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Iran’s Navy Mlitary Drill: ईरान ने इजरायल संग युद्ध के बाद ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर में ‘सस्टेनेबल पावर 1404’ सैन्य अभ्यास कर मिसाइल व ड्रोन क्षमता दिखायी.

ईरान के सरकारी टीवी की रिपोर्ट में कहा गया है कि नौसेना के जहाज लक्ष्यों पर क्रूज मिसाइलें दागेंगे और खुले पानी में ड्रोन का इस्तेमाल करेंगे. इस अभ्यास का कोई भी वीडियो तुरंत प्रसारित नहीं किया गया. नौसेना ने जून में हुए युद्ध के दौरान किसी भी बड़े हमले से स्पष्ट रूप से परहेज किया था. बंदरगाह शहर बंदर अब्बास में स्थित यह नौसेना ओमान की खाड़ी, हिंद महासागर और कैस्पियन सागर में गश्त करती है. अरब की खाड़ी और उसके संकरे मुहाने होर्मुज जलडमरूमध्य को ईरान के अर्धसैनिक बल रिवोल्यूशनरी गार्ड के लिए छोड़ देती है. रिवोल्यूशनरी गार्ड की नौसेना विश्व शक्तियों के साथ ईरान के 2015 के परमाणु समझौते के टूटने के दौरान पश्चिमी जहाजों को जब्त करने के लिए जानी जाती हैं. साथ ही इस क्षेत्र में आने वाले अमेरिकी नौसेना के जहाजों पर भी कड़ी नजर रखती है.
नौसैनिक क्षमता बढ़ाने का प्रयास
ईरान की नौसेना को पारंपरिक रूप से कमजोर माना जाता है. लेकिन वो अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. हालांकि इसकी असली ताकत विषम परिस्थितियों में युद्ध की रणनीति (asymmetric warfare) और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की नौसेना में निहित है. ईरान के पास दो नौसेनाएं हैं – नियमित नौसेना (Artesh) और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की नौसेना. रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की नौसेना छोटी और तेज नौकाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है. वो खाड़ी में अमेरिकी और अन्य विदेशी नौसेनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती है. अनुमानित रूप से ईरानी नौसेना में लगभग 18,000 सक्रिय सैनिक हैं.
ईरान का छोटे जहाजों पर जोर
पारंपरिक रूप से बड़े युद्धपोतों की कमी के बावजूद ईरान छोटे और तेज जहाजों, जैसे मिसाइल-सशस्त्र नौकाओं को प्राथमिकता देता है. क्योंकि ये हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे संकीर्ण जलमार्गों में प्रभावी हो सकते हैं. ईरान ने अपनी पनडुब्बी बेड़े को भी मजबूत किया है. इसमें रूस से खरीदी गई किलो-क्लास पनडुब्बियां और अपनी खुद की बनाई हुई पनडुब्बियां शामिल हैं, जो समुद्री निगरानी और हमले की क्षमता रखती हैं. ईरान की असली ताकत उसकी बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल क्षमताओं में है. ईरान के पास लंबी दूरी की मिसाइलें हैं, जिनमें हाइपरसोनिक मिसाइलें (जैसे फतह-1) भी शामिल हैं. इन मिसाइलों और ड्रोन का उपयोग समुद्र में जहाजों को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है. पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण ईरान ने अपनी रक्षा तकनीक का स्वदेशी विकास किया है. उसने अपने खुद के युद्धपोत, पनडुब्बियां और मिसाइलें बनाई हैं. जैसे कि हाल ही में लॉन्च किया गया जासूसी जहाज जाग्रोस.
भविष्य में किसी भी मुकाबले को तैयार
युद्ध की समाप्ति के बाद से ईरान ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि वह भविष्य में किसी भी इजरायली हमले का मुकाबला करने के लिए तैयार है. रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल अज़ीज़ नसीरज़ादेह ने कहा कि देश ने अपनी सेनाओं को नई मिसाइल से लैस किया है. उन्होंने कहा, “किसी भी संभावित दुश्मन के दुस्साहस के जवाब में हमारी सेनाएं इन नई मिसाइलों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए तैयार हैं.”
आईएईए के साथ सहयोग निलंबित
इस बीच ईरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ अपने सहयोग को निलंबित कर दिया है, जो उसके परमाणु स्थलों की निगरानी कर रही है. माना जा रहा है कि तेहरान ने तनाव के बीच यूरेनियम को हथियार बनाने के स्तर तक समृद्ध किया है. ईरान परमाणु समझौते के यूरोपीय पक्ष, फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम ने चेतावनी दी है कि अगर तेहरान 31 अगस्त तक आईएईए के साथ अपने विवाद का संतोषजनक समाधान नहीं निकालता है तो वे उस पर समझौते के तहत पहले हटाए गए सभी संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों को तुरंत लागू कर देंगे.
इस युद्धाभ्यास का क्या उद्देश्य
इस युद्धाभ्यास का मुख्य उद्देश्य समुद्री लक्ष्यों को भेदने के लिए छोटी, मध्यम और लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों का परीक्षण करना था. इसमें युद्धपोतों, पनडुब्बियों और लड़ाकू ड्रोनों का भी इस्तेमाल किया गया. यह युद्धाभ्यास इजरायल के साथ हाल ही में हुए 12 दिवसीय युद्ध के बाद ईरान का पहला बड़ा सैन्य अभ्यास था. इस युद्ध में इजरायल ने ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों और वायु रक्षा प्रणालियों पर हमला किया था. यह युद्धाभ्यास ऐसे समय में किया गया है जब क्षेत्र में तनाव अधिक है. अमेरिका और इजरायल दोनों इस पर कड़ी नजर रख रहे हैं. कई विश्लेषकों का मानना है कि यह ईरान द्वारा अपनी सैन्य क्षमता को फिर से प्रदर्शित करने का एक प्रयास है.
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