मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। कोर्ट में प्रतियोगी परीक्षाओं में 13 प्रतिशत होल्ड पदों को अनहोल्ड किए जाने और छत्तीसगढ़ के फार्मूले पर अमल के लिए याचिकाकर्ताओं के वकील न्यायालय में अपन
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 4 मई 2022 के अंतरिम आदेश में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14% तक सीमित कर दी थी। इसके बाद से यह मामला कोर्ट में चल रहा है। इस मामले में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चांडुरकर की खंडपीठ ने 5 अगस्त को साढ़े चार मिनट चली सुनवाई के बाद इसकी अगली सुनवाई 12 अगस्त तय की थी।
पांच अगस्त को हुई सुनवाई में ओबीसी महासभा की ओर से अधिवक्ता वरुण ठाकुर, धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा और एड. रामकरण की ओर से कहा गया कि परीक्षा हो चुकी है, भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन नियुक्ति नहीं दी जा रही है। छत्तीसगढ़ जैसी राहत एमपी में दी जाए। इस पर अनारक्षित वर्ग द्वारा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिए जाने पर बात रखी गई। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अगले मंगलवार यानी 12 अगस्त को सबसे पहले सुनवाई के लिए रखने का आदेश दिया।
22 जुलाई को सरकार ने मांगी थी राहत
इस मामले में 22 जुलाई को हुई सुनवाई में मप्र सरकार ने राहत की मांग की थी। सरकार की ओर से कहा गया था कि जैसे छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है, वैसे ही मप्र को भी राहत दी जाए, ताकि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो सके।
ओबीसी पक्षकार ने भी एक्ट को लागू करने की मांग की, जबकि अनारक्षित पक्ष ने आपत्ति जताते हुए कहा कि मप्र और छत्तीसगढ़ के मामलों में अंतर है, क्योंकि मप्र में ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% किया गया, जबकि छत्तीसगढ़ में एसटी आबादी अधिक होने के कारण वहां का आरक्षण पहले जैसा है।
जुलाई में ही यह मामला भी आया
इसके पहले जुलाई में हुई एक अन्य सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के चयनित अभ्यर्थियों की ओर से मांग की गई थी कि राज्य में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने का कानून होने के बावजूद 13% पदों को होल्ड पर रखा गया है, जिसे हटाया जाए। इस पर सरकार के वकीलों ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार भी चाहती है कि ओबीसी को 27% आरक्षण मिले। हम इसको अनहोल्ड करने के समर्थन में हैं। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने आपको रोका कब है?
एक नोटिफिकेशन राज्य सरकार ने 22 सितंबर 2022 को जारी किया था। उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये नोटिफिकेशन कानून के खिलाफ क्यों जारी किया गया था? इस सुनवाई को लेकर वरुण ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने माना कि ये नोटिफिकेशन गलत तरीके से जारी हुआ है। हम इसको अनहोल्ड करने के समर्थन में हैं।
सरकार के आदेश पर स्टे हटाने की मांग
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 2019 में ओबीसी को 27% आरक्षण देने का बिल पारित हुआ था। उसके बाद जब 27% ओबीसी आरक्षण के क्रियान्वयन आदेश जारी हुए तो 4 मई 2022 में शिवम गौतम नाम के एक अभ्यर्थी ने मप्र हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
हाईकोर्ट ने ओबीसी को 27% आरक्षण के क्रियान्वयन आदेश पर स्टे दे दिया। इसके साथ ही राज्य सरकार के संशोधित कानून और नियम पर रोक लगा दी गई थी। इन संशोधनों से आरक्षण की कुल सीमा 73% तक पहुंच रही थी। एसटी को 20%, एससी को 16%, ओबीसी को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य (ईडब्ल्यूएस) को 10% आरक्षण शामिल था।
बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गया। सरकार ने इसी आदेश को चुनौती देते हुए ट्रांसफर केस 7/2025 के तहत स्टे वैकेंट की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। अब अगर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाता है तो मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 27% हो सकता है। अभी तक 70 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी हैं।

छत्तीसगढ़ की मिसाल दे चुके हैं याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट रामेश्वर ठाकुर और वरुण ठाकुर ने कोर्ट में कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने दिसंबर 2022 में बिल पारित कर ओबीसी को 27% आरक्षण दिया है। वहां एसटी को 32%, एससी को 13% और ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण समेत कुल 76% आरक्षण है।
हाईकोर्ट ने 2023 में अंतरिम रोक लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली। वहां आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले तक जारी रहेगा। सामाजिक और जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर ओबीसी आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू है।
सरकार आबादी के पुख्ता आंकड़े नहीं दे सकी
मध्य प्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य की आबादी का 48% ओबीसी समुदाय है। हालांकि, इस आंकड़े को प्रमाणित करने के लिए सरकार के पास अभी तक ठोस डेटा नहीं है। 2019 और 2022 में इसी आधार पर हाई कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाई थी।
हर भर्ती में 13 फीसदी पद होल्ड, ऐसी 35 भर्तियां
विवाद के कारण सरकार हर भर्ती परीक्षा में 13% पद होल्ड कर रही है। सिर्फ 14% पर रिजल्ट जारी कर रहे हैं। 2019 से अब तक 35 से अधिक भर्तियां रुकी हैं। 8 लाख अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। करीब 3.2 लाख चयनित अभ्यर्थियों के रिजल्ट होल्ड हैं, जिन्हें नियुक्ति का इंतजार है। राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 2023 विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक 29 हजार पदों पर नियुक्ति हुई है, जबकि 1.04 लाख पद अब भी खाली हैं।
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ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का एमपी सरकार से सवाल
एमपी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव से एफिडेविट मांगा है कि जो 13% पद होल्ड हैं, उन पर नियुक्तियों में क्या दिक्कत है। सरकार ने साल 2019 में ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए एक्ट पास किया गया था, लेकिन अमल में नहीं आ पाया। कोर्ट नंबर 12 में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने सुनवाई की। यह केस सीरियल नंबर-35 पर लगा था। याचिकाकर्ता ओबीसी महासभा की ओर से एक बार फिर से मप्र की 51 प्रतिशत ओबीसी होने की दलील दी गई। पूरी खबर पढ़ें…
एक साल से तैयार है ओबीसी की रिपोर्ट…

ओबीसी आरक्षण को लेकर बहस के बीच चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। प्रदेश की कुल आबादी में सबसे ज्यादा 48% हिस्सेदारी रखने वाले पिछड़े वर्ग की सरकारी नौकरियों में मौजूदगी महज 16.80% है। वहीं, सामान्य वर्ग के 21.64%, एससी के 10.49%, और एसटी के 10.73% कर्मचारी-अधिकारी पदस्थ हैं। यह रिपोर्ट प्रदेश में ओबीसी की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन करने के लिए तैयार की गई थी, पर हैरत की बात यह है कि यह एक साल से सार्वजनिक नहीं हुई। आयोग ने ओबीसी को 35% आरक्षण देने समेत कई अनुशंसाएं की हैं। रिपोर्ट डॉ. बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइंस, महू की मदद से तैयार हुई, जिसमें 69 सरकारी विभागों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। एक साल पहले आयोग को यह रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है। पूरी खबर पढ़ें…
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