को कितनी शालीनता और समभाव से तय किया है। गीता हमें सिखाती है कि यदि हम वर्तमान में जीएं, प्रेम करें, परंतु किसी के अत्यधिक मोह में बंधें नहीं, बिना फल की चिंता के कर्म करें, और जीवन-मरण के चक्र को समझें तो जीवन के उस उच्चतम उद्देश्य की ओर बढ़ते हैं, जिसे आत्मबोध कहते हैं। जीवन में इस तरह आगे बढ़ने से शांति मिलती है।
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